Gyan Ganga: भगवान शंकर की समस्त लोकों में सबसे अधिक महिमा है

By सुखी भारती | Jan 10, 2025

भोलेनाथ ऐसे योगी हैं, जिनकी महिमा को शब्दों में बाँधना उतना ही असाध्य है, जितना कि कागज़ की नौका से सागर पार करना। क्योंकि अपने जीवन चरित्र से संसार को, भगवान शंकर ने एक ही महत्वपूर्ण उपदेस दिया, कि जीव को किसी की प्रिय अथवा अप्रिय स्थिती में, प्रभु के नाम सुमिरन का पल्लू नहीं छोड़ना चाहिए। लेकिन कामदेव ने क्या किया? भगवान शंकर की समाधि में ही खलल डाल दिया। परिणाम स्वरुप उसे अग्नि भेंट होना पड़ा। जिस कारण बाहरी दृष्टि से देखने पर तो यही लगता है, कि भगवान शंकर ने कामदेव को दण्ड दिया है। किंतु वास्तव में उन्होंने कामदेव को दण्ड नहीं, अपितु अमर कर दिया था। कारण कि ससरीर कोई भी हो, तो उसे कहीं भी, कभी भी मारा जा सकता है। किंतु जिसका सरीर ही न हो, केवल सूक्षम आकार में हो, उसे भला कोई कैसे मार सकता है? कहने का तात्पर्य, कि एक योगी अगर किसी को दण्ड देता भी दिखाई देता है, तब भी वह उसे वरदान से ही सुशोभित कर रहा होता है। इसी कारण भगवान शंकर की समस्त लोकों में सबसे अधिक महिमा है।


इधर देवताओं ने जब सुना, कि भगवान शंकर ने कामदेव का वध कर दिया है, तो वे ब्रह्मा जी एवं श्रीविष्णु जी के साथ वहाँ गए, जहाँ भगवान शंकर बिराजमान थे। सभी ने भगवान शंकर की उत्तम से उत्तम स्तुतियाँ की। भगवान शंकर सभी महान विभूतियों का दर्शन कर अति प्रसन्न हुए। उन्होंने सबको एक साथ पाकर पूछा-

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‘बोले कृपासिंधु बृषकेतू।

कहहु अमर आए केहि हेतू।।

कह बिधि तुम्ह प्रभु अंतरजामी।

तदपि भगति बस बिनवउँ स्वामी।।’


हे देवताओ! कहिए, आप किसलिए यहाँ पधारे हैं? ब्रह्मा जी ने कहा- हे प्रभु! आप अन्तर्यामी हैं, तथापि हे स्वामी! भक्तिवश मैं आपसे विनती करता हूँ।


ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर को बडे़ सधे शब्दों में विनती की। वे बोले, कि मैं आपसे भक्तिवश विनती करता हूं। ब्रह्मा जी के कहने का अर्थ था, कि जो मैं आपसे प्रर्थना कर रहा हूं, उसमें मेरी कोई व्यक्तिगत रुचि नहीं है। बस मेरा एक भक्तिभाव है। अब भगवान शंकर को स्वार्थ भाव की बजाये, भक्ति भाव से कुछ कहा जाये, तो वे भला क्यों नहीं सुनेंगे? किंतु समस्या तो यही थी, कि वे सारी बात तो देवताओं की ओर से रख रहे थे। वे कैसे कहें, कि देवताओं को आपके वीर्य से उत्पन्न पुत्र चाहिए। जिससे कि तारकासुर का वध संभव हो पाये। तो उन्होंने देवताओं की बात को थोड़ा घुमाकर रखा-


‘सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु।

निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु।।’


अर्थात हे शंकर भगवान! यह जो देवता आप देख रहे हैं न? तो ये ऐसे ही आपके अकेले के दर्शन करने के लिए नहीं आए हैं। अपितु आपके साथ किसी अन्य विभूती के दर्शन भी इन्हें चाहिए।


भगवान शंकर ने कहा, कि किसी और के दर्शन से आपका तात्पर्य?


तो ब्रह्मा जी बोले, कि सभी देवता चाहते हैं, कि वे आपका विवाह अपनी आँखों से देखें। ब्रह्मा जी ने जब यह कहा, कि ऐसी कृपा करें, कि सभी देवतागण आपका विवाह अपने नेत्रें से देखें, तो वे यह निश्चित करना चाह रहे हैं, कि कहीं ऐसा न हो, कि अभी तो भगवान शंकर सभी की प्रर्थना स्वीकार करके कह दें, कि आप निश्चिंत होकर जाईये! हम विवाह कर लेंगे, और आप सब को इसकी सूचना भी कर देंगे। ब्रह्मा जी बिलकुल भी ऐसा कच्ची योजना नहीं चाह रहे थे। कारण कि भगवान शंकर ने हमारी प्रार्थना शिरोधार्य तो करली, किंतु उनके सीस पर बहती गंगा में सब बह गया, तो किसकी मईया को जाकर मौसी कहेंगे? इसलिए ब्रह्मा जी ने यह संभावना ही न रखी, कि भगवान शंकर का विवाह यूँ ही कही एकाँत व चुपचाप हो जाये। अपनी बात को और दृढ़ करते हुए वे फिर बोले-


‘यह उत्सव देखिअ भरि लोचन।

सोइ कछु करहु मदन मद मोचन।।’


अर्थात आप ऐसी कृपा करें, कि आपका विवाह किसी उत्सव से कम नहीं होना चाहिए। जिससे कि सभी देवता उस उत्सव को नेत्र भरकर देखें।


ब्रह्मा जी ने यह भी सुनिश्चित कर दिया, कि केवल देवता ही नहीं, उस विवाह में चारों दिशाओं से अतिथि आने चाहिए। तभी तो वह विवाह आयोजन उत्सव का रुप ले पायेगा।


भगवान शंकर ने जब ब्रह्मा जी की यह प्रार्थना सुनी, और श्रीराम चन्द्र जी के वचनों को याद किया, तो उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक यही कहा, कि ऐसा ही हो।


भगवान शंकर के श्रीमुख से यह वचन निकलने ही थे, कि सभी देवतागण प्रसन्नता से झूम उठे। नगाड़े बजाने लगे और फूलों की वर्षा करते हुए गाये जा रहे हैं, कि हे देवताओं के स्वामी जय हो, आपकी जय हो-


‘सुनि बिधि बिनय समुझि प्रभु बानी।

ऐसेइ होउ कहा सुखु मानी।।

जब देवन्ह दुंदुभीं बजाई।

बरषि सुमन जय जय सुर साईं।।’


(क्रमशः)


- सुखी भारती

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