Major Dhyan Chand Death Anniversary: हॉकी के जादूगर कहे जाते थे मेजर ध्यानचंद, चांद की रोशनी में करते थे प्रैक्टिस

By अनन्या मिश्रा | Dec 03, 2024

आज ही के दिन यानी की 03 दिसंबर को हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का निधन हो गया था। आज भी भारत और दुनियाभर में लोगों के लिए ध्यानचंद के लिए आदर्श हैं। आज भी लोगों का मानना है कि ध्यानचंद से बेहतर हॉकी खिलाड़ी आज तक दुनिया को नहीं मिला। कुछ लोगों के लिए मेजर ध्यानचंद एक कलाकार थे। जो अपनी हॉकी स्टिक को पेंट ब्रश की तरह इस्तेमाल करते थे। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर मेजर ध्यानचंद के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 29 अगस्त 1905 को ध्यानचंद का जन्म हुआ था। उन्होंने महज 16 साल की उम्र में सेना ज्वॉइन कर ली थी। सेना में रहते हुए ध्यानचंद का हॉकी से प्यार बढ़ गया। बताया जाता है कि रात में चांद की रोशनी में वह घंटो हॉकी की प्रैक्टिस किया करते थे। इसीलिए उनके साथी उनको प्यार से ध्यानचंद कहने लगे। इस तरह से उनका नाम ध्यान सिंह से ध्यानचंद पड़ गया।

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ऐसे बने सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी

बता दें कि हॉकी मैच के दौरान ध्यानचंद कई कोशिशों के बाद भी गोल नहीं कर पाए थे। जिसके कारण वह खुश नहीं थे, जिसकी वजह से उन्होंने अधिकारियों से गोलपोस्ट का आकार मापने को कहा, जिसमें पाया गया कि गोलपोस्ट की आधिकारिक चौड़ाई अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप नहीं थी। एक बार एक बार नीदरलैंड के अधिकारियों ने ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को यह जांचने के लिए तोड़ दिया था कि कहीं उनकी स्टिक में कोई चुंबक तो नहीं है।


क्योंकि अधिकारी भी ध्यानचंद के खेल से हैरान थे। हॉकी के खेल में अविश्वसनीय महारत हासिल की थी और उन्होंने अपने करियर में कई सारे गोल किए थे। साल 1932 के ओलंपिक में भारत ने अमेरिका को 24-1 से और जापान को 11-1 से हराया था। जिसमें से ध्यानचंद और रूप सिंह ने 25 गोल किए थे। तब से उनको हॉकी जुड़वा कहा जाने लगा था।


हिटलर भी हुए फैन

साल 1935 में भारतीय हॉकी टीम जब ऑस्ट्रेलिया में थी, तो ध्यानचंद की एडिलेड में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजी के दिग्गज डॉन ब्रैडमैन से मुलाकात हुई। ब्रैडमैन उनका खेल देखने के बाद ध्यानचंद की हॉकी स्टिक वर्क से बेहद प्रभावित हुए। यह भी कहा जाता है कि जर्मनी के एडोल्फ हिटलर भी ध्यानचंद के हॉकी खेलने के तरीके से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने भारतीय खिलाड़ी ध्यानचंद को जर्मन सेना में कर्नल पद देने का भी प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।


भारतीय खिलाड़ी ध्यानचंद ने 185 खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था और 400 से ज्यादा गोल किए थे। उनका बनाया यह रिकॉर्ड अभी तक कायम है। साल 1928, 1932 और 1936 में ध्यानचंद ने भारत की लगातार 3 ओलंपिक गोल्ड मेडल में जीत दिलाई। फिर साल 2012 में भारत सरकार ने उनके जन्मदिन पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाए जाने की घोषणा कर दी। हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद के सम्मान में देश के सर्वोच्च खेद पुरस्कार का नाम बदलकर 'ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार' कर दिया गया है। 


मृत्यु

03 दिसंबर 1979 को कैंसर के कारण मेजर ध्यानचंद का निधन हो गया था।

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