Gyan Ganga: चाणक्य और चाणक्य नीति पर डालते हैं एक नजर, भाग-2

By आरएन तिवारी | Oct 18, 2024

मौर्य साम्राज्य के संस्थापक प्रकांड पंडित चाणक्य कहते हैं---


धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः।

पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवस वसेत् ।।


हमें ऐसे स्थान पर एक दिन भी निवास नहीं करना चाहिए जहाँ ये पाँच न हो। पहला धनवान व्यक्ति, दूसरा ब्राह्मण जो वैदिक शास्त्रों में निपुण हो, तीसरा राजा, चौथा नदी और पांचवा चिकित्सक।


Do not stay for a single day where there are not these five persons: a wealthy man, a brahmin well versed in Vedic lore, a king, a river and a physician.


जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनागमे।

मित्रं चापत्तिकाले तु भार्या च विभवक्षये ।।


नौकर की परीक्षा तब करें जब वह कर्तव्य का पालन न कर रहा हो, रिश्तेदार की परीक्षा तब करें जब आप मुसीबत मे फँसे हो, मित्र की परीक्षा विपरीत परिस्थितियों में करें, और जब आपका वक्त अच्छा न चल रहा हो तब पत्नी की परीक्षा करे।

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Examine the servant when he is not performing his duty, test the relative when you are in trouble, test the friend under adverse circumstances, and test the wife when you are not having a good time.


आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकरे।

राजद्वारेश्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ।।


चाणक्य कहते हैं कि, संकट के समय, कोई दुर्घटना होने पर, अकाल पड़ने पर, युद्ध के समय, राजदरबार में और श्मशान में भी जो साथ निभाता है वही सच्चा मित्र है।  

 

He is a true friend who does not forsake us in time of need, misfortune, famine, or war, in a king's court, or at the crematorium (smasana).


यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवं परिषेवते ।

ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नष्टमेव हि ।।


जो व्यक्ति निश्चित चीज (जो शाश्वत है) को छोड़कर किसी अनिश्चित चीज  (नाशवान चीज) के पीछे भागता है, तो उसके हाथ से अविनाशी वस्तु तो चली ही जाती है और जो नाशवान है उसका क्या भरोसा ? इसलिए अपने निश्चित उद्देश्य को नहीं छोड़ना चाहिए। 


 He who gives up what is imperishable for that which is perishable, loses that which is imperishable; and doubtlessly loses that which is perishable also.


विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम् ।

नीचादप्युत्तमा विद्यास्त्रीरत्नं दुष्कुलादमि ।।


अगर हो सके तो विष में से भी अमृत निकाल लें, यदि सोना गन्दगी में भी पड़ा हो तो उसे उठाये, धोएं और अपनायें, निचले कुल में जन्म लेने वाले से भी सर्वोत्तम ज्ञान ग्रहण करें, उसी तरह यदि कोई बदनाम घर की कन्या भी महान गुणों से सम्पन्न है और आपको कोई सीख देती है तो उसे ग्रहण करे।


Even from poison extract nectar, wash and take back gold if it has fallen in filth, receive the highest knowledge (Krsna consciousness) from a low born person; so also a girl possessing virtuous qualities (stri-ratna) even if she were born in a disreputable family.


स्त्रीणां द्विगुण आहारों लज्जा चापि चतुर्गणा।

साहसं षड्गुणं चैव कामश्चाष्टगुणः स्मृत ।।


महिलाओं में पुरुषों के अपेक्षा भूख दो गुना, लज्जा चार गुना, साहस छ गुना, और काम आठ गुना अधिक होता है।


Women have hunger two-fold, shyness four-fold, daring six-fold, and lust eight-fold as compared to men.


यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्या छन्दानुगामिनी ।

विभवे यश्च सन्तुष्टस्तस्य वर्ग इहैव हि ।।


उस व्यक्ति ने धरती पर ही स्वर्ग को पा लिया

1. जिसका पुत्र आज्ञाकारी है,

2. जिसकी पत्नी उसकी इच्छा के अनुरूप आचरण करती है,

3. जिसे अपने धन पर संतोष है।


He whose son is obedient to him, whose wife's conduct is in accordance with his wishes, and who is content with his riches, has his heaven here on earth.


ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः स पिता यस्तु पोषकः ।

तन्मित्रंयत्रविश्वासःसा भार्या यत्र नितिः ।।


पुत्र वही है जो पिता का कहना मानता हो, पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करे, मित्र वही है जिस पर आप विश्वास कर सकते हैं और पत्नी वही है जिससे सुख प्राप्त हो।


They alone are sons who are devoted to their father. He is a father who supports his sons. He is a friend in whom we can confide, and she only is a wife in whose company the husband feels contented and peaceful.


परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।।

वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भम्पयोमुखम् ।।


ऐसे लोगों से बचे जो आपके मुँह पर तो मीठी बातें करते हैं, लेकिन आपके पीठ पीछे आपको बर्बाद करने की योजना बनाते हैं, ऐसा करने वाले तो उस विष के घड़े के समान है जिसके उपरी सतह पर दूध भरा है।


Avoid him who talks sweetly before you but tries to ruin you behind your back, for he is like a pitcher of poison with milk on top.


शेष अगले प्रसंग में ------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।


- आरएन तिवारी

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