Manna Dey Death Anniversary: मुश्किल गानों में मन्ना डे को हासिल थी महारथ, मो. रफी भी थे उनके मुरीद

By अनन्या मिश्रा | Oct 24, 2023

जब भी हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री में महान गायकों की बात होती हैं, तो उनमें मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, किशोर कुमार के साथ मन्ना डे का नाम जरूर लिया जाता है। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 24 अक्तूबर को हिंदू म्यूजिक इंडस्ट्री के प्रसिद्ध गायक मन्ना डे का निधन हो गया था। उन्होंने अपने सिंगिग कॅरियर में एक से बढ़कर एक गाने गाए हैं। आज भी लोग उनके गाए गाने गुनगुनाते हैं। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर फेमस गायक मन्ना डे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म

कोलकाता के एक बंगाली परिवार में 1 मई 1919 को मन्ना डे का जन्म हुआ था। उन्होंने साल 1943 में आई फिल्म 'तमन्ना' से बॉलीवुड में गाने की शुरूआत की थी। बता दें कि 50-70 के दशक में मन्ना डे उस चौकड़ी का हिस्सा रहे, जिन्होंने हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री पर राज किया। मन्ना डे के गाने की अनोखी शैली उन्हें अन्य गायकों से अलग बनाती थी। आप मन्ना डे की गायकी का अंदाजा 'लागा चुनरी में दाग', 'एक चतुर नार' 'बाबू समझो इशारे' आदि गानों से लगा सकते हैं। उन्होंने अपने पांच दशकों के गायकी के सफर में बंगाली, गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड़ और असमी भाषा में 3500 से अधिक गाने गाए हैं।

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संगीत की तालीम

बता दें कि कृष्ण चंद्र डे और उस्ताद दाबिर खान से मन्ना डे ने संगीत की तालीम हासिल की थी। उनकी शास्त्रीय संगीत पर पकड़ इतनी मजबूत थी कि मन्ना डे ने सारे क्लासिकल और सेमी क्लासिकल गाने गाए। इसके अलावा उन्होंने कई फिल्मों के लिए मजाकिया अंदाज में भी गाने गाए। जिन्हें आज भी लोग गुनगुनाना पसंद करते हैं। फिल्म पड़ोसन में मन्ना डे द्वारा गाया गाना 'एक चतुर नार' आज भी लोग पसंद करते हैं। इस गाने की लोकप्रियता इतनी है कि कई सिंगिग रियलिटी शो में हिस्सा लेने वाले कंटेस्टेंट इस गाने को गाकर अपनी प्रतिभा साबित करने की कोशिश करते हैं। 


फिल्म पड़ोसन का गाना 'एक चतुर नार' गाना इतना ज्यादा कठिन है कि आज भी म्यूजिक इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को हैरानी होती है कि कोई इतने मुश्किल गाने को इतनी आसानी से कैसे गा सकता है। लेकिन मन्ना डे को मुश्किल गानों को आसानी से गाने में महारथ हासिल थी। जब भी कोई गाना किशोर कुमार या मोहम्मद रफी नहीं गा पाते थे, तो संगीतकार उस गाने के साथ सीधे मन्ना डे के पास पहुंच जाया करते थे। 


रफी भी थे मन्ना के फैन

आपको जानकर हैरानी होगी के मन्ना डे की प्रतिभा का लोहा मोहम्मद रफी जैसे बड़े गायक भी मानते थे। मोहम्मद रफी खुले आम मन्ना डे की तारीफ किया करते थे। मोहम्मद रफी ने एक बार मन्ना डे के बारे में बेहद दिलचस्प किस्सा शेयर करते हुए बताया था कि लोग मेरे गाने सुनते हैं, लेकिन वह मन्ना डे के गाने सुनना पसंद करते हैं। मन्ना डे को संगीत के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देने के लिए पद्मश्री और पद्म विभूषण से भी नवाजा जा चुका है। वहीं साल 2007 में उन्हें प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के अवॉर्ड प्रदान किया गया।


जब मन्ना डे ने गानों से बनाई दूरी

मन्ना डे ने अपने सिंगिग सफर में कई भाषाओं में जबरदस्त गाने गाए हैं। मन्ना डे ने संगीत के क्षेत्र में ऊंचा मुकाम हासिल करने के बाद 90 के दशक में हिंदी म्यूजिक इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया। साल 1991 में मन्ना डे ने फिल्म प्रहार के गाने 'हमारी मुट्ठी में' गाने में आखिरी बार अपनी आवाज दी थी। उन्होंने 'झनक झनक तोरी बाजे पायलिया', 'ऐ मेरी जोहरा जबीं', 'यारी है इमान मेरा' जैसे सदाबहार और यादगार गाने गाए।


निधन

लंबे समय से बीमार चल रहे मन्ना डे ने 24 अक्तूबर 2013 को आखिरी सांस ली। उनकी मौत की खबर से ना सिर्फ बॉलीवुड बल्कि फैंस भी गमगीन हो गए। 94 साल की उम्र में मन्ना डे ने बेंगलुरु के अस्पताल में आखिरी सांस ली।

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