By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jul 16, 2021
नयी दिल्ली। यूं तो तलवारबाजी भारतीय रणबांकुरों की शौर्यगाथाओं का हिस्सा रही है लेकिन खेल के रूप में इसे पहचान दिलाई तोक्यो ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज सीए भवानी देवी ने। शौर्य और सफलता की नयी कहानी लिख चुकी यह वीरांगना अब अब तोक्यो में शानदार प्रदर्शन करके भारतीय ओलंपिक के इतिहास का एक सुनहरा पन्ना लिखना चाहेंगी। भारत का ओलंपिक खेलों की स्पर्धाओं में भागीदारी का दायरा धीरे धीरे बढ़ता जा रहा है और इसी कड़ी में नया नाम जुड़ा चेन्नई की 27 साल की सेबर तलवारबाज भवानी का। भवानी देश की पहली (महिला या पुरूष) तलवारबाज हैं जो ओलंपिक में शिरकत करेंगी। भारत में तलवारबाजी युद्ध कौशल के रूप में जाना जाता रहा है लेकिन खेल के रूप में यह इतना लोकप्रिय नहीं है।
विश्व रैंकिंग में इस समय 42वें स्थान पर काबिज भवानी ने बुडापेस्ट में सेबर तलवारबाजी विश्व कप की टीम स्पर्धा में दक्षिण कोरिया के क्वार्टरफाइनल में हंगरी को हराने से ओलंपिक में जगह बनायी। दक्षिण कोरिया के खिलाड़ियों को टीम रैंकिंग के हिसाब से ओलंपिक में जगह मिल गयी थी और एशिया के लिये सुरक्षित कोटे पर भवानी ने आधिकारिक रैंकिंग एशिया/ओसनिया जोन से क्वालीफाई किया। भवानी ने क्वालीफाई करने के बाद इटली से वर्चुअल कांफ्रेंस में कहा था, ‘‘किसी ने मुझसे पूछा कि अब ओलंपिक के लिये क्वालीफाई कर लिया है तो क्वार्टरफाइनल तक पहुंचने के लिये कैसे योजना बना रही हो। मैंने कहा कि सिर्फ क्वार्टरफाइनल क्यों, फाइनल्स क्यों नहीं। ’’ आत्मविश्वास से भरी भवानी ने कहा था, ‘‘मैं तोक्यो ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहती हूं और मैं खुद को यह सोचने में सीमित नहीं करना चाहती कि वैश्विक स्पर्धा में मैं क्या हासिल कर सकती हूं और क्या नहीं। संभावनायें असीमित हैं। ’’
राष्ट्रमंडल तलवारबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय भवानी ने 11 साल की उम्र में तलवारबाजी खेलना शुरू किया और वह भी इसलिये क्योंकि वह पढ़ाई से बचना चाहती थीं और इस खेल में आने का भी दिलचस्प वाकया है।उनकी कक्षा में सभी को अपनी पसंद के खेल चुनने थे लेकिन तब उनका नंबर आया तो इस खेल में किसी ने अपना नाम नहीं लिखवाया था। 2004 से हुई शुरूआत के बाद इस खेल से लगाव धीरे धीरे बढ़ता रहा। भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) कोच सागर लागू ने उनकी प्रतिभा को देखकर उन्हें केरल के थालासेरी में साइ सेंटर में ट्रेनिंग के लिये बुलाया और कुछ समय बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में पदक हासिल करना शुरू कर दिया। भवानी ने पहला अंतरराष्ट्रीय पदक 2009 राष्ट्रमंडल चैम्पियनशिप में तीसरे स्थान पर रहकर हासिल किया। उन्होंने 2014 एशियाई चैम्पियनशिप में व्यक्तिगत स्पर्धा का रजत पदक जीता जबकि अगले साल इसी चैम्पियनशिप के इसी स्पर्धा का कांस्य पदक अपने नाम किया था।
मध्यम वर्ग परिवार से ताल्लुक रखने वाली आठ बार की राष्ट्रीय चैम्पियन भवानी ने इस खेल के खर्चे को देखते हुए एक बार इसे छोड़ने का भी मन बना लिया था क्योंकि इसके लिए पहने जाने वाला विशेष तरह का सूट ही काफी महंगा होता है और उनकी माँ को उनके लिए अपने गहने तक बेचने पड़ गए थे। इसी तरह की कई चुनौतियों का सामना करने वाली भवानी के सपनों की उड़ान यहीं तक सीमित नहीं है, वह ओलंपिक पदक हासिल करना चाहती हैं। इसलिये रियो 2016 ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने से चूकने के बाद वह पिछले पांच वर्षों से कोच निकोला जानोटी के साथ इटली में ट्रेनिंग में जुटी हैं। भवानी 2017 में महिलाओं के विश्व कप में भारत की ओर से पहला अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदक जीतने वाली तलवारबाज बनीं।2018 में उन्होंने आस्ट्रेलिया में सीनियर राष्ट्रमंडल तलवारबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। वह अब तक कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के पदक जीत चुकी हैं।
ओलंपिक में 1896 एथेंस ओलंपिक में ही तलवारबाजी को शामिल कर दिया गया था और तब से वह इन खेलों का हिस्सा बना हुआ है। महिला तलवारबाजी 1924 में पेरिस ओलंपिक में शामिल की गयी थी। महिलाएं पहले फॉएल में भाग लेती थी लेकिन अटलांटा ओलंपिक 1996 से उन्होंने एपे और एथेन्स 2004 से सेबर में हिस्सा लेना शुरू किया था। ओलंपिक तलवारबाजी में यूरोपीय देशों का दबदबा रहा है। इटली ने इसमें अब तक 49 स्वर्ण पदक सहित 127 पदक जीते हैं। उसके बाद फ्रांस (45 स्वर्ण सहित 123 पदक) और हंगरी (37 स्वर्ण सहित 88 पदक) का नंबर आता है। तलवारबाजी खेल में दो प्रतियोगी हाथों में तलवार लेकर एक दूसरे के शरीर पर प्रहार करने की कोशिश करते हैं। शरीर के कुछ तय अंग होते हैं जिन पर प्रहार किया जा सकता है। इसके तीनों प्रारूपों के लिये अलग अलग नियम होते हैं। ओलंपिक में पुरुष और महिला वर्ग में व्यक्तिगत फॉएल, व्यक्तिगत एपे, व्यक्तिगत सेबर तथा इन तीनों प्रारूपों की दोनों वर्गों में टीम स्पर्धाएं शामिल हैं।