By रेनू तिवारी | Jun 07, 2023
नयी दिल्ली। मणिपुर में काफी लंबे समय से हिंसा का मंजर देखने को मिला है। हिंसा में सेकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। हिंसा प्रभावित क्षेत्रों के चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बलों का पहरा है ताकि फिर से कोई अप्रिय घटना न हो सके। मणिपुर के कुकी समुदाय के सदस्यों ने पूर्वोत्तर के राज्य में जारी हिंसा के विरोध में बुधवार को यहां केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आवास के बाहर प्रदर्शन किया। पुलिस ने यह जानकारी दी। पुलिस ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियां थामे रखी थीं, जिन पर लिखा था कि ‘‘कुकी समुदाय के लोगों के जीवन की रक्षा करें।’’ प्रदर्शनकारियों ने नारे भी लगाए।
पुलिस के मुताबिक, गृह मंत्री के साथ बैठक के लिए चार प्रदर्शनकारियों को उनके आवास के अंदर जाने की अनुमति दी गई, जबकि बाकी को जंतर मंतर भेज दिया गया। मणिपुर में एक महीने पहले भड़की जातीय हिंसा में कम से कम 98 लोगों की जान जा चुकी है और 310 से अधिक लोग घायल हुए हैं।
राज्य में फिलहाल कुल 37,450 लोगों ने 272 राहत शिविरों में शरण ले रखी है। मेइती समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में मणिपुर के पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद तीन मई को राज्य में पहली बार जातीय हिंसा हुई थी।
क्यों हुई थी मणिपुर हिंसा?
भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में 3 मई 2023 को मेइतेई लोगों के बीच एक जातीय संघर्ष छिड़ गया, जो इंफाल घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक और कुकी और ज़ो लोगों सहित आसपास की पहाड़ियों के आदिवासी समुदाय हैं। हिंसा में 70 से अधिक लोग मारे गए, और सैकड़ों घायल हो गए। विवाद का संबंध भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जनजाति के दर्जे के लिए मेइती लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांग से है, जो उन्हें आदिवासी समुदायों के बराबर विशेषाधिकार प्रदान करेगा। अप्रैल में मणिपुर उच्च न्यायालय के एक फैसले ने राज्य सरकार को इस मुद्दे पर चार सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया। आदिवासी समुदायों ने मैतेई की मांग का विरोध किया। ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) ने 3 मई को सभी पहाड़ी जिलों में एकजुटता मार्च निकाला। मार्च के अंत तक, इम्फाल घाटी की सीमा से सटे चुराचांदपुर जिले में और उसके आसपास मेइती और कुकी आबादी के बीच संघर्ष शुरू हो गया।