By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Oct 02, 2020
नयी दिल्ली। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पसंदीदा भजन ‘‘वैष्णव जन तो’’ को शुक्रवार को बापू की 151वीं जयंती पर कश्मीरी में जारी किया गया। इसका उद्देश्य क्षेत्र में शांति के संदेश का प्रसार करना है। इस भजन की रचना 15वीं शताब्दी के गुजराती कवि-संत नरसिंह मेहता ने करीब 600 साल पहले की थी। यह भजन मानवता, सहानुभूति और सत्यता जैसे मूल्यों का संदेश देता है, जिनका गांधी जी ने जीवन भर निष्ठापूर्वक पालन किया। यही वजह है कि लोकप्रिय कश्मीरी गायक गुलज़ार अहमद गनेई और लेखक शाज़ा हक़बारी के साथ मिलकर कार्यकर्ता कुसुम कौल व्यास ने महात्मा गांधी की 151वीं जयंती पर इस जारी करने का मन बनाया।
उन्होंने कहा, ‘‘ यह मूल रूप से गुजराती गीत है और इसलिए कई लोग इसका वास्तविक अर्थ समझ नहीं पाते। मैंने सोचा की अगर इसका कश्मीरी में अनुवाद किया जाए, तो शायद शांति और सौहार्द का संदेश लोगों तक पहुंच पाए। शायद कुछ लोग इस गीत के बारे में और क्यों यह गांधी जी को इतना पसंद था इसके बारे में सोचने लगे।’’ ऐसा कहा जाता है कि गांधी जी को यह भजन बहुत पसंद था और शांति व सौहार्द के संदेश के प्रसार के लिए उनकी प्रार्थना सभाओं में अकसर यह गायाजाता था।
उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों में, गंगूबाई हंगल, पंडित जसराज और लता मंगेशकर जैसे कई लोकप्रिय कलाकारों ने इस अलग-अलग तरह से पेश किया, लेकिन पहली बार इसे कश्मीरी में जारी किया जा रहा है। व्यास ने कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान इसका कश्मीरी में अनुवाद करने का मन बनाया। कश्मीरी गायक गुलजार अहमद गनई ने इसे आवाज दी हैं और शहबाज हकबारी ने इसका अनुवाद किया है। इस गीत की पूरी शूटिंग श्रीनगर के शंकराचार्य मंदिर सहित कश्मीर घाटी में की गई है।