सीधे-सरल और स्पष्ट इंसान थे गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी

By अमृता गोस्वामी | May 25, 2020

फिल्मों की सफलता में गीतों का बहुत बड़ा हाथ होता है और एक अच्छा गीत लिखे जाने में गीतकार का। रेडियो, टीवी पर अक्सर किसी फिल्म के गीत को सुनाने से पहले उस गीत के गीतकार संगीतकार का नाम भी बताया जाता है और जब बोला जाता है कि इस गीत के गीतकार है ‘मजरूह सुल्तान पुरी’ तो बस, आगे कुछ और कहने की जरूरत नहीं होती, मजरूह सुल्तानपुरी नाम ही काफी है यह बताने के लिए कि आने वाला जो गीत है वह अवश्य ही बहुत सुंदर गीत होगा।

 

‘मजरूह सुल्तानपुरी’ एक ऐसे मंझे हुए गीतकार रहे हैं जिनके गीतों से फिल्में चलती थीं। ‘शामे गम की कसम आज गमगीन हैं हम’ गीत हो या ‘रूप का तुम हो खजाना, तुम हो मेरी जाने-जाना, लेकिन पहले दे दो मेंरा पांच रूपैया बारह आना’ जैसे सुंदर गीतों के रचियता मजरूह सुल्तानपुरी ही थे। 

 

इसे भी पढ़ें: फिल्म और टेलीविजन की स्टार अभिनेत्री थीं रीमा लागू

मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्टूबर, 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में हुआ था। उनका असली नाम ‘असरार उल हसन खान’ था। शायर, गीतकार के रूप में इन्हें ‘मजरूह सुल्तानपुरी’ के नाम से जाना गया। इनके पिता एक पुलिस उप-निरीक्षक थे। बचपन में पढ़ाई के लिए मजरूह सुल्तानपुरी को मदरसे भेजा गया किन्तु वहां फुटबॉल खेलने की वजह से उनके खिलाफ फतवा निकाल दिया गया। बाद में मजरूह ने हकीम बनने की इच्छा व्यक्त की तो उनके पिता ने उन्हें हकीमी की तालीम दिलाई गई। कुछ समय तो मजरूह ने हकीम के रूप में काम भी किया किन्तु किसी वजह से उनका मन वहां भी नहीं लगा और वे शेरो-शायरी की ओर अग्रसर हो गए। 


मजरूह की शेरो-शायरी का जादू इतना था कि मुशायरों में जब वो शेर-शायरी सुनाते तो उन्हें सुनने वाला हर शख्स उनका दीवाना हो जाता था। मुशायरों के दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी से हुई। मजरूह सुल्तानपुरी की शायरी सुनकर जिगर मुरादाबादी भी उनके कायल हो गए। 


1945 में मजरूह सुल्तानपुरी का मुंबई में एक मुशायरे में जाना हुआ। इस मुशयरे में हिन्दी सिनेमा के मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार भी आए हुए थे जो उस समय ‘शाहजहां’ फिल्म बना रहे थे, वे भी मजरूह की शेरो-शायरी सुनकर काफी प्रभावित हुए। ए.आर.कारदार अपनी फिल्म के लिए जिगर मुरादाबादी से गीत लिखवाना चाहते थे किन्तु जिगर मुरादाबादी ने इसके लिए मजरूह सुल्तानपुरी का नाम सजेस्ट किया। कारदार ने मजरूह सुल्तानपुरी को जब फिल्म के लिए गीत लिखने को कहा तो पहले तो वे तैयार नहीं हुए क्योंकि उनका मन तो शेरो-शायरी में ही डूबा हुआ था पर, जब उनके दोस्त उस्ताद जिगर मुरादाबादी ने उन्हें मनाया तो मजरूह सुल्तानपुरी मना नहीं कर पाए। 

 

