जानिए देश के प्रमुख बौद्ध पर्यटन एवं दर्शनीय स्थलों के बारे में

By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | May 05, 2020

सम्पूर्ण भारतवर्ष में समस्त धर्मों एवं जातियों के अनेक तीर्थ न केवल उनकी आस्था का प्रतिबिंब हैं वरन घरेलू एवं विदेशी सैलानियों के आकर्षण का प्रबल केंद्र हैं। भारत में लुम्बनी नामक स्थान पर ईसा पूर्व 563 में राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म हुआ था। जिन्होंने आगे चल कर गौतम बुद्ध के नाम से संसार को एक नया जीवन दर्शन दिया जो बौद्ध धर्म कहलाया। उनके अनुयायियों ने उन्हें भगवान के रूप में पूजा और उनकी मूर्ति पूजा प्रारम्भ की। आज न केवल भारत में वरन कई देशों में बौद्ध धर्म से सम्बंधित अनेक दर्शनीय स्थल हैं। आपको भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध बौद्ध पर्यटक स्थलों के बारे में बताते हैं।

 

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लुम्बनी-

नेपाल की तराई में लुम्बनी नौतनवा से 25 किमी और गोरखपुर-गोंडा लाइन के नौगढ़ स्टेशन से करीब 12 किलोमीटर दूर है। अब तो नौगढ़ से लुम्बनी तक पक्की सडक़ बना दी गई है। यहां के बुद्ध के समय के अधिकतर प्राचीन विहार नष्ट हो चुके हैं। यहां सम्राट अशोक के समय का एक स्तंभ का अवशेष, स्तूप में बुद्ध की मूर्ति के अलावा अधिकांश स्तूप नष्ट हो चुके हैं। नेपाल सरकार द्वारा यहां दो नए स्तूपों का निर्माण कराया है।


बौद्ध गया- 

देश में बिहार राज्य में स्थित बौद्धगया शहर में स्थित महाबोधि मंदिर बौद्ध धर्म का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र और पवित्र स्थानों में आता है। यह मंदिर वास्तु कला एवं बौद्ध धर्म की परंपराओं का सुंदरतम नमूना है एवं विश्व पर्यटन मानचित्र पर विशेष स्थान रखता है। मंदिर में बुद्ध की पद्मासन मुद्रा में भव्य मूर्ति स्थापित है। मंदिर पेगोदनुमा बहुअलंकृत आर्य और द्रविड़ शैली में 170 फीट ऊंचा है। मंदिर के दक्षिण में 15 फीट ऊंचा अशोक स्तंभ है जो कभी 100 फीट था। मंदिर परिसर में उन सात स्थानों को चिन्हित किया गया है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात सात सप्ताह व्यतीत किये थे। मुख्य मंदिर के पीछे बुद्ध की लाल पत्थर से बनी 7 फीट ऊंची मूर्ति बनी है। महात्मा बुद्ध को यहीं एक पीपल के वृक्ष के नीचे छः दिन तक दिन-रात कठोर तपस्या करने पर परम् ज्ञान, केवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। गया शहर को बौद्धगया एवं पीपल के वृक्ष को बोधिवृक्ष के नाम से जाना गया। बौद्ध गया घूमने का सब से अच्छा समय अप्रैल-मई में पड़ने वाली बुद्ध जयंती के अवसर है। बौद्ध गया में 1934 ई. में बना तिब्बतियन मठ, 1936 ई. में बना बर्मी विहार तथा इसी से लगा थाईमठ, इंडोसन-निप्पन-जापानी मंदिर, चीनी मंदिर, भूटानी मठ दर्शनीय स्थल है। बौद्ध गया में स्थित पुरातात्विक संग्रहालय बेमिसाल है।


राजगीर-

बौद्ध गया के समीप होने से सैलानियों को यहाँ भृमण का कार्यक्रम जरूर बनाना चाहिए। यह पंच पहाड़ियों से घिरा बिहार का विश्व प्रसिद्ध धार्मिक एवं प्राकृतिक स्थल है। यहां बुद्ध एवं महावीर स्वामी उपदेश देते थे। करीब एक हज़ार फीट ऊंची पंच पहाड़ी दर्शनीय है। वैभार पहाड़ी विषय तौर पर दर्शनीय है जिस गर्म जल के झरने, 22 कुंड, जरासंघ अखाड़ा, मनियर मठ एवं सप्तवर्णी गुफा मुख्य स्थल हैं। रत्नगिरि पर्वत पर 120 फीट ऊंचा एवं 103 फीट व्यास का संगमरमर का बना विश्व शांति स्तूप, जिसमें ऊपर चारों ओर विभिन्न मुद्राओं में बुद्ध की सुनहरी प्रतिमाएं लगी हैं आकर्षण का केंद्र है। इसका निर्माण बौद्ध संघ के अध्यक्ष फूजी ने करवाया था। यहाँ वेणुवन एवं विरायतन संग्रहालय भी देखने योग्य है। राजगीर से 13 किमी दूरी पर नालन्दा में प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय के अवशेष, आर्ट गैलरी एवं संग्रहालय दर्शनीय हैं।

