By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Aug 09, 2021
नयी दिल्ली। अपने ओलंपिक पदार्पण पर पदक जीतना लवलीना बोरगोहेन के लिये सोने पे सुहागा जैसा रहा लेकिन इस भारतीय मुक्केबाज ने कहा कि तोक्यो ओलंपिक अब अतीत की बात हैं और वह पेरिस में 2024 में होने वाले खेलों के लिये अपने खेल के हर पहलू में नये सिरे से शुरुआत करेगी। लवलीना ने तोक्यो में महिलाओं के 69 किग्रा भार वर्ग में कांस्य पदक जीता। उन्होंने से विशेष बातचीत में अपने करियर के विभिन्न पहलुओं और पदक जीतने के बाद की जिंदगी पर नजर डाली। यह 23 वर्षीय खिलाड़ी ओलंपिक में पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय मुक्केबाज है। उनसे पहले विजेंदर सिंह (2008) और एमसी मैरीकॉम ने यह उपलब्धि हासिल की थी। लवलीना ने अपना अभियान समाप्त करने के बाद ही अपने बलिदानों पर बात करने की सौगंध खायी थी और उन्होंने ऐसा किया भी। उन्होंने कहा, ‘‘मेरा पहला बलिदान पिछले आठ वर्षों से घर से दूर रहना और मुश्किल परिस्थितियों में परिवार वालों का साथ नहीं दे पाना था। यह सबसे बड़ा बलिदान था। ’’
लवलीना ने कहा, ‘‘मैंने व्यक्तिगत तौर पर अपनी कुछ इच्छाओं को मारा जैसे वह भोजन नहीं कर पाना जैसा कि मेरी उम्र के लोग पसंद करते हैं। मैंने खेल पर ध्यान देने के लिये अवकाश नहीं लिया और ऐसा लगातार आठ साल तक चला।’’ उन्होंने अब छुट्टियां मनाने की योजना बनायी है और इसके बाद पेरिस ओलंपिक की तैयारियों में जुटना चाहती हैं जिनका आयोजन तीन साल बाद होना है। उन्होंने कहा, ‘‘तोक्यो ओलंपिक अब अतीत की बात है। मुझे केवल एक नहीं अपने खेल के हर पहलू पर नये सिरे से शुरुआत करनी होगी।’’ उनके बदलावों में अपने घूंसों को अतिरिक्त मजबूती प्रदान करना भी शामिल होगा क्योंकि तुर्की की ओलंपिक चैंपियन बुसेनाज सुरमेनेली के खिलाफ सेमीफाइनल में हार के दौरान लवलीना का यह कमजोर पक्ष नजर आ रहा था। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि ताकत और अनुकूलन पर काम नहीं किया गया। इस पर काम हो रहा था। आप यह कह सकते हैं कि वह उस स्तर पर नहीं था जिस पर आदर्श तौर पर इसे होना चाहिए थे। मैंने अपनी ताकत और अनुकूलन पर केवल पिछले चार महीनों में ही काम किया।
लवलीना ने कहा, ‘‘मुझे इसका लाभ मिला लेकिन ओलंपिक जैसी प्रतियोगिता के लिये चार महीने पर्याप्त नहीं होते हैं। उससे कुछ नहीं होता आपको चार साल के चक्र में इस तरह का काम करना होता है। ’’ उन्होंने पिछले कुछ वर्षों से अपनी भावनाएं दबा रखी थी जो पदक पक्का होने के बाद खुलकर सामने आयी। लवलीना ने कहा, ‘‘कई वर्षों तक मेरी भावनाएं अंदर ही दबी रही। लेकिन इस ओलंपिक में जब हर बार रिंग पर उतरने पर मुझे देशवासियों के समर्थन का अहसास हुआ तो तब मेरी भावनाएं बाहर निकलकर आ गयीं।’’ ओलंपिक में लवलीना के लिये सबसे यादगार पल क्वार्टर फाइनल में पूर्व विश्व चैंपियन नीन चिन चेन को हराना रहा। उन्होंने कहा, ‘‘सबसे यादगार पल मैं आखिर में उस मुक्केबाज को हराने में सफल रही जिसने यहां आने से पहले मुझे चार बार हराया था। उसे ओलंपिक में हराना मेरे करियर का विशेष क्षण था। ’’ इस मुक्केबाज ने कहा, ‘‘दूसरा यादगार पल कतर और इटली के बीच ऊंची कूद का स्वर्ण पदक साझा किया जाना रहा। इससे पता चलता है कि मानवता जिंदा है और खेल एकमात्र जरिया है जो दो देशों, दो इंसानों को इस तरह से जोड़ सकता है। ’’
इटली के गियानमार्को ताम्बेरी और कतर के मुताज बारशिम ने पुरुषों की ऊंची कूद में समान 2.37 मीटर की ऊंचाई नापी थी। वह बारशिम थे जिन्होंने अपने अच्छे मित्र ताम्बेरी के साथ खिताब साझा करने की पेशकश की थी। ऊंची कूद में दोनों खिलाड़ियों के सहमत होने पर पदक साझा करने का प्रावधान है लेकिन पिछले 100 वर्षों से अधिक समय में ऐसा पहली बार हुआ। लवलीना ने कहा, ‘‘कोई कितना भी मतभेद पैदा करने की कोशिश करे, खेल सभी को साथ ला सकते हैं। मैंने उसको देखकर यह सीख ली।’’ स्वयं को शांतचित रखने के लिये ध्यान का सहारा लेने वाली लवलीना ने कहा कि यदि किसी को स्वयं पर विश्वास है तो फिर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी मदद की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने कहा, ‘‘यदि आपको स्वयं पर भरोसा है तो फिर मुझे नहीं लगता कि आपको मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी मदद की जरूरत है।’’ लवलीना की जिंदगी कुछ दिनों में ही बदल गयी और उन्होंने कहा कि वह अन्य खिलाड़ियों से सीख लेकर इस तरह की लोकप्रियता में जीना सीखेंगी। उन्होंने कहा, ‘‘भारत में कई आदर्श खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपेक्षाओं का बोझ अपने कंधों पर उठाया है। मैं उनसे सबक लूंगी। मैं स्वयं को नहीं बदलूंगी, मैं अपने पदक का रंग बदलूंगी। मैं हमेशा मुक्केबाजी की छात्रा रहूंगी।