इसे भी पढ़ें: आधुनिक भारत के शिल्पकार राजीव गांधी का हर फैसला देशहित में होता था

कारदार मजरूह को मशहूर संगीतकार नौशाद के पास ले गए जहां नौशाद ने मजरूह को एक धुन सुनाई और कहा इसकी तर्ज पर कुछ लिखो। मजरूह ने लिखा-‘जब उसने गेसू बिखराए, बादल आए झूम के’। नौशाद को गीत के बोल इतने पसंद आए कि उन्होंने फिल्म ‘शाहजहा’ के लिए मजरूह सुल्तानपुरी को गीतकार रख लिया गया। इस फिल्म में मजरूह के लिखे गीत ‘हम जी के क्या करेंगे, जब दिल ही टूट गया’ को प्रसिद्ध गायक-अभिनेता के.एल. सहगल ने गाया जो दशकों तक लागों की जुबां से नहीं उतरा। कहा जाता है कि सहगल को भी यह गाना इतना पसंद आया कि उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि उनकी अंतिम यात्रा में यही गाना बजाया जाए और ऐसा हुआ भी। 


इसके बाद गीतकार के रूप में मजरूह सुल्तानपुरी की कामयाबी का सिलसिला जो चल पड़ा वह कभी रूका नहीं, उन्होंने ताउम्र एक से बढ़कर एक हिट गीत दिए। वे लगातार गाने लिखते रहे और उनकी फिल्में लगातार हिट होती रहीं। 1945 से शुरू हुआ उनका फिल्मी सफर 2000 तक जारी रहा। फिर चाहे 1947 में एस.फजील की फिल्म ‘मेहंदी’ के गीत हों, 1949 में एस. महबूब खान की फिल्म ‘अंदाज’ के गीत या 1950 में बनी शाहिद लतीफ की फिल्म ‘आरजू’ के गीत। सभी फिल्मों में मजरूह सुल्तानपुरी के गीतों ने खूब वाहवाही बटोरी। आरजू के गीत ‘ए दिल मुझे ऐसी जगह ले चल, जहां कोई न हो’, ‘जाना न दिल से दूर’, ‘आंखों से दूर जाकर’, ‘कहां तक हम उठाएं गम’ और ‘जाओ सिधारो हे राधे के श्याम’ उस समय हर किसी के होठों पर सजते थे। 


गीतकार, शायर मजरूह सुल्तानपुरी सीधे-सरल स्पष्ट इंसान थे, उनके मन में जो होता था बोल देते थे। उनके साथ 1949 का एक वाकया ऐसा भी जुड़ा है जब उन्हें अपनी लिखी नज़्म के खिलाफ जेल की सजा भुगतनी पड़ी, उनके ऊपर सरकार विरोधी कविता लिखने का आरोप लगा था। हालांकि मजरूह को कहा गया कि वे इसके लिए माफी मांग लें तो रिहा कर दिए जाएंगे, किन्तु उन्होंने माफी मांगने से इंकार कर दिया और जेल में रहना मंजूर किया, उन्हें दो साल की सजा हुई। जेल के इन दो सालों में मजरूह का परिवार आर्थिक तंगी गुजरने लगा था। तब उनकी मदद के लिए राजकपूर ने हाथ बढ़ाया किन्तु मजरूह मदद के लिए तैयार नहीं हुए तब राजकपूर ने जेल में रहते हुए ही उनसे अपनी आगामी फिल्म के लिए गीत लिखाया और पारिश्रमिक उनके परिवार वालों को पहुंचाया गया। 1950 में मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा यह गीत ‘इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’ राज कपूर ने 1975 में अपनी फिल्म ‘धर्म- कर्म’ में इस्तेमाल किया था। 1951-52 में मजरूह जेल से बाहर आए और तब से लगातार उन्होंने फिल्मों के लिए एक से बढ़कर एक गीत लिखे।


