कारगिल युद्ध: पाकिस्तान के धोखे और भारतीय जवानों के बहादुरी, बलिदान व शौर्य की गाथा

By अभिनय आकाश | Jul 25, 2020

है नमन उनको जो अपने देह को अमरत्व देकर इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गए। 

26 जुलाई यह महज एक तारीख नहीं यह दिन है याद दिलाने के लिए कि देश के स्वाभिमान की रक्षा के लिए कुर्बानी क्या होती है। यह दिन है उन तमाम रणबांकुरे के आगे नमन करने का जो अपने आप को वर्दी में बांधकर देश को सुरक्षित फिजाओं में आगे बढ़ने का मौका देते हैं। यह दिन है उन तमाम साहसी जवानों के आगे झुककर नतमस्तक हो जाने का जो सब कुछ छोड़कर सिर्फ और सिर्फ एक चीज के लिए अग्रसर होते हैं। वह है वतन, देश, हिंदुस्तान हमारा, इंडिया, हमारा भारत... 

आज के इस विश्लेषण में हम बात करेंगे 21 साल पहले भारतीय जवानों के शौर्य और पराक्रम की वह कहानी के बारे में जिसे सुनकर हर हिंदुस्तानी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। बहादुरी की वह मिसाल जो आज भी पाकिस्तान को शूल की तरह चुभती है। 21 साल पहले पाकिस्तान के छल और धोखे के जवाब में भारत ने उसे ऐसा घाव दिया था जिसकी टीस आज भी उसके जेहन में जिंदा है। 21 साल पहले साल 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल में हुई लड़ाई की कहानी भारतीय सैन्य इतिहास का वह महान पन्ना जहां भारतीय जवानों ने असंभव को संभव कर के दिखा दिया था।

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1971 की जंग के अलावा भारत और पाकिस्तान के बीच हर जंग की शुरुआत छलावे से हुई। चाहे वो आजादी के बाद कश्मीर हड़पने की साजिश हो या 1965 में स्थानीय बगावत छेड़ने की कोशिश। लेकिन दोनों देशों की बदलती हुकूमतों के बीच बहुत कुछ बदल रहा था। बदलती सियासी फिजाओं के साथ ही विश्व में भारत का रूतबा भी बढ़ता जा रहा था। 11 मई 1998 को पोखरण में परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। में परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। इससे पहले 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने पहला परमाणु परीक्षण कर दुनिया को भारत की ताकत का लोहा मनवाया था, जिसके बाद ये भारत का दूसरा परमाणु परिक्षण था। लेकिन 1978 से कोशिश में लगे पाकिस्तान को अपने वजूद पर खतरा नजर आने लगा। उसी महीने की 28 तारीख को पाकिस्तान ने भी चगई में परमाणु परीक्षण कर डाला। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल का एक निर्णायक लम्हा था फरवरी 1999 में उनकी लाहौर बस यात्रा। यह ऐसा फैसला था जो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों में आमूलचूल बदलाव लाने की संभावना से वाबस्ता था। तपे-तपाए सियासतदां वाजपेयी में इसे समझने की चतुराई भी थी और हर चीज में बुरा देखने वालों को कायल करने की बहादुरी भी। 20-21 फरवरी की तारीखें निकाली गईं और तैयारियां जल्दी ही हिंदुस्तानी बारात की तरह दिखाई देने लगीं। बस में यात्रा पर साथ जाने वाले आमंत्रित लोगों में देव आनंद, कपिल देव, कुलदीप नैयर, जावेद अख्तर, सतीश गुजराल, शत्रुघ्न सिन्हा और मल्लिका साराभाई थे। जब अटल बिहारी वाजपेयी 1999 में बस से लाहौर गये थे और अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ को गले लगाकर अपनी प्रिय छवि की छाप छोड़ी, तब द्विपक्षीय संबंधों में जो आस जगी थी वह महज कुछ समय के लिए थी। 

