By आरएन तिवारी | Jan 27, 2025
आजकल न केवल भारत वर्ष बल्कि सम्पूर्ण विश्व कुंभमय हो गया है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे बसा इलाहाबाद भारत का पवित्र और लोकप्रिय तीर्थस्थल है। इस शहर का उल्लेख हमारे धार्मिक ग्रन्थों में भी मिलता है। वेद, पुराण, रामायण और महाभारत में इस स्थान को 'प्रयाग' कहा गया है। गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का यहाँ संगम होता है, इसलिए हिन्दुओं के लिए इस शहर का विशेष महत्त्व है। प्रयाग राज में चल रहा कुंभ कितना दिव्य, भव्य और वैशिष्ट्य से भरा हुआ है इसकी व्याख्या करना सहजता से संभव नहीं है। बस इतना है कि हम इस दुर्लभ कुंभ को अपने भक्तिभाव से कैसे जोड़े ? इसके लिए बहुत त्याग और तपस्या की जरूरत नहीं है बस अपनी दिनचर्या को कुम्भ-यात्रा से जोड़ लें। जो भी खाएँ-पीएं जहाँ भी आयें-जाएँ उसमें अपनी भक्ति को समावेश कर लें।
ध्यान रहे --
1) भक्ति जब भोजन में प्रवेश करती है, तब वह भोजन प्रसाद बन जाता है।
2) भक्ति जब भूख में प्रवेश करती है, तब वह भूख व्रत का रूप ले लेती है।
3) भक्ति जब पानी में प्रवेश करती है, तब वह चरणामृत बन जाता है।
4) भक्ति जब सफर में प्रवेश करती है, तब वह तीर्थ यात्रा बन जाती है।
5) भक्ति जब संगीत में प्रवेश करती है, तब वह कीर्तन बन जाता है।
6) भक्ति जब घर में प्रवेश करती है, तब वह घर मंदिर बन जाता है।
7) भक्ति जब हमारे कार्य में प्रवेश करती है, तब वह कर्म बन जाता है।
महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान मौनी अमावस्या 29 जनवरी को पड़ रहा है।
महाकुंभ और मौनी अमावस्या का यह अद्भुत संयोग धार्मिक कर्मों और मौन साधना के लिए बेहद शुभ फलकारी होगा। माना जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर स्नान करने से अपना कल्याण तो होता ही है पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है।
मौनी अमावस्या के दिन पहले संत महात्माओं को स्नान कर लेने दें उसके बाद स्वयम स्नान करें। पुराणों में बताया गया है कि जब लोगों के पापों का बोझ नदियों पर बढने लगता है तब साधु-संत और सिद्ध महापुरुष अपने स्नान से उसे हल्का कर देते हैं। संतों के प्रथम स्नान करने से नदियों में एक अलौकिक और अद्भुत उर्जा प्रवाहित होने लगती है जिसमें स्नान करने से सामान्य मानव को भी विशेष पुण्य की प्राप्ति हो जाती है। कुंभ इहलोक और परलोक का संगम है। इसमें डुबकी लगाने से हमारा तन और मन दोनो ही शुद्ध हो जाते है। कुम्भ पर्व के अवसर पर पतित पावनी भगवती भागीरथी के जल में स्नान करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ, सौ वाजपेय यज्ञ, एक लाख भूमि की परिक्रमा करने से जो पुण्य-फल प्राप्त होता है, वह एक बार ही कुम्भ-स्नान करने से प्राप्त होता है-
अश्वमेध सहस्राणि वाजपेय शतानि च।
लक्षप्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत् फलम्।।
- आरएन तिवारी