मशहूर संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की पहली फिल्म ‘दोस्ती’ के सुपर हिट गीतों के गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ही थे जिन्होंने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी को भी हिट बना दिया। इसके साथ ही राजेश रोशन की फिल्म कुवारा बाप,  आनंद मिलिंद की कयामत से कयामत मूवीज़ के गीत भी मजरूह सुल्तानपुरी की कलम से ही निकले। मजरूह सुल्तानपुरी के मशहूर गीतों की लिस्ट बहुत लंबी है। हिन्दी सिनेमा के लगभग सभी प्रसिद्ध संगीतकार और गायकों के लिए मजरूह सुल्तानपुरी ने गीत लिखे। संगीतकार नौशाद और फिल्म निर्देशक नासिर हुसैन के साथ मजरूह की जोड़ी खूब जमी। नासिर हुसैन की फिल्मों ‘तुम सा नहीं देखा’, ‘अकेले हम अकेले तुम’, ‘जमाने को दिखाना है’, ‘हम किसी से कम नहीं’, ‘जो जीता वही सिकंदर’ और ‘कयामत से कयामत तक’ के लिए उन्होंने गीत लिखे। इन सभी फिल्मों ने खूब नाम कमाया। 

 

मजरूह सुल्तानपुरी ने हर रंग के गीत लिखे फिर चाहे वो गमगीन हों या तड़क भड़क वाले। उन्होंने ‘इना, मीना, डीका’ और ‘मोनिका ओ माई डार्लिंग’ जैसे गीत लिखे तो ‘हम हैं मता-ए-कूचा ओ बाजार की तरह’ और ‘रूठ के हमसे कहीं जब चले जाओगे तुम, ये न सोचा था कभी इतने याद आओगे तुम’, जैसे गीतों की भी रचना की। 


उन्होंने करीब तीन सौ फिल्मों के लिए चार हजार से ज्यादा गीत लिखे. इनमें से ज्यादातर अब भी लोगों की जुबां पर चढ़े हुए हैं। ‘छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा’, ‘छलकाए जाम आइए आपकी आंखो के नाम होठों के नाम’, ‘चांदनी रात बड़ी देर के बाद आई है ये मुलाकात बड़ी देर के बाद आई है’, ‘लेके पहला-पहला प्यार भरके आंखों में खुमार’, ‘पहले सौ बार इधर और उधर देखा है’, ‘ऐसे न मुझे तुम देखो,सीने से लगा लूंगा’, ‘चलो सजना जहां तक घटा चले’,‘दिल का भंवर करे पुकार’, ‘होठों पे ऐसी बात में दबा के चली आई’, इत्यादि कितने ही गीतों की बात कर लो सब एक से बढ़कर एक गीत ‘मजरूह सुल्तानपुरी’ की ही देन हैं। 


‘मजरूह सुल्तानपुरी’ पहले ऐसे गीतकार थे, जिन्हें ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से नवाजा गया। यह पुरस्कार उन्हें 1993 में दिया गया। 


‘दोस्ती’ फिल्म के लिए इनके लिखे गीत ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ-सवेरे’ के लिए 1965 में इन्हें फिल्मफेयर अवार्ड मिला और इनकी मशहूर शेरो-शायरी के लिए उन्हें गालिब और इकबाल जैसे बड़े सम्मानों से सम्मानित किया गया। 


24 मई, 2000 को 80 वर्ष की उम्र में बीमारी की वजह से ‘मजरूह सुल्तानपुरी’ का निधन हो गया किन्तु अपने बेहतरीन गीतों और शेरों-शायरियों के जरिए वे हमारे बीच सदा मौजूद रहेंगे।


अमृता गोस्वामी

प्रमुख खबरें

PM Narendra Modi कुवैती नेतृत्व के साथ वार्ता की, कई क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा हुई

Shubhra Ranjan IAS Study पर CCPA ने लगाया 2 लाख का जुर्माना, भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने है आरोप

मुंबई कॉन्सर्ट में विक्की कौशल Karan Aujla की तारीफों के पुल बांध दिए, भावुक हुए औजला

गाजा में इजरायली हमलों में 20 लोगों की मौत