 

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सारनाथ-

उत्तरप्रदेश के बनारस रेलवे स्टेशन से 6 किमी दूर सारनाथ बौद्ध धर्म का महान पर्यटन स्थल है। इस स्थल का महत्व इसी से लगाया जा सकता है कि भगवान बुद्ध ने यहीं पर प्रथम उपदेश दिया था और यहीं से उन्होंने धर्म-चक्र- परिवर्तन प्रारम्भ किया था। इसी कारण लाखों की संख्या में बौद्ध अनुयायी और बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले लोग हर साल यहां पहुंचते हैं। सारनाथ में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ (भारत का राष्ट्रीय चिन्ह) भगवान बुद्ध का प्राचीन मंदिर, धामेक स्तूप, चौखंडी स्तूप, नवीन विहार, भगवान बुद्ध का विहार दर्शनीय हैं। यहां एक बौद्ध-धर्मशाला भी बनी है। पुरातत्व विभाग ने यहाँ 1905 में खुदाई कराई जिसमें 7 विहार, 2 महास्तूप, 2 मंदिर एवं एक अशोक स्तंभ मुख्य रूप से पाये गए और उस समय लोगों का ध्यान इस ओर गया। आज यह लोकप्रिय पर्यटक स्थल हैं। मूलगंध कुटी भगवान बुद्ध का मुख्य मंदिर का शिल्प देखते ही बनता है। मुख्य मंदिर के पश्चिम में 2.03 मीटर का अशोक स्तंभ नज़र आता है जो कभी मूल रूप में 15.25 मीटर ऊंचा था। यहां से दक्षिण-पश्चिम में 91.44 मीटर ऊंचा चौखंडी स्तूप दर्शनीय है। यहां से उत्तर की और चलने पर सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया धर्मराजिका स्तूप की बुनियाद ही शेष रह गई है। चार वीथिकाओं में बना पुरातत्व संग्रहालय यहाँ की भव्य एवं बेजोड़ मूर्ति एवं शिल्प कला के दर्शन करता है।


कुशीनगर-

उत्तरप्रदेश में गोरखपुर से 51 किमी दूर कुशीनगर बुद्ध से सम्बंधित ऐतिहासिक स्थलों के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है। कुशीनगर के समीप हिरन्यवती नदी के समीप बुद्ध ने 80 वर्ष की उम्र में बुद्ध ने अपनी आखरी सांस लेकर निर्वाण को प्राप्त किया। यहां वृहद परिधि में खंडहरों के बीच स्थित महापरिनिर्वाण मंदिर में बुद्ध की 6 मीटर ऊंची प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यहां 49 फीट ऊंचें सुंदर रामभार स्तूप की भव्यता एवं वास्तु कला अद्भुत है। कुशीनगर में ही स्थित वाटथाई मंदिर भी विशिष्ठ बौद्ध मंदिरों में शुमार है। माना जाता है इस मंदिर का निर्माण थाईलैंड के शासक भूमिबोल की जीत के उपलक्ष्य में करवाया गया था चीनी मंदिर, जापानी मंदिर, महानिर्वाण मंदिर, आदि कुशीनगर के प्रमुख आकर्षण स्थान हैं। 

 

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श्रावस्ती-

प्राचीन कौशल राज्य की राजधानी के रूप में विख्यात यह स्थल बुद्ध के चमत्कारों के लिए जाना जाता था। यह महात्मा बुद्ध की कर्म स्थली रही है। बहराइच से 15 किमी दूर यहां बौद्ध स्तूप एवं खंडहरों का एक टीला स्थित है। जापान के सहयोग से यहां इस टीले का विकास किया गया है जो विश्व को शांति और मानवता का संदेश देता है।


कपिलवस्तु-

कपिलवस्तु बौद्ध सर्किट का चौथा प्रमुख स्थल है। यहां शाक्य वंश के राजा एवं बुद्ध के पिता शुद्धोधन राज्य करते थे। गौतम बुद्ध ने यहां अपने जीवन के 28 वर्ष व्यतीत किये और 29 वें वर्ष में कपिलवस्तु महल का त्याग कर दिया। पुरातत्व विभाग की खुदाई में कपिलवस्तु में मुख्य स्तूप मिला जहां भगवान बुद्ध के अस्थि का अष्टम भाग दफन किया गया था प्राप्त हुआ। गनवरिया की खुदाई में राजप्रासाद के अवशेष प्राप्त हुए। दोनों अवशेषों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया है। आज यह स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है।


इन प्रमुख बौद्ध स्थलों के साथ-साथ मध्यप्रदेश में सांची, महाराष्ट्र में अजंता-एलोरा की गुफाएं, उड़ीसा में धौली स्तूप, खंडगिरि, उदयगीरी गुफाएं भी प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।


- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

कोटा

 

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