जानिए बाहुबली मुख्तार अंसारी का अतीत, आखिर क्यों योगी सरकार ने मुख्तार अंसारी पर कसा शिकंजा

By शिवम यादव | Aug 29, 2020

हाल ही में योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेताओं पर ऐसा शिकंजा कसा है जिससे यह साफ हो गया कि योगी सरकार में गुंडाराज और जंगलराज को किसी भी हाल में पनाह नहीं दी जाएगी। योगी सरकार ने आपराधिक रिकॉर्ड रखने और बाहुबली जैसी पदवी से पुकारे जाने वाले नेताओं के खिलाफ एक्शन में आते हुए यह साफ कर दिया है कि कोई भी हो कानून के दायरे में उत्तर प्रदेश में रहेगा।

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यूपी सरकार द्वारा जिस तरह से धड़ाधड़ कार्रवाई इन बाहुबली नेताओं पर की गई है उससे यह सवाल उठता है कि आखिर योगी सरकार ने किस कारण इन नेताओं पर इस तरह की कार्रवाई की है। चलिए अतीत के कुछ दागी पन्नों पर एक नजर डालते हैं जिससे मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे अपराध के पर्याय रहे नेताओं का काला चिट्ठा खुल जाएगा।


आइए मुख्तार अंसारी के काले कारनामों की ओर रूख करते हैं

घातक फिल्म में कात्या का खौफ जिस तरह से आम लोगों पर दिखाया गया है ठीक उसी तरह का डर पूर्वांचल के लोगों में उस दौर में हुआ करता था, जब मुख्तार अंसारी का गुंडाराज पुर्वांचल में खून बनकर बरसता था। गोली, बंदूक, तमंचे, रायफल से खेलने का शौक रखने वाला शख्स कुनबे में अपनी धाक जमाने डर और आतंक फैलाने का शौकीन मुख्तार जब चलता था तो साथ में गुर्गों का गैंग पिस्टल और बंदूकें लहराते हुए काफिले के साथ चलते अक्सर नजर आ जाते थे। किसी की क्या मजाल कि इनके काफिले को रोकने की जुर्रत कर सके। मुख्तार की गैंग का आतंक कुछ इस कदर था कि गुंडा टैक्स, वसूली, हफ्ता देने से कोई हरगिज मना नहीं कर सकता था। 

 

मुख्तार अंसारी जैसे कुख्यात अपराधी अपने गुर्गों के साथ मिलकर शराब ठेका जैसे कई और सरकारी ठेकों को हथियाने के लिए हत्याएं, अपहरण और फिरौती जैसे संगीन अपराधों को बेखौफ होकर अंजाम देते थे। बनारस, गाजीपुर, मऊ, जौनपुर से लेकर कानपुर तक मुख्तार अंसारी के खौफ का डंका बजा करता था। 

 

70 के दशक में अपने काले कांडों को अंजाम देते हुए सरकारी ठेकों को अपने पाले में लेने के लिए कई और गैंगों से मुख्तार की भिड़ंत होती थी इन्हीं में से एक था साहिब सिंह गैंग जिससे अक्सर मुख्तार पंगे लेता था। मुख्तार भी मखनू गैंग में शामिल हुआ करता था जिसका साहिब सिंह गैंग से 80 के दशक में खूनी संघर्ष भी हुआ था। साहिब सिंह गैंग का कुख्यात सदस्य बृजेश सिंह जिसने इस गैंग से अलग होकर नई गुर्गों की टीम बनाई जिसकी सीधी टक्कर मुख्तार की गैंग से हो जाती थी। 1990 के दशक में मुख्तार और बृजेश सिंह के धंधे में रेल्वे, कोयला, खनन और शराब जैसे ठेकों को हथियाने की जोर-आजमाइश करते थे। कई बार इनका आमना सामना भी होता रहता था।  

 

साल 1991 में मुख्तार अंसारी चंदौली पुलिस की गिरफ्त में आया जहां से दो पुलिस वालों को गोली मारकर फरार होने का आरोप लगा। मुख्तार अंसारी ने साल 1995 में राजनीति में एंट्री ली 1996 में पहला चुनाव बहुजन समाज पार्टी की टिकट से लड़ा और मऊ से विधायक बन गया। 1996 में तत्कालीन एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमला करने का भी आरोप लगा। पूर्वांचल के कोयला व्यापारी रूंगटा का अपहरण करने पर साल 1997 में मुख्तार अंसारी का नाम देश भर की सुर्खियों में रहा।

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साल 2002 में मुख्तार की गैंग और बृजेश सिंह के गुर्गों के साथ खूनी संघर्ष हो गया जिसमें मुख्तार के 3 आदमी मारे गए वहीं बृजेश सिंह के घायल होने की खबर फैल गई। कई महीनों तक बृजेश सिंह अंडर ग्राउंड रहा जिससे मुख्तार अंसारी का पूर्वांचल में एकतरफा राज हो गया। एक बार फिर पूर्वांचल में बृजेश सिंह की एंट्री होती है उधर मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी कृष्णानंद राय ने चुनावी मैदान में चित कर दिया। खबर कुछ यह भी फैली कि कृष्णानंद राय की जीत में अहम रोल रहा। 

