मधुकर दत्तात्रेय देवरस ने मृत्यु से पहले ही रज्जू भैया को सौंप दिया था सरसंघचालक का दायित्व

By अनुराग गुप्ता | Jun 17, 2022

मधुकर दत्तात्रेय देवरस जिन्हें बाला साहेब देवरस के नाम से भी जाना जाता है। इनको लेकर साल 1940 के आस पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने संघ शिविर में एक बात कही थी। जिससे अंदेशा लगाया जा सकता है कि मधुकर दत्तात्रेय देवरस संघ के लोगों के लिए कितना महत्व रखते हैं। दरअसल, माधव सदाशिव गोलवलकर ने कहा था कि जिन लोगों ने हेडगेवार साहब को नहीं देखा है वो लोग बाला साहेब देवरस को देखें वो उनकी ही प्रतिमूर्ति हैं।


कौन हैं बाला साहेब देवरस ?

बाला साहेब देवरस का जन्म 11 दिसम्‍बर, 1915 को नागपुर में हुआ था। उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे। डॉ हेडगेवार ने साल 1925 में संघ की स्थापना की थी और जब पहली शाखा की शुरुआत हुई उसमें बाला साहेब देवरस ने हिस्सा लिया था। उस वक्त बाला साहेब देवरस छठी कक्षा में पढ़ते थे और उन्होंने शुरुआती दिनों से ही शाखा में जाना प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने देश के प्रति सच्ची निष्ठा दिखाते हुए संघ को मजबूती प्रदान करने का काम किया और समय के साथ उन्होंने संघ में कई सकारात्मक बदलाव भी किए।

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बाला साहेब देवरस का परिवार स्थायी तौर पर मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले का था लेकिन उनका जन्म नागपुर में हुआ और उन्होंने अपनी शिक्षा भी नागपुर से ही पूरी की। शिक्षा दीक्षा पूरी होने के बाद उन्हें नागपुर में नगर कार्यवाह का दायित्व सौंपा गया था। साल 1965 में उन्हें सरकार्यवाह का दायित्व सौंपा गया जो 6 जून, 1973 तक उनके पास रहा।


जब बाला साहेब देवरस को सौंपी गई थी अहम जिम्मेदारी

5 जून, 1973 को संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर का निधन हो गया। उस वक्त बाला साहेब देवरस आंध्र प्रदेश में थे, वहां पर वह एक प्रशिक्षण शिविर में हिस्सा ले रहे थे। जब उन्हें गुरू गोलवलकर के निधन की सूचना मिली और फिर 6 जून को वो सीधे नागपुर मुख्यालय पहुंचे। गुरू गोलवलकर ने अपने अंतिम दिनों में तीन पत्र लिखे थे। जिसे उन्होंने अखिल भारतीय व्यवस्था प्रमुख पांडुरंग पंत क्षीरसागर को सौंपा था और उन्हें निर्देश दिया था कि मेरे निधन के बाद इन पत्रों को पढ़ा जाए।


गुरू गोलवलकर के अंतिम संस्कार से पहले बाला साहेब देवरस ने दो पत्रों को पढ़ा था लेकिन उन्होंने आखिरी पत्र बाबाराव भिड़े को पढ़ने के लिए दिया, जो उस वक्त महाराष्ट्र प्रांत संघचालक थे और यही वो पत्र था जिसमें संघ के भविष्य के बारे में लिखा गया था। 


इसी बीच बाबाराव भिड़े ने स्वयंसेवकों की भीड़ के बीच में इस पत्र को पढ़ा। जिसमें गुरू गोलवलकर ने अपने निधन के बाद सरसंघचालक की जिम्मेदारी बाला साहेब देवरस को सौंपने की बात कही थी। उस वक्त बाला साहेब देवरस की 58 साल के थे और उन्होंने संघ को मजबूती प्रदान करने के लिए अथक यात्राएं की। इसके बाद साल 1975 जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की। उस वक्त बाला साहेब देवरस ने जेल यात्रा की। बाला साहेब देवरस को 30 जून, 1975 को गिरफ्तार करके महाराष्ट्र की यरवदा जेल में रखा गया था।

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आपातकाल के दौर में समाचार पत्रों पर भी सेंसरशिप लागू हो गया था। ऐसे में आपातकाल के दौर में हिंदुस्तान में संघ के बारे में ज्यादा कुछ नहीं छपा लेकिन विदेशी अखबारों में जरूर संघ की खबरें हुआ करती थी। उस वक्त 25,000 से ज्यादा संघ के स्वयंसेवकों को गिरफ्तार कर लिया गया था। जिसके बाद बहुत सारे स्वयंसेवक अंडर ग्राउंड हो गए थे। 


साल 1994 में सरसंघचालक का पद छोड़ा और प्रोफेसर राजेंद्र सिंह 'रज्जू भैया' को सरसंघचालक का दायित्व दिया था। बाला साहेब देवरस पहले सरसरंघचालक थे जिन्होंने जीवित रहते हुए इस जिम्मेदारी को अन्य व्यक्ति को सौंपा था।


बाला साहेब देवरस से जुड़े रोचक तथ्य

कहा जाता है कि बाला साहेब देवरस की संगठन क्षमता कमाल की थी, क्योंकि उन्होंने नागपुर में एक साथ 15 शाखाओं की शुरुआत की थी। इसके अलावा उन्होंने संघ के घोष की शुरुआत भी की थी... घोष का मतलब बैंड होता है। जिसका सीधा मतलब है कि संघ के बैंड की शुरुआत बाला साहेब देवरस ने की थी और तो और पहले 30 के दशक में शाखा 5 दिन की ही होती थी। ऐसे में बाला साहेब देवरस को लगता था कि शाखा दो दिन क्यों नहीं लगती है और फिर उन्होंने इसमें बदलाव कराया। जिसके बाद शाखा सातों दिन लगने लगी थी।


- अनुराग गुप्ता

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