कमाल का दिल है आपका, टोपी-तिलक की स्कैनिंग कर धड़कता है

By तरुण विजय | Aug 17, 2017

आदित्य नौ वर्ष का है। उसे अपने 34 वर्षीय पिता राजेश की चिता को अग्नि देनी पड़ी। कुछ ही समय पहले राजेश ने अपनी फेसबुक पोस्ट पर पूज्य डॉक्टर जी तथा पूज्य गुरुजी के चित्र के समक्ष खड़े हुए अपने बेटे आदित्य का सुन्दर, सलोना चित्र यह दिखाते हुए पोस्ट किया था कि मुझे गर्व है मेरा बेटा आर.एस.एस. का स्वयंसेवक है।  

जीवन में किसी भी पिता और माता के लिए सबसे दर्दनाक क्षण वह होता है जब उन्हें अपने बच्चे की चिता अपनी आंखों से देखनी पड़े। फिर बचता क्या है जीवन में?   

 

राजेश की मां ने अपने बेटे के साथ केवल चौंतीस वर्ष नहीं बिताए। उसने बिताए 297840 घंटे। उसने बिताए 17870400 मिनट। उसने बिताए न जाने कितने जन्मों के सपने, उम्मीदें और विश्वास के क्षण।

 

तिरुअनंतपुरम के पास कल्लमपल्ली गावं में राजेश एक नारियल तोड़ने वाले कुली सुदर्शनन का पुत्र। वह स्वयं मकान बनाने वाले मिस्त्री या कभी ऑटो रिक्शा चालक का काम करता था। उसकी पत्नी रीना घर संभालती। एक भाई राजीव, एक बहन राजी। मां ललिता।

 

ललिता और सुदर्शनन ने कितनी हसरतों और चाव से अपने तीनों बच्चों के नाम एक सुर, ताल वाले रखे। राजेश, राजीव और राजी। चौंतीस साल यानी दो लाख सत्तानवे हजार आठ सौ चालीस घंटों यानी एक करोड़ अठहत्तर लाख सत्तर हजार चार सौ मिनट ललिता ने जिस राजेश के साथ बिताए उसे अचानक चिता पर लेटे देखने का अर्थ क्या होता है।

 

यह संसद, विधानसभा या स्तम्भों में शोर मचाने वाले क्या कभी समझ पायेंगे, महसूस कर पाएंगे?   

 

राजेश और रीना के दो बेटे- एक छह वर्षीय आदित्य और दूसरा तीन वर्षीय अभिषेक। रीना क्या कभी अपने बच्चों को बता पाएगी कि जो आकाश जैसी भुजाएं, सागर जैसा सीना उनके पिता का था, उसे कम्युनिष्ट आतंकवादियों ने पहले काटा, फिर 89 घाव किए, फिर निष्प्राण किया........   

 

कौन पत्नी होगी जो अपने पति की इस दारुण मृत्यु को स्मरण कर कथा बताने का साहस कर पाएगी या बच्चों को प्रतिशोधी बनाना चाहेगी? उसके अनागत दिन, महीने वर्ष स्मृतियों के झरोखों से अंधेरे में उजाला ढूंढते ढूंढते ही बीतेंगे।   

 

और राजनेता कहेंगे- वह शहीद हो गया, चिंता न करो। हमने मुख्यमंत्री को 'सम्मन' किया (प्रस्तुत हुए), हमने केरल सरकार से रपट मागीं। 'अच्छा, अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया?' तो भाई ठीक ही तो है। अब अपराधी पकड़े गए, उनको सजा मिलेगी। और क्या चाहिए? ससंद में मामला उठाया, जोरदार उठाया, खूब तालियां पिटीं, चिल्लाए। कहा न था हमने? कर तो दिया। अब और क्या चाहिए? लिक्खा। दम तोड़ लिक्खा। पूरा वृत्तांत दिया। हृदय कांप उठे, मन रो पड़े। अइसा जबरदस्त लिक्खा। अब और का चाहिए बाबू? अब और क्या चाहिए सर?   

 

चाहिए वे 297840 घंटे। चाहिए वे 17870400 मिनट। चाहिए वापस राजेश की उष्मा। चाहिए राजेश की शाखा। चाहिए राजेश का स्वयंसेवकत्व। चाहिए राजेश की उपस्थिति।    

 

साहस है आप में कि राजेश की मां, ललिता की सूनी आंखों से उतर कर वहां ठहरे हुए सवालों को जवाब दे सको? तो सुनो।

 

राजेश को क्यों जाना पड़ा? वह एक स्वतंत्र गणतंत्र का सभ्य नागरिक था। उसे क्यों मरना पड़ा?   

