By अभिनय आकाश | Oct 18, 2022
गुजरात विद्यापीठ के 68वें वार्षिक दीक्षांत समारोह से कुछ घंटे पहले 24 में से नौ ट्रस्टियों ने राज्यपाल आचार्य देवव्रत की कुलाधिपति के रूप में नियुक्ति के लिए "शक्ति के अनैतिक उपयोग" का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया। इस दौरान उन्होंने इस नियुक्ति में ‘‘अनुचित जल्दबाजी’’ किए जाने और ‘‘राजनीतिक दबाव’’ होने का आरोप लगाया। इसके साथ ही अपील की कि प्रस्ताव को अस्वीकार करके "लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखें। एक संयुक्त बयान में नौ ट्रस्टियों ने कहा कि नए चांसलर के रूप में देवव्रत की नियुक्ति "आम सहमति से नहीं, बल्कि बुरी तरह से खंडित वोट से हुई।
राज्यपाल को की गई अपनी अपली में ट्रस्टियों ने लिखा कि ये गांधी के मूल्यों, पद्धतियों और प्रथाओं की पूर्ण अवहेलना थी। महामहिम, लोकतंत्र के मौलिक मूल्यों को बनाए रखने और पारदर्शी निर्णय लेने के लिए आपको चांसलर के रूप में कार्यभार संभालने से इनकार करके एक उदाहरण स्थापित करने का अवसर मिला है। इसके साथ ही न्यासियों ने राज्यपाल देवव्रत से अपील की कि वे ‘‘लोकतंत्र के मौलिक मूल्यों और विश्वविद्यालय के पारदर्शी स्वायत्त निर्णय लेने को बनाए रखने के लिए कुलाधिपति के रूप में कार्यभार ग्रहण करने से इनकार कर दें।
वहीं संस्थान ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, आजीवन न्यासी और नौ न्यासियों द्वारा जारी संयुक्त बयान के हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक नरसिंहभाई हठीला ने भी इस्तीफे को स्वीकार नहीं करने के ‘गवर्निंग काउंसिल’ के फैसले को मंजूरी दी ताकि संस्थान को लंबे समय तक उनका मार्गदर्शन मिलता रहे। एक पत्र में, नौ न्यासियों ने कहा कि देवव्रत का कुलाधिपति के रूप में चयन ‘‘न तो सहज था और न ही न्यासी बोर्ड का सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय था।’’