विश्व के तमाम देश पिछले करीब साल भर से कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं। लम्बे समय से इस महामारी की मार को झेलने के बाद अब जाकर कुछ उम्मीद इसलिये बन रही है कि इसके बचाव के लिये टीके तैयार होकर सामने आ गये हैं। भारत के लिये यह बड़ी उपलब्धि है कि यहां के चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों ने काफी कम समय में टीका तैयार कर लिया है, जिसके लिये वे बधाई के पात्र हैं। लेकिन एक निराशाजनक एवं विडम्बनापूर्ण स्थिति भी देखने को मिल रही है कि विभिन्न विपक्षी दल स्तरहीन एवं स्वार्थी राजनीति का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इस बड़ी उपलब्धि को धुंधलाने की कोशिशें करने में जुटे हैं। राजनीतिक निन्दक एवं आलोचकों को सब कुछ गलत ही गलत दिखाई देता है। विरोध करने का मूलभूत उद्देश्य राजनीतिक लाभ बटोरने एवं भारतीय जनता पार्टी एवं उनकी सरकार को नीचा दिखाना है, जो एक आदर्श एवं स्वस्थ लोकतंत्र की सबसे बड़ी बाधा है। वर्तमान में कुछ राजनीतिक दल ऐसे हो सकते हैं जो राजनीतिक लाभ के लिये अपनी नीति एवं मर्यादा को ताक पर रखते हैं। लेकिन जनहितों को नकार कर की जा रही यह राजनीति न केवल जनता के विश्वास को कुचलती है, बल्कि हमारे चिकित्सा विज्ञानियों के मनोबल को कमजोर करती है। लोगों की सुरक्षा सत्तापक्ष एवं विपक्ष की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए और इसके लिए विपक्ष का आवाज बुलंद करना भी वाजिब है। सरकार की नीतियां अगर सही से काम नहीं कर रही हों, तो उस पर सवाल उठाना भी विपक्ष का लोकतांत्रिक अधिकार है। लेकिन सवाल, संदेह एवं आलोचना सकारात्मक होनी चाहिए।
यह देश के लिए गर्व की बात है कि हमारे वैज्ञानिकों के अथक श्रम और समर्पण से देश में बनी एक नहीं, दो-दो कोरोना वैक्सीन को मान्यता मिल गई है। जाहिर है महामारियों के इतिहास में यह एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि टीके के निर्माण में परीक्षणों के कई चक्र की वजह से आमतौर पर कई-कई साल लग जाते हैं। मगर इस बार महामारी की गंभीरता को देखते हुए एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जागरूकता से चिकित्सा विज्ञानियों ने दिन-रात एक करके गंभीर चिन्ता से दो-चार देश एवं दुनिया को बड़ी राहत दी है। सरकार की तत्परता का ही परिणाम है कि इसी माह बहुप्रतीक्षित टीकाकरण की शुरुआत भी होने जा रही है।
आमजन के जीवन पर मंडरा रहे खतरों से मुक्ति दिलाने के लिये हमारे देश में जो सकारात्मक परिस्थितियां निर्मित हुईं, उनसे न केवल देशवासियों ने बल्कि दुनिया ने प्रेरणा ली है। निराशा एवं खतरे की इन स्थितियों में देश ने मनोबल बनाये रखा, हर तरीके से महामारी को परास्त करने में हौसलों का परिचय दिया और इसके लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं मोर्चा संभाले रखा, लोगों से दीपक जलवाये और ताली बजवायी। वैक्सीन जल्दी बनकर सामने आये, उसके लिये प्रोत्साहित किया। लेकिन इन संघर्षपूर्ण स्थितियों में विपक्षी राजनीतिक दलों ने कोई उदाहरण प्रस्तुत किया हो, ऐसा दिखाई नहीं देता। बल्कि इन दलों ने और विशेषतः कांग्रेस ने हर मोर्चे पर नकारात्मक राजनीति को ही प्रस्तुत किया। अब अगर इन दोनों वैक्सीन को लेकर कोई संदेह या सवाल है, तो यह सवाल वैज्ञानिकों की तरफ से उठना चाहिए, विपक्षी राजनेताओं की तरफ से नहीं। अगर हमारे वैज्ञानिक कह रहे हैं कि ये दोनों टीके सुरक्षित हैं, तो हमारे पास उन पर अविश्वास करने की कोई वजह नहीं। कुछ विपक्षी नेताओं का यह कहना कि वे भाजपा के बनवाए इन टीकों का बहिष्कार करेंगे, उनके दिमागी दिवालियेपन के सिवा कुछ भी नहीं।