 

अब पूर्वांचल की विधानसभा सीटों में हिंदू मुस्लिम वोट बैंक बांटने लगे जिसकी वजह से आए दिन सांप्रदायिकता की आग भड़कने लगी। इसी आरोप में मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार किया गया।साल 2005 में मुख्तार अंसारी को जेल हो गई। अपने भाई अफजल की हार के कारण बीच सड़क में बीजेपी एमएलए कृष्णानंद राय की दर्दनाक हत्या करवाने का आरोप मुख्तार अंसारी पर लगा। माना गया कि मुन्ना बजरंगी और अतीक-उर-रहमान की मदद से मुख्तार अंसारी ने कृष्णानंद राय की हत्या करवाई।

 

बीजेपी एमएलए कृष्णानंद राय की हत्या में 6 AK-47 राइफल से 400 से अधिक गोलियां दागी गईं एमएलए कृष्णानंद राय के साथ 7 लोगों की मौत हुई थी, जिनके शरीर में 67 से अधिक गोलियां बरामद की गईं थी। दिनदहाड़े भारतीय जनता पार्टी के विधायक की मौत से पार्टी नेताओं के हड़कंप मच गया, जिनके द्वारा सीबीआई जांच की मांग की गई। लेकिन अगले साल 2006 में ही कृष्णानंद राय हत्याकांड के गवाह शशिकांत राय की रहस्यमई मौत ने सबको चौंकाया।


पुलिस के आला अधिकारियों के हाथ-पाव केवल इसलिए फूल गए क्योंकि मामला मुख्तार अंसारी पर कार्रवाई करने का था। 

 

2006 में ही बीजेपी एमएलए कृष्णानंद की पत्नी ने दोबारा FIR दर्ज कराई थी लेकिन कृष्णानंद राय की मर्डर मिस्ट्री नहीं सुलझ सकी। उधर मुख्तार अंसारी का दुश्मन बृजेश सिंह पूर्वांचल छोड़ कर भाग गया जिसे 2008 में ओडिशा से पकड़ा गया तब से जेल में बंद है। 2008 में ही मुख्तार अंसारी ने जेल में रहते हुए ही बसपा का दामन थाम लिया और जोर-शोर से चुनाव जीतने की फिराक में लग गया। मायावती ने मुख्तार को निरापराध मानते हुए पार्टी में शामिल किया जमकर तरजीह दी।

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लोकसभा चुनाव का साल 2009 जब मुख्तार अंसारी ने बनारस से मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ बीएसपी की तरफ से नामांकन दाखिल किया। जेल में रहते हुए चुनावी विगुल बजाने के लिए बेकरार मुख्तार अंसारी ने हार का मुंह देखा। चुनावी अखाड़े में करारी शिकस्त मिली तो समय रहते मायावती ने मुख्तार अंसारी को पार्टी से दुरदुराते हुए बाहर का रास्ता दिखा दिया। गाजीपुर जिले में स्थित जेल में बंद मुख्तार अंसारी जेल के भीतर भी सभी सुविधाओं से लैस जिन्दगी जी रहा है ये पुलिस महकमे की जांच में पता चला तब उसे मथुरा की जेल में शिफ्ट कर दिया गया।

 

2012 में मुख्तार अंसारी ने अपनी राजनीतिक पार्टी कौमी एकता दल बनाकर मऊ से विधायक बन गया। 2016 में छुटपुट खबरें आईं कि मुख्तार अंसारी को समाजवादी पार्टी में शामिल किया जा सकता है लेकिन ये महज अटकलें साबित हुई।

 

मुख्तार अंसारी किस बैकग्राउण्ड से आता है?

मुख्तार अंसारी पिता सुभानउल्लाह अंसारी, बाबा मुख्तार अहमद अंसारी। मुख्तार अंसारी मजबूत और ठाट-बाट वाले बैकग्राउण्ड से ताल्लुक रखता है या यूं कहें कि अमीर घराने से मुख्तार के पैदाइशी रिश्ते रहे। मुख्तार अंसारी के बाबा किसी जमाने में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे भाई अफजल कम्यूनिस्ट पार्टी की तरफ से चार बार चुनावी परचम लहरा चुके थे बाद में समाजवादी पार्टी की तरफ से एक बार फिर विधायकी का चुनाव जीते थे। भारत के उपराष्ट्रपति रह चुके हामिद अंसारी, मुख्तार के चाचा लगते हैं जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर हुआ करते थे।

 

योगी सरकार ने मुख्तार अंसारी की अवैध संपत्तियों पर सरकार द्वारा कब्जा करने व अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलाने का काम तेजी से कर रही है। अवैध संपत्ति को सील करने के साथ ही योगी की सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि उत्तरप्रदेश में बाहूबलियों या माफियाओं का राज अन्तत: अन्त की ओर है।


- शुभम यादव

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