Yes Milord: हिंदू विवाह संस्कार है ना सिर्फ अनुबंध, मुख्यमंत्री को तगड़ी फटकार, जानें इस हफ्ते कोर्ट में क्या हुआ

By अभिनय आकाश | Aug 31, 2024

बिना उचित कारण जीवनसाथी को छोड़ने को इलाहाबाद HC ने क्रूरता बताया। के कविता को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसी पर सवाल उठाए। सोरेन के सहयोगी को बेल देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा जमानत नियम है, जेल अपवाद। सुप्रीम कोर्ट ने किस राज्य के मुख्यमंत्री को तगड़ी डांट लगाई। रामदेव को हाई कोर्ट ने अब क्या नोटिस जारी किया। इस सप्ताह यानी 26 अगस्त से 31 अगस्त 2024 तक क्या कुछ हुआ? कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट और टिप्पणियों का विकली राउंड अप आपके सामने लेकर आए हैं। कुल मिलाकर कहें तो आपको इस सप्ताह होने वाले भारत के विभिन्न न्यायालयों की मुख्य खबरों के बारे में बताएंगे। 

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हिंदू विवाह संस्कार है ना सिर्फ अनुबंध

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि हिंदू विवाह में बिना किसी उचित कारण के जीवनसाथी का साथ छोड़ना अकेले रह गए जीवनसाथी के प्रति क्रूरता है। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनादी रमेश की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार है, न कि सिर्फ एक सामाजिक अनुबंध, जहां एक साथी बिना किसी कारण या उचित कारण या मौजूदा या वैध परिस्थिति के दूसरे को छोड़ देता है। हाई कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह की आत्मा की मृत्यु पति या पत्नी के प्रति क्रूरता का कारण बन सकती है, जो इस प्रकार न सिर्फ शारीरिक संगति से वंचित रह सकता है, बल्कि मानव अस्तित्व के सभी स्तरों पर पति या पत्नी की संगति से पूरी तरह वंचित हो सकता है। हालांकि, अदालत ने फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को बरकरा रखा और अपनी को स्थाई को स्थाई गुजारा भत्ता के रूप में 5 लाख रुपये देने का आदेश दिया। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा आप जिसे चाहेंगे उठा लेंगे

दिल्ली की आबकारी यानी शराब नीति से जुड़े करप्शन और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की नेता के. कविता को मंगलवार को जमानत दे दी। कोर्ट ने कहा कि के. कविता करीब पांच महीनों से हिरासत में हैं। इन मामलों में उनके खिलाफ सीबीआई और ईडी की जांच पूरी हो चुकी है। जांच के मकसद से उनका हिरासत में रहना जरूरी नहीं है। इस मामले में 493 गवाह और 50 हजार दस्तावेज हैं। ऐसे में ट्रायल के जल्द पूरा होने की उम्मीद नहीं है। इसी कोर्ट ने कई आदेशों में कहा है कि अंडर ट्रायल कस्टडी को सजा में नहीं बदलना चाहिए। जमानत दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेसियों की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए। साउथ इंडियन शराब कारोबारी और उनके बेटे को वायदा माफ गवाह बनाने का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि उनकी भूमिका भी के कविता के बराबर है। आप पिक ऐंड चूज नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत से इनकार करने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

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जमानत की शर्तें मौलिक अधिकार को कमजोर नहीं कर सकती

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सहयोगी प्रेम प्रकाश को जमानत देते हुए दोहराया कि जमानत नियम है और जेल अपवाद। कोर्ट ने कहा कि यह सिद्धांत मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम से जुड़े कानून पीएमएलए के मामलों पर भी लागू होता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि पीएमएलए की धारा 45 के तहत जमानत के लिए लगाई गई दोहरी शर्ते जीने और स्वतंत्रता के मूल अधिकारों को कमजोर नहीं कर सकतीं। इस धारा में आरोपी को तभी जमानत मिलती है, जब पहली नजर में साबित हो कि आरोपी ने अपराध नहीं किया और जमानत के बाद अपराध की संभावना भी नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये शर्ते स्वतंत्रता से वंचित करने का आधार नहीं बन सकतीं।

दलों के सलाह पर फैसला नहीं देते

तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने बीआरएस नेता के कविता को मिली जमानत पर सवाल उठाए थे जिस पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई। रेड्डी ने कहा था कि चर्चा है कि कविता को बीआरएस और बीजेपी के बीच समझौते की वजह से जमानत मिली। इस पर नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि जिम्मेदार मुख्यमंत्री का यह कैसा बयान है? इससे लोगों के मन में आशंकाएं पैदा हो सकती हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट 2015 के कैश-फॉर-वोट घोटाले से जुड़े केस को भोपाल ट्रांसफर करने की मांग वाली अर्जी पर सुनवाई कर रहा थी। सीएम रेवंत रेड्डी इसमें आरोपी हैं। जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने रेड्डी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी से कहा, 'क्या आपने अखबार में पढ़ा कि उन्होंने क्या कहा ? क्या एक सीएम को ऐसा बयान देना चाहिए? क्या हम राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा करके आदेश देते हैं? कोई भी हमारे फैसलों की आलोचना करे हमें परेशानी नहीं होती। हम अपने विवेक और शपथ के मुताबिक कर्तव्य निभाते हैं। हम हमेशा कहते हैं कि हम विधायिका में दखल नहीं करेंगे तो उनसे भी यही अपेक्षा की जाती है।

पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ दिल्ली उच्च हाई कोर्ट में याचिका 

योग गुरु बाबा रामदेव के लिए नई कानूनी मुसीबत सामने आ गई है। उनके पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ दिल्ली उच्च हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि ब्रांड के हर्बल टूथ पाउडर 'दिव्य मंजन', में मांसाहारी तत्व शामिल हैं। याचिकाकर्ता का दावा है कि शाकाहारी और पौधे-आधारित आयुर्वेदिक उत्पाद के रूप में प्रचार के कारण 'दिव्य मंजन' का लंबे समय से उपयोग किया जा रहा है। याचिका पर सुनवाई के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद, बाबा रामदेव, केंद्र सरकार और उत्पाद बनाने वाली पतंजलि की दिव्य फार्मेसी को नोटिस जारी किया। अगली सुनवाई 28 नवंबर को होनी है। पतंजलि और इसके सह-संस्थापकों बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को पहले सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापन प्रथाओं में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया था। शीर्ष अदालत ने उन्हें अपने आयुर्वेदिक उत्पादों के सभी भ्रामक विज्ञापन हटाने और जनता से माफी मांगने का निर्देश दिया था। 


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