By ललित गर्ग | Feb 10, 2020
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जनमानस की व्यापक आस्थाओं के कण-कण में विद्यमान हैं। श्रीराम किन्हीं जाति-वर्ग और धर्म विशेष से ही नहीं जुड़े हैं, वे सारी मानवता के प्रेरक हैं। उनका विस्तार दिल से दिल तक है। उनके चरित्र की सुगन्ध विश्व के हर हिस्से को प्रभावित करती है। भारतीय संस्कृति में ऐसा कोई दूसरा चरित्र नहीं है जो श्रीराम के समान मर्यादित, धीर-वीर और प्रशांत हो। इस विराट चरित्र को गढ़ने में भारत की सहस्त्रों प्रतिभाओं ने कई शताब्दियों तक अपनी मेधा का योगदान दिया। आदि कवि वाल्मीकि से लेकर महाकवि भास, कालिदास, भवभूति और तुलसीदास तक न जाने कितनों ने अपनी-अपनी लेखनी और प्रतिभा से इस चरित्र को संवारा। वे मर्यादा पुरुषोत्तम तो हैं ही मानव-चेतना के आदि पुरुष भी हैं। श्रीराम इस देश के पहले महानायक हैं, जिनका अयोध्या में दिव्य और भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है, इससे देश के आस्थावान करोड़ों हिन्दुओं को संतोष तो मिला ही, साथ ही यह तो उनके लिए आनंदोत्सव जैसा है, जन-जन में जीवन में नयी रौशनी का अवतरण है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार जो ट्रस्ट बनाया है उसके सदस्य ऐसे व्यक्तित्व बनाए गए हैं जिनकी श्रीराम के प्रति आस्था पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। अयोध्या मामले में 9 वर्ष तक हिन्दू पक्ष की पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता के. पाराशरण, अयोध्या राजवंश के राजा विमलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्र, युगपुरुष परमानंद जी महाराज, 1989 में राम मंदिर शिलान्यास की पहली ईंट रखने वाले दलित कामेश्वर चौपाल, निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेन्द्र राम, जगतगुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वतीजी महाराज ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनके प्रभावी नेतृत्व में मन्दिर निर्माण होगा। निश्चित ही यह मन्दिर श्रीराम के विराट व्यक्तित्व के अनुरूप होगा। जिससे भारतीय जनमानस पर न केवल अनूठी छाप अंकित होगी, बल्कि जन-जन में सौहार्द एवं सद्भावना का माध्यम भी बनेगा, क्योंकि श्रीराम किसी धर्म का हिस्सा नहीं बल्कि मानवीयता का उदात्त चरित्र हैं। श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन त्याग, तपस्या, कर्तव्य और मर्यादित आचरण का उत्कृष्ट स्वरूप है।
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हिन्दुओं के लिए यह बहुत पीड़ादायक रहा कि श्रीराम के जन्मस्थल पर ही भव्य मंदिर निर्माण के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा। कई वर्षों से रामलला अस्थायी टैंट में रहे। अब रामलला भव्य मंदिर निर्माण में विराजमान होंगे। भले दशकों से उलझा यह मामला सर्वोच्च न्यायालय ने हल किया है लेकिन जिस तरह से नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस संवेदनशील मसले को अपने राजनीतिक कौशल से सम्भाला है उसके लिए पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिया ही जाना चाहिए। कहीं कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई, कोई हिंसा नहीं हुई, किसी तरह का बिखराव नहीं हुआ। कुछ आवाजों को छोड़ कर सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया।