यह कैसी राजनीति है, यह कैसा विपक्ष की जिम्मेदारियों का प्रदर्शन है, जिसमें अपनी राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंकने के नाम पर जनता के हितों की उपेक्षा की जा रही है। केन्द्र सरकार या भाजपा में कहीं शुभ उद्देश्यों एवं जन हितों की कोई आहट भी होती है तो विपक्षी दलों एवं कांग्रेस में भूकम्प-सा आ जाता है। मजे की बात तो यह है कि इन राजनेताओं एवं राजनीतिक दलों को केन्द्र सरकार एवं भाजपा की एक भी विशेषता या अच्छाई दिखाई नहीं देती। स्वदेशी कोरोना वैक्सीन पर चल रही स्तरहीन राजनीति हमारे वैज्ञानिकों का अपमान है, उनके आत्मविश्वास को कमजोर करने का षड्यंत्र है, उजालों पर कालिख पोतने का प्रयास है। इस दुष्प्रचार को रोकने के लिए फिलहाल इतना ही पर्याप्त होगा कि देश के लोगों से पहले केन्द्र सरकार एवं भाजपा के नेता स्वयं वैक्सीन लेकर टीकाकरण अभियान की शुरुआत करें।
कोरोना संक्रमण-काल की नाजुकता से हर कोई वाकिफ है। यह सभी जानते हैं कि सरकार एक बड़ी चुनौती से जूझ रही है। भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में सबको टीका लगाना इतना आसान भी नहीं। हालांकि, अपने यहां टीकाकरण का बुनियादी ढांचा मौजूद है, जो एक राहत की बात है। हमने बड़े-बड़े टीकाकरण अभियान सफलतापूर्वक चलाए हैं। वैक्सीन के उत्पादन का हमारा अनुभव और क्षमता भी हमें कई देशों से बेहतर बनाता है। ऐसी स्थिति में सत्ता पक्ष और विपक्ष का आपस में उलझना हमें कई मोर्चों पर पीछे धकेल सकता है। सरकार अपनी मंशा और मकसद को पारदर्शिता से जाहिर करे ताकि सरकारी तंत्र में लोगों का भरोसा बढ़े।
स्वदेशी वैक्सीन को धुंधलाने के लिये किस तरह छल-कपट का सहारा लेकर अफवाहों को हवा दी जा रही है, कभी वैक्सीन में सुअर का मांस होने की बात कहीं जाती है तो कभी इसे असुरक्षित घोषित किया जाता है। जबसे वैक्सीन आने की आहट हुई है तभी से विभिन्न विपक्षी दलों की ओर से यह शरारत भरा दुष्प्रचार किया जा रहा है कि वैक्सीन तो भाजपा की है। बिहार विधानसभा चुनाव के समय से ही कोरोना वैक्सीन पर संभावित राजनीतिक टकराव देखने को मिल रहा है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा इसे भाजपा की वैक्सीन बताना, इसी की कड़ी है। मतदाताओं को प्रलोभन देने के लिए वैक्सीन की राजनीति करना जितना गलत था, उसे खास पार्टी का टीका बताना उतना ही निंदनीय है। संविधान ने तमाम दलों को लोकतांत्रिक अधिकार दे रखे हैं। पर विपक्ष का अति-उत्साहित होकर नकारात्मक दृष्टिकोण से अपना यह दायित्व निभाना जन-विरोधी भी हो सकता है। क्या नमक की रोटी का स्वागत किया जा सकता है? कुछ आटा हो तो नमक की रोटी भी काम की हो सकती है। पर जिसमें कोरा नमक ही नमक हो, वह स्वीकार्य कैसे हो सकती है।
विपक्षी दलों को अपने राजनीतिक धर्म का पालन ईमानदारी से करना चाहिए। फूंक-फूंककर अपना कदम उठाना चाहिए, क्योंकि यदि लोगों के मन में एक बार शंका घर कर गई, तो फिर टीकाकरण अभियान पर इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है और इसका नुकसान अंततः आम जनता को ही होगा। विरोधियों को बेशक प्रश्न पूछने चाहिए, लेकिन किसी तरह के अविश्वास एवं पूर्वाग्रह को खाद-पानी देने से उन्हें बचना चाहिए। यह बहुत बारीक रेखा है, जिसके लिए विपक्ष को सतर्क रहना होगा। वह एक झूठ को सौ बार बोल कर उसे सच साबित करने के फार्मूले पर चलती दिख रही है। यह कोरोना वैक्सीन पर खतरनाक प्रहार ही नहीं, बल्कि चिकित्सा विज्ञानियों सहित मोदी सरकार को खलनायक के तौर पर पेश करने की गंदी राजनीति भी है। वास्तव में यह वही शरारत भरी राजनीति है, जिसके जरिये विपक्षी दल स्वदेशी वैक्सीन से दुनिया में मिली शोहरत को धुंधलाने का काम कर सकते हैं। यह एक विडंबना ही है कि जहां चिकित्सा विज्ञानियों को वैक्सीन को लेकर जारी झूठे अभियान पर स्पष्टीकरण देने को विवश होना पड़े।
-ललित गर्ग