 

वह भारत भूमि में लीन, एक साधारण मजदूर का मजदूर बेटा था। उस पर क्यों हमला हुआ?   

 

वह निष्ठावान हिन्दू था। हिन्दुस्तान का देशभक्त नागरिक था। हिंदू संस्कृति, सभ्यता, जीवन पद्धति और राष्ट्र की रक्षा के लिए संघ का स्वयंसेवक था। क्या यही उसका अपराध माना जा सकता है?

 

वह हिन्दू समाज के धर्मरक्षक, धर्म प्राण किन्तु सामाजिक कुहासे और बन्दिशों से प्रताड़ित अनुसूचित जाति में जन्मा था। वह दलित था। संघर्षशील, कर्तव्यवान, साहसी, स्वाभिमानी, सुसंस्कृत दलित। उसकी किसी से शत्रुता नहीं थी। फिर भी उसे बर्बरतापूर्वक, पाश्विकतापूर्वक मारा गया। क्यों?   

 

यह देश पिछले तेरह महीनों में चौदह ऐसी अमानुषिक घटनाओं को देख चुका है। देश देखेगा और रिपोर्ट लिखेगा तो फिर यह देश किन लोगों का है? अवैध, अमानुषिक, अस्वीकार्य कृत्य होंगे और हम बस देखा करेंगे? तो देशभक्त नागरिक होने का अर्थ क्या है? असुरक्षित जीवन जीने को बाध्य होना? जब पशु हत्या होती है तो आप सेकुलर ट्वीट करते हैं। जब पशु हत्यारों पर कोई गुस्सा उतारता है तो आप ट्वीट से बढ़कर जन्तर-मन्तर पर धरना देते हैं। जब गुस्सा बढ़ता है तो आप और बढ़ते हैं और उन लोगों को धिक्कारते हैं जो पशु हत्यारों पर प्रहार करते हैं। राजेश तो मनुष्य था।

 

सर आप उसकी इतनी बर्बर हत्या पर खामोशी ओढ़े रहते हैं। सर आपके सीने में रखा दिल दिलचस्प है। कभी बेहद संवेदनशील होकर याकूब मेमन के लिए धड़कता है और आधी रात के बाद सुप्रीम कोर्ट को तलब कर लेता है। कभी अखलाक और पहलू खान का मातम मनाता है। दिल तो आखिर दिल ही है। धड़कता है तो जाति थोड़े ही पूछकर धड़कता है। पर आपका दिल तो टोपी और तिलक की स्कैनिंग कर धड़कता है।   

 

यह लोकतंत्र, संविधान, समान न्याय, सामाजिक समरसता, सोशल जस्टिस, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काहे के शब्द हैं सर जी? जौली एल एल बी के जज की तरह गोल? 

 

राजेश का मरना सिर्फ एक स्वयंसेवक, एक भद्र नागरिक, एक देशभक्त युवक का मरना नहीं है। यह लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्था के उस पाखण्ड का बेनकाब होना है जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक देशभक्तों के मन में यह संशय पैदा करती है कि क्या उनकी देशभक्ति उनके असामयिक अन्त की एकमात्र वजह बन जायेगी?  

 

यह सवाल है डॉ. हेडगेवार के बाद जन्मीं उन तमाम पीढ़ियों का उन सबसे, जो देश को 2017 तक लेकर आए हैं कि क्या हजार साल से ज्यादा अपने अस्तित्व, धर्म, संस्कृति और जीवन पद्धति की रक्षा के लिए आतताइयों से निरंतर संघर्ष करते आ रहे हिन्दूनिष्ठ नागरिकों को आज भी कम्युनिष्ट जिहाद का शिकार होना पड़ेगा और आप सिर्फ देखा किया करेंगे? और चेतनाशील, यानी कि चैतन्य, पठित यानी सुपठित समाज के सामने प्रदर्शन विरोध, अनुनय विनय एवं प्रचार साहित्य वितरण के तमाम उपकरण अपनाते हुए उनसे कहना पड़ेगा कि सर, प्लीज इतने भयंकर घटनाक्रम पर प्लीज सर कुछ बोलिए न सर? कुछ लिखिए न सर? कुछ तो कीजिए न सर? सोचिए न सर अगर वो आपका बेटा होता सर............ सोचिए न सर। बहुत बिजी हैं सर?

 

- तरुण विजय

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