श्रीराम का भव्य मंदिर उनकी जन्मभूमि में बने, यह आस्था एवं विश्वास से जुड़ा ऐसा संवेदनशील मसला था जिसे धर्म ईमामों ने अपनी गठरी में बन्द कर रखा था। जो मन्दिरों के घण्टे और मस्ज़िदों की अज़ान तथा खाड़कुओं एवं जंगजुओं की एके-47 में कैद रहा। जिसे धर्म के मठाधीशों, महंतों ने चादर बनाकर ओढ़ लिया। जिसको आधार बनाकर कर सात दशकों से राजनीतिज्ञ वोट की राजनीति करते रहे, जो सबको तकलीफ दे रहा था, जिसने सबको रुलाया-अब सारे कटू-कड़वे घटनाक्रमों का पटापेक्ष जिस शालीन, संयम एवं सौहार्दपूर्ण स्थितियों में हुआ है, यह एक सुखद बदलाव है, एक नई भोर का अहसास है। शांति एवं सौहार्द की इन स्थितियों को सुदीर्घता प्रदान करने के लिये हमें सावधान रहना होगा, संयम का परिचय देना होगा। लेकिन यहां इससे भी महत्वपूर्ण वह नजरिया है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर पूरे समाज में अपनी जगह बनाता दिखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अनुशासन एवं संयम यह एहसास कराता रहा कि यह साम्प्रदायिक कट्टरता नहीं, साम्प्रदायिक सौहार्द का मसला है और इसी से भारत की संस्कृति को नया परिवेश मिल सकेगा। उनकी राजनीतिक सोच ने धर्म को एक व्यापक एवं नया परिवेश दिया है, उनके अनुसार देश को आध्यात्मिक और भावनात्मक एकता की जरूरत इसलिए है ताकि धर्म का सकारात्मक इस्तेमाल किया जा सके। धर्म का नकारात्मक प्रयोग पाकिस्तान करता आ रहा है। निश्चित ही श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर देश को एक पैगाम देगा- आदर्शों का पैगाम, चरित्र और व्यवहार का पैगाम, शांति और सद्भाव का पैगाम, आपसी सौहार्द एवं सद्भावना का पैगाम। अयोध्या से 22 किलोमीटर दूर भव्य मस्जिद भी बने, मुस्लिम समाज उसमें अस्पताल और शिक्षा संस्थान भी बना सकता है, इसकी भी समुचित व्यवस्था बनी है। श्रीराम मंदिर और मस्जिद विश्व शांति स्थल के रूप में उभरे। श्रीराम का चरित्र ही ऐसा है जिससे न केवल भारत बल्कि दुनिया में शांति, अहिंसा, अयुद्ध, साम्प्रदायिक सौहार्द एवं अमन का साम्राज्य स्थापित होगा।
मन्दिर निर्मित होने के बाद राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्र में जो उजाला उतर आयेगा वह इतिहास के पृष्ठों को तो स्वर्णिम करेगा ही, भारत के भविष्य को भी लम्बे समय से चले आ रहे विवाद के धुंधलकों से मुक्ति देगा। धर्म और धर्म-निरपेक्षता इन शब्दों को हम क्या-क्या अर्थ देते रहे हैं ? जबकि धर्म तो निर्मल तत्व है। लेकिन जब से धर्मनिरपेक्षता शब्द की परिभाषा हमारे तथाकथित कर्णधारों ने की है, तब से हर कोई कट्टर हो गया था। सभी कुछ जैसे बंट रहा था, टूट रहा था। बंटने और टूटने की जो प्रतिक्रिया हो रही थी, उसने राष्ट्र को हिला कर रख दिया था, उससे मुक्त होने का अवसर उपस्थित हुआ है, ऐसा लग रहा है एक नया सूरज उदित हुआ है। इससे भारतीयता एवं भारत की संस्कृति को नया जीवन मिला है।
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मेरी दृष्टि में दुनिया में भारत जिस धर्म एवं धार्मिक सौहार्द के लिये पहचाना जाता है, आज उसी धर्म एवं सौहार्द को जीवंतता प्रदान करने एवं प्रतिष्ठित करने का अवसर हमारे सामने है। क्योंकि धर्म जीवन है, धर्म स्वभाव है, धर्म सम्बल है, करुणा है, दया है, शांति है, अहिंसा है। पर धर्म को हमने कर्म-काण्ड बना दिया, धर्म को राजनीति बना दिया। धर्म वैयक्तिक है, धर्म को सामूहिक बना दिया। धर्म आंतरिक है, उसको प्रदर्शन बना दिया। धर्म मानवीय है, उसको जाति एवं सम्प्रदाय बना दिया। यह धर्म का कलयुगी रूपान्तरण न केवल घातक बल्कि हिंसक होता रहा है। आत्मार्थी तत्व को भौतिक, राजनैतिक, साम्प्रदायिक लाभ के लिए उपयोग कर रहे हैं। धर्म हिन्दू या मुसलमान नहीं। धर्म कौम नहीं। धर्म सहनशील है, आक्रामक नहीं है। वह तलवार नहीं, ढाल है। वहां सभी कुछ अहिंसा से सह लिया जाता है, लेकिन श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद ने धर्म को विकृत कर दिया, संकीर्ण बना दिया। आज नरेन्द्र मोदी ने मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करके धर्म की विराटता दिखाने का सार्थक उपक्रम किया है। हमें एक अवसर मिला है कि हम आपस में जुड़ें और सौहार्द का वातावरण निर्मित करें। घृणा और खून की विरासत कभी किसी को कुछ नहीं देती। श्रीराम की भक्ति हो या रहीम की भक्ति, हमें अपनी-अपनी आस्था का निर्विघ्न जीवन जीते हुए राष्ट्रीयता को बल देना होगा। राष्ट्र होगा, तभी हमें अपनी आस्थाओं को जीने का धरातल मिल सकेगा।
-ललित गर्ग