By अंकित सिंह | Sep 20, 2022
उत्तर प्रदेश में सियासी हलचल तेज है। इन सब के बीच अखिलेश यादव जबरदस्त तरीके से योगी सरकार पर हमलावर हैं। समाजवादी पार्टी की ओर से सोमवार को एक पैदल मार्च निकाला गया था जिसका नेतृत्व अखिलेश यादव कर रहे थे। पुलिस ने मार्च को रोक दिया था। इसके बाद अखिलेश यादव ने जबरदस्त तरीके से भाजपा और योगी सरकार पर निशाना साधा था। वहीं, मंगलवार को मायावती ने भी भाजपा सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने अपने ट्वीट में समाजवादी पार्टी का नाम नहीं लिया। लेकिन कहीं ना कहीं विपक्ष के मार्च को पुलिस द्वारा रोके जाने का मुद्दा उठाया और सरकार पर निशाना साधा। 2019 चुनाव के बाद यह पहला मौका है जब मायावती के तेवर अखिलेश यादव के प्रति नरम पड़े हैं। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि क्या मायावती और अखिलेश यादव एक बार फिर से साथ आ सकते हैं?
मायावती का ट्वीट
सबसे पहले आपको बताते हैं कि आखिर मायावती ने अपने ट्वीट में क्या लिखा था। दरअसल, मायावती ने अपने ट्वीट में लिखा कि विपक्षी पार्टियों को सरकार की जनविरोधी नीतियों व उसकी निरंकुशता तथा जुल्म-ज्यादती आदि को लेकर धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देना भाजपा सरकार की नई तानाशाही प्रवृति हो गई है। साथ ही, बात-बात पर मुकदमे व लोगों की गिरफ्तारी एवं विरोध को कुचलने की बनी सरकारी धारणा अति-घातक। उन्होंने आगे लिखा कि महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, बदहाल सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था आदि के प्रति यूपी सरकार की लापरवाही के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन नहीं करने देने व उनपर दमन चक्र के पहले भाजपा जरूर सोचे कि विधानभवन के सामने बात-बात पर सड़क जाम करके आमजनजीवन ठप करने का उनका क्रूर इतिहास है।
क्या है सियासी मायने
2024 चुनाव को लेकर विपक्ष अपने समीकरणों को साधने में जुटा हुआ है। विपक्ष की ओर से मोदी सरकार पर जबरदस्त तरीके से हमले किए जा रहे हैं। महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी का मुद्दा उठाया जा रहा है। इसके साथ ही कई सहयोगी दल भाजपा से अलग हो चुके हैं। बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक साथ हो चुके हैं तो वही कई विपक्षी दल लगातार अलग-अलग मोर्चे का निर्माण करने में जुटे हुए हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश में भी बुआ-भतीजा को साथ लाने की कोशिश की जा रही है। हाल में ही संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। बहुजन समाज पार्टी को बहुत ज्यादा फायदा नहीं हो पाया और सिर्फ एक सीट ही मिली। ऐसे में मायावती को फिलहाल गठबंधन का ही सहारा है। शायद यही कारण है कि वह अखिलेश यादव के प्रति नरम रुख दिखा रही हैं। 2019 के चुनाव में भी दोनों दलों ने एक साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। मायावती को 10 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, अखिलेश यादव 5 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे।