By निधि अविनाश | Mar 30, 2022
गुरु तेग बहादुर, गुरु हरगोबिंद के सबसे छोटे संतान थे। उनका जन्म 1621 में हुआ था। महान सेनानी के साथ-साथ वह एक महान विद्वान थे। करतारपुर युद्ध में अपनी वीरता का प्रदर्शन देख उनका नाम तेग बहादुर रखा गया जिसा मतलब होता है तलवार का स्वामी। तेग ने 26 साल तक अपनी जिंदगी एक संत की तरह जिया। इतिहासकारों के अनुसार, भारत में जब औरंगजेब का कब्जा था तब वह किसी भी धर्म को अपने ऊपर नहीं देखना चाहता था जिसके कारण उस समय के हिंदुओं और सिखों का जबरन धर्मांतरण कर दिया जाता था। मंदिरों को तोड़ा जाता था और महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे थे। इन हादसों को देख गुरू तेग बहादुर काफी दुखी थे। इस बीच उन्होंने कई गांव को दौरा किया और लोगों का आश्वासन और ताकत दिया कि लोग इसके खिलाफ खड़े हो और लड़े।
जब गुरु जी की शरण में पहुंचे कश्मीरी पंडित
इस समय कश्मीर में कई विद्वान पंडित रहते थे, माना जाता था कि पूरा कश्मीर ही विद्वान पंडितों से बसा हुआ था। उन दिनों औरंगेजब की तरफ से शेर अफगान खां कश्मीर का सूबेदार हुआ करता था और आदेश के अनुसार अपनी तलवार के दम पर कश्मीरी पंडितों को मुसलमान बना दिया जाता था। इस बीच कश्मीरी पंडितों ने गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर साहिब जी के बारे में कई बातें सुन रखी थीं कि वह लोगों की मदद करते हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनाते हैं। इसी को देखते हुए कश्मीरी पंडितों ने सोचा कि मुगलों के आगे अपना सिर झुकाने से बेहतर वह गुरु तेग बहादुर साहिब जी से जाकर मिलें। विद्वान पंडितों का एक समूह गुरु जी से मिलने आनंदपुर साहिब पहुंचा और इस समस्या को लेकर उनसे बातचीत की। कश्मीरी पंडितों ने गुरू तेग बहादुर के सामने अपनी पीढा रखी तो तेग बहादुर साहिब ने कहा कि, धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए किसी पवित्र व्यक्ति को अपने जीवन की कुर्बानी देनी होगी जिससे लोगों में हिम्मत बन सके। पवित्र ग्रंथो की माने तो कहा जाता है कि, गुरु गोविन्द सिंह उस समय केवल 9 साल के थे और उन्होंने अपने पिता को कहा कि इस कार्य के लिए आपसे ज्यादा पवित्र इंसान और कौन होगा? लेकिन कश्मीरी पंंडितों ने कहा कि, अगर आपके पिता ने कुर्बानी दी तो आप यतीम हो जाएंगे और आपकी मां विधवा हो जाएंगी। फिर तेग बहादुर ने कहा किस अगर मेरे अकले के यतीम होने से लाखों लोग यतीम होने से बच सकते हैं और अकेल मेरी मां के विधवा होने से लाखों मां विधवा होने से बच सकती हैं तो मुझे यह स्वीकार है।
यह सुनने के बाद गुरू तेग ने कश्मीरी पंडितों से कहा कि, कह दो औरंगजेब से कि अगर तुमने हमारे गुरु का धर्म बदल दिया, और अगर उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया तो हम भी कर लेंगे और इसके जवाब को औरंगजेब तक पहुंचा दिया गया जिसको उन्होंने स्वीकार भी लिया। इस बीच गुरु जी अपने 4 खास सेवक भाई मती दास, भाई दयाला, भाई सती दास और भाई जैता जी के साथ आनंदपुर साहिब से निकल गए और डटकर औरंगजेब के सामने आ खड़े हो घए जिससे वह काफी विचलित हो गया और गुरु तेग बहादुर और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया।
औरंगजेब के आदेश पर पांचों सिखों को दिल्ली लाया गया और मुसलमान बनाने के लिए कई बार लालच दिया। साथ ही भायनक मौत देने की धमकी भी दी। लेकिन गुरु तेग बहादुर साहिब जी के दिमाग में केवल एक बात थी कि अपना शीश कलम करके कश्मीरी पंडितों को बचाया जा सके जिससे कमजोर व्यक्तियों को हिम्मत मिल सके। धर्र परिवर्तन नहीं करा पाने के बाद औरंगजेब का आदेश पर सबसे पहले उनके सामने भाई मतिदास को जिंदा आरी से चीर दिया गया, दूसरे भाई दयाल को उबलते पानी में डालकर मार दिया और आखिरी में भाई सती दास को जिंदा जलाया गया।
इतने जुल्म के बाद भी गुरू जी घबराएं नहीं और आखिरी में गुरु जी को चांदनी चौक में तलवार से शहीद कर दिया गया। आज यह जगह गुरुद्वारा शीशगंज साहिब के नाम से जाना जाता है। औरंगजेब ने आदेश देते हुए कहा था कि, इनका अंतिम संस्कार न किया जाए लेकिन उनके भाई जैता ने सिपाहियों की आखों में धूल झोंककर गुरू के शीश को उठाकर आनंदपुर साहिब की ओर चल पड़े। वहींगुरु जी के धड़ को एक व्यापारी ने उठाकर अपने गांव रकाबगंज के एक घर में ले गया और पूरे घर में आग लगा दी। इस तरह गुरु जी का अंतिम संस्कार किया गया।