Anandi Gopal Joshi Birth Anniversary: 9 साल की उम्र में शादी और 19 में बनीं एमडी, आनंदी गोपाल जोशी थीं देश की पहली महिला डॉक्टर

By अनन्या मिश्रा | Mar 31, 2024

भारत के लिए 19वीं सदी का समय बहुत सारे बदलाव के लिए जाना जाता है। इस दौरान समाज सुधार के लिए तमाम आंदोलन हुए। जिसमें विधवा विवाह और नारी शिक्षा जैसे कार्यों को प्रोत्साहित किया गया। वहीं इन सबके बीच भारत की एक लड़की ने अनोखी कहानी लिख इतिहास में अपने नाम को दर्ज कराया। उस दौर में लड़कियों का शिक्षित होना बड़ी बात होती थी। तब आनंदी गोपालराव जोशी डॉक्टर बन तमाम महिलाओं व लड़कियों के लिए प्रेरणा बनीं। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 31 मार्च को आनंदी का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर आनंदी गोपालराव जोशी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।


जन्म और परिवार

महाराष्ट्र के ठाणे जिले के कल्याण में एक ब्राह्मण परिवार में 31 मार्च 1865 को आनंदी गोपाल जोशी का जन्म हुआ था। महज 9 साल की उम्र में गोपालराव जोशी से उनका विवाह कर दिया गया खा। जो आनंदी से करीब 20 साल बड़े और पहले से विधुर थे। वहीं शादी के बाद उनका नाम आनंदी रखा गया था। बता दें कि गोपालराव जोशी कल्याण में पोस्टल क्लर्क के पद पर थे। हांलाकि गोपालराव बेहद प्रगतिवाद और महिला शिक्षा के समर्थक थे। महज 14 साल की उम्र में आनंदी मां बन गई थी। लेकिन सिर्फ 10 दिन के अंदर उनकी बच्चे की मौत हो गई थी।

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एक बड़ा संकल्प

इतना बड़ा आघात झेलने के बाद आनंदी गोपाल जोशी ने निर्णय लिया कि वह डॉक्टर बनेंगी। उन्होंने फैसला किया कि उपचार न मिलने के कारण वह मौतें नहीं होने देंगी। इस फैसले को लेकर उनकी समाज में काफी आलोचना हुई थी। इस दौरान आपत्ति जताई गई कि एक शादीशुदा महिला विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई किस तरह कर सकती है। आनंदीबाई के लिए इस संकल्प को पूरा करना इतना भी आसान नहीं था। हांलाकि खुद गोपालराव भी उनको शिक्षित करना चाहते थे। पढ़ाई के लिए गोपालराव ने उन्हें एक मिशनरी स्कूल में एडमिशन दिलाने की कोशिश की। असफल होने पर वह कलकत्ता आ गए और यहां पर उन्होंने अंग्रेजी और संस्कृत की शिक्षा ली।


अमेरिका जाने की राह

डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने में आनंदी गोपाल जोशी को गोपालराव ने बहुत प्रोत्साहित किया। साल 1980 में एक फेमस अमेरिकी मिशनरी रॉयल वाइल्डर को उन्होंने खत भेजा। इस खत के जरिए उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई के बारे में जानकारी प्राप्त की। फिर उस पत्राचार को वाइल्डर ने प्रिंसटन की मिशनरी समीक्षा में भी प्रकाशित किया था। इस लेख को पढ़कर न्यू जर्सी निवासी थॉडिसीया कार्पेन्टर बेहद प्रभावित हुई। उन्होंने आनंदीबाई को अमेरिका में रहने का ऑफर दिया।


अमेरिका भेजने का फैसला

कलकत्ता में दिन प्रति दिन आनंदीबाई का स्वास्थ्य कमजोर हो रहा था। कमजोरी की वजह से सिरदर्द, बुखार और सांस लेने की समस्या होती थी। अमेरिका से थिओडिकिया ने उनके लिए दवाएं भेजीं। फिर गोपालराव ने स्वास्थ्य कमजोर होने के बाद भी साल 1883 में चिकित्सा अध्ययन के लिए आनंदीबाई को अमेरिका भेजने का फैसला लिया।


मृत्यु

आनंदीबाई न्यूयॉर्क पानी के जहाज से गईं और पेनसिल्वेनिया की वुमन मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया। उन्होंने महज 19 साल की उम्र में चिकित्सा प्रशिक्षण लेना शुरूकर दिया। लेकिन अमेरिका में ठंडे मौसम की वजह से आनंदीबाई को तपेदिक की बीमारी हो गई। बीमारी के बाद भी 11 मार्च 1885 को उन्होंने एमडी से स्नातक की डिग्री हासिल की। वहीं साल 1886 में उन्होंने अपने सपनों को सच कर दिखाया। जब अमेरिका के पेनसिलवेनिया से डिग्री पूरी कर वह भारत वापस लौटी तो उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगी। वहीं महज 22 साल की उम्र पूरी करने से पहले 26 फरवरी 1887 को आनंदीबाई की मृत्यु हो गई।

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