Gyan Ganga: चाणक्य और चाणक्य नीति पर डालते हैं एक नजर, भाग-7

By आरएन तिवारी | Nov 22, 2024

चाणक्य कहते हैं----


गुरुरग्निर्द्वि जातीनां वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः ।

पतिरेव गुरुः स्त्रीणां सर्वस्याभ्यागतो गुरुः ।।


अर्थ- ब्राह्मणों को अग्नि की पूजा करनी चाहिए। दुसरे लोगों को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए। पत्नी को पति की पूजा करनी चाहिए तथा दोपहर के भोजन के लिए जो अतिथि आये उसकी सभी को पूजा करनी चाहिए।


Meaning- Brahmins should worship Agni. Others should worship Brahmin. The wife should worship her husband and all the guests who come for lunch should worship him.


यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निघर्षणं छेदनतापताडनैः ।

तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्य़ते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ।।


सोने की परख उसे घिस कर, काट कर, गरम कर के और पीट कर की जाती है। उसी तरह व्यक्ति का परीक्षण वह कितना त्याग करता है, उसका आचरण कैसा है तथा उसमें कौन-कौन से गुण हैं और उसका व्यवहार कैसा है इससे होता है।

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Meaning- As gold is tested in four ways by rubbing, cutting, heating and beating -- so a man should be tested by these four things: his renunciation, his conduct, his qualities and his actions.


तावद्भयेन भेतव्यं यावद् भयमनागतम् ।

आगतं तु भयं वीक्ष्य प्रहर्तव्यमशंकया ।।


यदि आप पर मुसीबत आती नहीं है तो उससे सावधान रहे। लेकिन यदि मुसीबत आ जाती है तो किसी भी तरह उससे छुटकारा पाने की कोशिश करें 


Meaning- A thing may be dreaded as long as it has not overtaken you, but once it has come upon you, try to get rid of it without hesitation.


एकोदरसमुद् भूता एकनक्षत्रजातकाः ।

न भवन्ति समाः शीला यथा बदरिकण्टकाः ।।


अनेक व्यक्ति जो एक ही गर्भ से पैदा हुए हैं या एक ही नक्षत्र में पैदा हुए हैं  वे एक समान नहीं रहते। उसी प्रकार जैसे बेर के पेड़ के सभी बेर एक समान  नहीं रहते।


Meaning- Though persons be born from the same womb and under the same stars, they do not become alike in disposition as the thousand fruits of the badari tree.


निःस्पृहो नाधिकारी स्यान्नाकामो मण्डनप्रियः ।

नाऽविदग्धः प्रियंब्रूयात् स्पष्टवक्ता न वञ्चकः ।।


वह व्यक्ति जिसके हाथ स्वच्छ है कार्यालय में काम नहीं करना चाहता। जिस ने अपनी कामना को ख़तम कर दिया है, वह शारीरिक शृंगार नहीं करता, जो आधा पढ़ा हुआ व्यक्ति है वो मीठे बोल बोल नहीं सकता। जो सीधी बात करता है वह धोका नहीं दे सकता।


Meaning- He whose hands are clean does not like to hold an office; he who desires nothing cares not for bodily decorations; he who is only partially educated cannot speak agreeably; and he who speaks out plainly cannot be a deceiver.


मूर्खाणां पण्डिता द्वेष्या अधनानां महाधनाः ।

वरांगना कुलस्त्रीणां सुभगानां च दुर्भगा ।।


अर्थ- मूढ़ लोग बुद्धिमानो से इर्ष्या करते है। गलत मार्ग पर चलने वाली औरत पवित्र स्त्री से इर्ष्या करती है। बदसूरत औरत खुबसूरत औरत से इर्ष्या करती है।


Meaning- The learned are envied by the foolish; rich men by the poor; chaste women by adulteresses; and beautiful ladies by ugly ones.


आलस्योपगता विद्या परहस्तगतं धनम् ।

अल्पबीजं हतं क्षेत्रं हतं सैन्यमनायकम् ।।


अभ्यास के बिना विद्या, दूसरे के हाथ में गया हुआ धन का नाश होता गलत ढंग से बुवाई करने वाला किसान और सेनापति के बिना सेना का नाश हो जाता है।


Meaning- Indolent application ruins study; money is lost when entrusted to others; a farmer who sows his seed sparsely is ruined; and an army is lost for want of a commander.


अभ्यासाध्दार्यते विद्या कुलं शीलेन धार्यते ।

गुणेन ज्ञायते त्वार्यः कोपो नेत्रेण गम्यते ।।


अर्जित विद्या अभ्यास से सुरक्षित रहती है। घर की इज्जत अच्छे व्यवहार से सुरक्षित रहती है। अच्छे गुणों से इज्जतदार आदमी को मान मिलता है और किसी भी व्यक्ति का गुस्सा उसकी आँखों में दिखता है।


Meaning- Learning is retained through putting into practice; family prestige is maintained through good behavior; a respectable person is recognized by his excellent qualities; and anger is seen in the eyes.


वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते ।

मृदुना रक्ष्यते भूपः सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम् ।।


धर्मं की रक्षा पैसे से होती है। ज्ञान की रक्षा अभ्यास और प्रयोग करने से होती है। राजा से रक्षा उसकी बात मानने से होती है। घर की रक्षा एक दक्ष गृहिणी से होती है।


Meaning- Religion is preserved by wealth; knowledge by diligent practice; a king by conciliatory words; and a home by a dutiful housewife.


अन्यथा वेदपाण्डित्यं शास्त्रमाचारमन्यथा ।

अन्यथा वदता शांतंलोकाःक्लिश्यन्ति चाऽन्यथा ।।


जो वैदिक ज्ञान की निंदा करते है, शास्र्त सम्मत जीवनशैली का मजाक उड़ाते है, शांति पूर्ण स्वभाव के लोगो का मजाक उड़ाते है, वे बिना अकारण ही  दुःख को प्राप्त होते हैं।


Meaning- Those who blaspheme Vedic wisdom, who ridicule the life style recommended in the satras, and who deride men of peaceful temperament, come to grief unnecessarily.


शेष अगले प्रसंग में ------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।


- आरएन तिवारी

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