पितृपक्ष में रखें इन बातों का ध्यान, पितृ होंगे प्रसन्न

By प्रज्ञा पाण्डेय | Sep 10, 2022

आज से पितृपक्ष शुरू हो गया है, इस समय लोग अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करवाते हैं, तो आइए हम आपको कुछ उपाय बताते हैं जिनसे आपके पितृ प्रसन्न होकर आपको आर्शीवाद देंगे। 


पितृपक्ष का महत्व 

हमारे हिन्दू धर्म में पितृपक्ष विशेष महत्व रखता है। हमारे यहां मृत्यु उपरांत व्यक्ति का श्राद्ध करना आवश्यक होता है। ऐसी मान्यता है कि अगर किसी का श्राद्ध विधिपूर्वक नहीं हुआ तो उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है। माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान यमराज पितरों को उनके परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं। ऐसे में अगर पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दुखी होती है।

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पितृपक्ष से जुड़ी पौराणिक कथा 

एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में जोगे और भोगे नामक के दो भाई रहते थे। जोगे बड़ा था और भोगे छोटा था। जोगे बहुत धनवान था लेकिन भोगे गरीब था। जोगे की पत्नी को अपना धनवान होने का बहुत अभिमान था लेकिन भोगे की पत्नी बहुत सरल थी। पितृपक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने जोगे से पितरों का श्राद्ध करने को कहा लेकिन जोगे नहीं माना। लेकिन जोगे की पत्नी को लगा कि अगर श्राद्ध नहीं करेंगे तो समाज क्या कहेगा। इसलिए श्राद्ध करवाया और उसमें अपने मायके वालों को अपना धन दिखाने के लिए बुलाया। इस तरह जिस दिन श्राद्ध था उस दिन पितृ आए और उन्होंने देखा कि जोगे के घर उसके पत्नी के मायके वाले भोजन कर रहे हैं। यह देखकर पितृ बहुत दुखी हुए और भोगे के घर चले गए। भोगे के घर अगियारी निकली थी उसकी राख चाट कर पितृ चले गए। 


उसके बाद सभी पितृ जब नदी किनारे इकट्ठे हुए तो जोगे और भोगे के पितृ बहुत दुखी हुए। उन्होंने सोचा कि अगर भोगे के पास धन होता तो वह जरूर हमारा श्राद्ध अच्छे से करता । इसलिए सभी पितृ भोगे को धन मिले कहकर नाचने लगे। इधर भोगे के घर में भोजन नहीं होने के कारण उसके बच्चे भूखे थे। उन्होंने खाने का मांगा तो उनकी मां ने ऐसे ही कह दिया कि जाओ बर्तन में रखा है कुछ लेकर खा लो। जब बच्चों ने बर्तन खोला तो देखा कि उसमें सोने की मुहरे रखी हैं। उन्होंने यह बात मां को बतायी। इसके भोगे की पत्नी ने पितरों का अच्छे से श्राद्ध किया और जेठ-जठानी को बुलाकर आवभगत की। 


पितृ पक्ष में ये गलती न करें

पंडितों की मान्यता है कि पितृपक्ष में अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए। यदि आप अपने पितरों को तर्पण करते हैं, तो ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करें। तर्पण के दौरान पानी में काला तिल, फूल, दूध, कुश मिलाकर पितरों का तर्पण करें। शास्त्रों का मानना है कि कुश का उपयोग करने से पितर जल्द ही तृप्त हो जाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान आप प्रत्येक दिन स्नान के तुरंत बाद जल से ही पितरों को तर्पण करें। इससे उनकी आत्माएं जल्द तृप्त होती हैं और आशीर्वाद देती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के दिनों में पितरों के लिए भोजन रखें। वह भोजन गाय, कौआ, कुत्ता आदि को खिला दें। पंडितों का मानना है कि उनके माध्यम से ये भोजन पितरों तक पहुंचता है।

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किस दिन करें श्राद्ध

जिसकी मृत्यु तिथि का ज्ञान न हो उसका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए। मृतक का श्राद्ध मृत्यु होने वाले दिन करना चाहिए। दाह संस्कार वाले दिन श्राद्ध नहीं किया जाता। अग्नि में जलकर, विष खाकर, दुर्घटना में या पानी में डूबकर, शस्त्र आदि से अल्पमृत्यु वालों का श्राद्ध चर्तुदशी को करना चाहिए, चाहे उनकी मृत्यु किसी भी तिथि में हुई हो। आश्विन कृष्ण पक्ष में सनातन संस्कृति को मानने वाले सभी लोगों को प्रतिदिन अपने पूर्वजों का श्रद्धा पूर्वक स्मरण करना चाहिए, इससे पितर संतृप्त हो कर हमें दीर्घायु, आरोग्यता, पुत्र-पौत्रादि यश, स्वर्ग पुष्टि, बल, लक्ष्मी, स्थान, वाहन, सब प्रकार की समृद्धि सौभाग्य, राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं।


पितृपक्ष में निषेध हैं ये काम 

1. नए कपड़े और नया सामान न खरीदें।

2. दरवाजे पर आए भिखारी और अतिथि का अपमान न करें। 

3. बासी खाना न खाएं। साथ ही शराब और मांस का भी सेवन न करें।

4. पितृपक्ष में होने वाली पूजा में लोहे के बर्तन के स्थान पर हमेशा पीतल और तांबे के बर्तन का इस्तेमाल करें। 

5. तेल और सजावट का सामान इस्तेमाल नहीं करें। 

6. इस दौरान मसूर की दाल, अलसी, धतूरा, कुलथी और मदार की दाल का सेवन न करें। 


इन कामों से होते हैं पितृ प्रसन्न 

1. ब्राह्मणों को सम्मान पूर्वक बुलाकर भोजन कराएं। यह ध्यान रहे कि भोजन हमेशा दोपहर में ही कराएं, सुबह और शाम को देवताओं को समय होता है। 

2. ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें मीठा जरूर खिलाएं। मीठा खाने से ब्राह्मण प्रसन्न होंगे और उससे पितृ खुश होंगे। 

3. इसके अलावा आप गाय, कुत्ते और कौवों को भोजन करा सकते हैं। इन्हें भोजन कराएं बिना श्राद्ध अधूरा माना जाता है। 


- प्रज्ञा पाण्डेय

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