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ये सैन्य परंपरा रही है कि जब ठंड के मौसम में पहाड़ी चोटियां बर्फ ओढ़ लेती हैं तब भारत और पाकिस्तान की फौज उचांई के पोस्ट छोड़ देती हैं। मौसम फिर बदलने पर ही वे दोबारा अपने पोस्ट पर तैनात होते हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 में हुए शिमला समझौते के तहत तय हुआ था कि ठंड के मौसम में दोनों देशों की सेनाएं जम्मू-कश्मीर में बेहद बर्फीले स्थानों पर मौजूद LoC को छोड़कर कम बर्फीले वाले स्थान पर चली जाएंगी, क्योंकि सर्दियों में ऐसी जगहों का तापमान माइनस डिग्री में चले जाने के कारण दोनों देशों की सेनाओं को काफी मुश्किलें होती थीं। यूं तो हर साल बर्फ पिघलने के वक्त सैनिकों की तैनाती से पहले घुसपैठ की कोशिशें आम हैं। लेकिन 1999 में ये कोशिश कुछ अलग थी। ताशी नामग्याल कारगिल के बाल्टिक सेक्टर में अपने नए याक की तलाश कर रहे थे। वे पहाड़ियों पर चढ़-चढ़कर देख रहे थे कि उनका याक कहां खो गया है। इसी दौरान कोशिश करते-करते उन्हें अपना याक नज़र आ गया। लेकिन इस याक के साथ-साथ उन्हें जो नज़र आया उसे कारगिल युद्ध की पहली घटना माना जाता है। उन्होंने कुछ संदिग्ध लोगों को देखा और भारतीय सेना को तत्काल इस बारे में जानकारी दी।

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पाकिस्तानी धोखे और भारतीय जवानों की बहादुरी की कहानी है ये लड़ाई 

भारतीय सेना दोबारा अपनी पोस्टों पर गई तो पता चला कि पाकिस्तान सेना की तीन इंफेंट्री ब्रिगेड कारगिल की करीब 400 चोटियों पर कब्जा जमाए बैठी है। पाकिस्तान ने डुमरी से लेकर साउथ ग्लेशियर तक करीब 150 किलोमीटर तक कब्जा कर रखा था।भारतीय सेना को 4 मई 1999 को पाकिस्तान की हरकत के बारे में पता चला था। जिसके बाद जब 5 जवानों का गश्ती दल वहां पहुंचा तो घुसपैठियों ने उन्हें भयंकर यातनाएं देकर निर्ममता से उनकी हत्या कर दी थी और भारत को उनके क्षत-विक्षत शव सौंपे थे।

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14 मई 1999 को भारतीय सेना के कैप्‍टन सौरभ कालिया को पाकिस्‍तानी घुसपैठियों की मौजूदगी के बाबत खबर मिलने के बाद अपनी टुकड़ी को लेकर पेट्रोलिंग पर निकल गए।  कैप्‍टन सौरभ कालिया जल्‍द ही अपने साथियों के साथ उस ठिकाने तक पहुंच गए, जहां पर पाकिस्‍तानी घुसपैठिए मौजूद थे। यहां पर कैप्‍टर सौरभ कालिया और उनके साथियों की संख्‍या महज पांच थी, जबकि घात लगाए बैठे दुश्‍मनों की संख्‍या सैकड़ो में थे। पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने कैप्‍टन सौरभ कालिया और उसके साथियों का अपहरण कर लिया। जिसके बाद उनकी और उनके साथियों की निमृम तरीके से हत्‍या कर दी गई।  25 मई को तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक पत्रकार वार्ता के दौरान देश को कारगिल में हुई घुसपैठ की जानकारी दी। वहीं 26 मई को तत्‍कालीन वायुसेना प्रमुख एवाई टिपनिस ने एयर स्‍ट्राइक के आदेश जारी कर दिए। भारतीय वायुसेना के जवानों की ऑपरेशन सफेद सागर शुरू किया। इस बमबारी ने पूरे कारगिल को थर्रा दिया। पाकिस्तानी घुसपैठियों को ये एहसास करा दिया कि वो भले ही ऊंचाई पर बैठे हो, लेकिन वायुसेना के गोलों से दूर नहीं। वायुसेना को ये जिम्मेदारी कारगिल में घुसपैठियों को भगाने और थल सेना की मदद के लिए सौंपी गई थी।  27 मई को फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता अपने मिग 27 विमान से द्रास की चोटियों की तरफ रवाना हुए, लेकिन ऊंची पहाड़ियों में बैठे पाकिस्‍तानी दुश्‍मनों ने स्ट्रिंग मिसाइल से उनके विमान को हमला कर दिया। मजबूरन फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को पैराशूट से इजेक्‍ट होना पड़ा। फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता इस कवायद के बीच नियंत्रण रेखा के पार चले गए, जहां पाकिस्‍तानी सेना ने उन्‍हें बंधक बना लिया।

