By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | May 03, 2020
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मार्च, अप्रैल, मई, जून इसके सीजन के महीने होते हैं। इस दौरान यह काफी ज्यादा बिकता है। हर तरह से इसकी जबर्दस्त मांग रहती है लेकिन कोरोना महामारी ने सबकुछ खत्म कर दिया है। हमारी दुकानों और गोदामों में माल भरा है। साथ ही कारीगरों के यहां भी पड़ा है। अब समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे माल बेचेंगे। छाबलानी ने बताया कि पूरे लखनऊ में करीब एक लाख चिकन कारीगर और छह हजार चिकन दुकानदार हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि जो कारीगर हमारे पास तैयार माल लाएंगे, उन्हें भुगतान कैसे किया जाएगा। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन की मांग है कि सरकार हमें राहत पैकेज दे। सरकार साल भर के लिये बिना ब्याज के कर्ज मुहैया कराये ताकि व्यापारियों को आसानी हो। सेठ ब्रदर्स फर्म के मालिक दीपक सेठ ने बताया किरमजान का महीना हमारा पीक सीजन होता है। इसमें पूरे साल की कमाई होती है, मगर अब सब खत्म हो गया है। उन्होंने बताया कि सम्पूर्ण चिकन उद्योग को देखें तो इसमें कढ़ाई करने वालों के साथ—साथ धोबी, सिलाई करने वाले, काज बनाने वाले और बटन लगाने वाले भी शामिल हैं। ये सब तबाह हो गये हैं। इन्हें भी अगर मिला लें तो कम से कम 10 लाख लोग बेरोजगार हो गये हैं। सेठ ने कहा कि इस साल तो हमें कारोबार भूल ही जाना होगा। अब जो भी माल है, वह अगले साल ही बिकेगा। अगर दुकानें खुलेंगी भी तो लॉकडाउन के फौरन बाद लोगों के पास खरीदारी करने के लिये धन नहीं होगा।
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उधर, जरी-जरदोजी कारीगरों की स्थिति भी दयनीय हो गयी है। इन कारीगरों ने भी राज्य सरकार से राहत की मांग की है। जरदोजी यूनियन के पूर्व उपाध्यक्ष आसिफ अली ने बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर जरदोजी कारीगरों को भी श्रमिकों की तरह एक-एक हजार रुपये की सहायता देने की मांग की है। अली ने बताया कि लखनऊ में करीब 50 हजार परिवारों के लगभग ढाई लाख लोगों की रोजी-रोटी जरी-जरदोजी के काम पर ही टिकी है। मगर, लॉकडाउन के कारण कारोबार ठप है और कारीगर फ़ाक़ाकशी को मजबूर हैं। जरदोजी कारीगर नसीब बानो ने बताया कि लॉकडाउन के कारण काम बंद है और कारीगरों के सामने खाने-पीने का संकट है। सरकार ने हमारी कोई मदद नहीं की है। हम रोजाना जो काम करते थे, उसी से गुजारा होता था। हम चाहते हैं कि सरकार हमारी मदद करे। मालूम हो कि लखनऊ अपने चिकन और जरी—जरदोजी की कढ़ाई वाले कपड़ों के लिये पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां बने कपड़ों की देश के विभिन्न राज्यों उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल और महाराष्ट्र में खासी मांग होती है। इसके अलावा सऊदी अरब, अमेरिका, सिंगापुर समेत अनेक देशों में इनका निर्यात भी होता है।