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27 मई को ही, भारतीय वायु सेना ने टाइगर हिल और प्‍वाइंट 4590 पर जबरदस्‍त हमला किया। इसी बीच, नीचे से भारतीय फौज की तोपों ने भी पहाड़ियों पर गोले बरसाना शुरू कर दिए। तोप से निकल रहे गोलों की आड़ में अब भारतीय फौज के जवानों ने पहाडि़यां चढ़ना शुरू कर दिया। तीन दिनों के लंबे संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने 9 जून को बटालिक सेक्‍टर की दो अग्रिम चौकियों पर कब्‍जा कर भारतीय तिरंगा फहरा दिया। 13 जून को भारतीय सेना ने द्रास सेक्‍टर के तोलोलिंग चोटी पर भी कब्‍जा कर लिया। 2 जुलाई को भारतीय सेना ने कारगिल पर तीन तरफ से हमला बोला और 4 जुलाई को टायगर हिल पर भारतीय सेना की जांबाजी के प्रतीक के तौर पर तिरंगा फहराने लगा। 5 जुलाई को भारतीय सेना ने द्रास पर भी अपना कब्‍जा जमा लिया। वहीं 7 जुलाई को भारतीय सेना ने बटालिक की जुबर हिल पर भारतीय तिरंगा फहरा दिया। भारतीय सेना के अदम्‍य साहस को देख अबतक पाकिस्‍तानी रेंजर्स के हाथपांव फूल चुके थे। 11 जुलाई को भारतीय सेना के खौफ से पाकिस्‍तानी रेंजर्स को भागते हुए देखा गया। 14 जुलाई को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऑपरेशन विजय की जीत की घोषणा कर दी। 26 जुलाई को तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाए जाने का एलान किया। इस युद्ध में बड़ी संख्या में रॉकेट और बम का इस्तेमाल किया गया। इस दौरान करीब दो लाख पचास हजार गोले दागे गए। वहीं 5,000 बम फायर करने के लिए 300 से ज्यादा मोर्टार, तोपों और रॉकेट लांचर का इस्तेमाल किया गया। लड़ाई के 17 दिनों में हर रोज प्रति मिनट में एक राउंड फायर किया गया। बताया जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यही एक ऐसा युद्ध था जिसमें दुश्मन देश की सेना पर इतनी बड़ी संख्या में बमबारी की गई थी। वहीं भारतीय वायुसेना के 60 दिन तक चलने वाले 'ऑपरेशन सफेद सागर' में करीब 300 विमानों ने 6500 बार उड़ान भरी। IAF के फाइटर जेट्स ने 1235 मिशन उड़ानें भरीं और 24 बड़े टारगेट को निशाना बनाया।

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भारत के वीर सपूत 

कैप्टन विक्रम बत्रा : 'ये दिल मांगे मोर'- हिमाचल प्रदेश के छोटे से कस्बे पालमपुर के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा उन बहादुरों में से एक हैं जिन्होंने एक के बाद एक कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई के बाद फतह हासिल की थी। यहां तक कि पाकिस्तानी लड़ाकों ने भी उनकी बहादुरी को सलाम किया था और उन्हें 'शेरशाह' के नाम से नवाजा था।

कैप्टन अनुज नायर : 17 जाट रेजिमेंट के बहादुर कैप्टन अनुज नायर टाइगर हिल्स सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी 'वन पिंपल' की लड़ाई में अपने 6 साथियों के शहीद होने के बाद भी मोर्चा संभाले रहे। गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अतिरिक्त कुमुक आने तक अकेले ही दुश्मनों से लोहा लिया जिसके परिणाम स्वरूप भारतीय सेना इस सामरिक चोटी पर भी वापस कब्जा करने में सफल रही।

स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा : स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान भी दुश्मन की गोलीबारी का शिकार हुआ। अजय का लड़ाकू विमान दुश्मन की गोलीबारी में नष्ट हो गया फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पैराशूट से उतरते समय भी शत्रुओं पर गोलीबारी जारी रखी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।

लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय : 1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय की बहादुरी की इबारत आज भी बटालिक सेक्टर के 'जुबार टॉप' पर लिखी है। अपनी गोरखा पलटन लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में 'काली माता की जय' के नारे के साथ उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। 

मेजर पद्मपाणि आचार्य : राजपुताना राइफल्स के मेजर पद्मपाणि आचार्य भी कारगिल में दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। उनके भाई भी द्रास सेक्टर में इस युद्ध में शामिल थे। उन्हें भी इस वीरता के लिए 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया।

कारगिल की दुर्गम और ऊंची चोटियों में भारतीय जवानों ने जिस साहस और शौर्य का परिचय दिया। इस लड़ाई में भारत के 527 वीर शहीद हुए और एक हजार से भी ज्यादा घायल हुए। भारत आज भी कारगिल में शहीद हुए अपने जवानों को श्रद्धाजंलि देता है। - अभिनय आकाश

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