तिरंगा लहराकर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर कहने वाले परमवीर विक्रम बत्रा की दास्तान, पाकिस्तान भी जिन्हें पुकारता था 'शेरशाह'

By अभिनय आकाश | Jul 07, 2021

सुन हमला देश के ऊपर बंदूक उठा चल देता हूं,

है मौत का गम किसको मैं खून धरा को देता हूं।  

जिंदगी में हर किसी को एक मौका मिलता है वीरता दिखाने का लेकिन शौर्यगाथा उसी की लिखी जाती है जो उस मौके पर खड़ा उतरता है। आज हम देश के उस असली हीरो की बात करेंगे जिसने 22 साल पहले अपने शब्दों से अपनी वीरता से और अपने सर्वोच्च बलिदान से पूरे देश को गौरवांवित किया था। आज पूरा देश कारगिल युद्ध के हीरो शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को याद कर रहा है जिसके बारे में खुद इंडियन आर्मी चीफ ने कहा था कि अगर वो जिंदा वापस आता, तो इंडियन आर्मी का हेड बन गया होता। 22 साल पहले आज ही के दिन विक्रम बत्रा कारगिल की चोटी प्लाइंट 4875 को पाकिस्तान के कब्जे से खाली करवाते हुए शहीद हो गए थे। उस वक्त कैप्टन विक्रम बत्रा केवल 24 साल के थे। 

ये 1999 की बात है जब कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ को लेकर सरहद पर टकराव बढ़ता जा रहा था। लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा छुट्टियों में अपने घर पालमपुर में थे। न्यूगल कैफे में अपने दोस्त के साथ बैठे विक्रम ने करगिल की लड़ाई के जिक्र पर अपने मित्र से कहा कि या तो मैं तिरंगा झंडा गाड़ कर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा। जरा सोचिए जिसकी जुबान पर ऐसे अंगारे थिरकते हो उसकी बाजुओं में कैसी ताकत फड़कती होगी। पर हिम्मत की उस दास्तां से पहले आपको थोड़ा पीछे लिए चलते हैं, जब 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के बत्रा परिवार में  दो किलकारियां एक साथ गूंजी थी। हूबहू एक से दिखने वाले दोनो भाई विक्रम और विशाल को लव और कुश भी बुलाते थे। मां कमल बत्रा खुद टीचर थी। बेटों को प्राथमिक शिक्षा घर पर ही दी। पर एक बार बेटों ने स्कूल में दाखिला लिया तो विक्रम दिलों पर राज करने लगे।  पालमपुर से स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद विक्रम ने चंडीगढ़ में स्नातक की पढ़ाई की जिसके दौरान ही उन्होंने एनसीसी का सी सर्टिफिकेट हासिल किया और दिल्ली में हुई गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। 

मर्चेंट नेवी की नौकरी ठुकरा देश सेवा को चुना 

विक्रम बत्रा को शुरू से ही कुछ अलग करने का जुनून था। 1997 में उन्हें मर्चेंट नेवी से नौकरी की कॉल आ गई। घर पर सब बहुत खुश थे। लाखों की सैलरी और अच्छी प्रोफाइल। उन्हें हांगकांग में ड्यूटी ज्वाइन करने के लिए कहा गया था। लेकिन आखिरी वक्त में ही इनमें एक बदलाव आया और उन्होंने ये निश्चित किया कि जिंदगी में कुछ करना है, अपने परिवार और देश के लिए कुछ करना है और इसी सोच के साथ विक्रम बत्रा ने मर्चेंट नेवी की नौकरी ज्वाइन करने से इनकार करते हुए भारतीय सेना में जाने की ठानी। जिसके बाद उन्होंने सेना में जाने का फैसला लिया। 

इसे भी पढ़ें: आतंक ने उठाया नया हथियार, जवाबी हमले को हिंद भी तैयार, फ्लाइंग टेरर की तबाही तय, जानें ड्रोन से संबंधित हरेक जानकारी

टीवी सिरियल से मिली सेना में जाने की प्रेरणा

भारतीय सेना में जाने का जज्बा विक्रम बत्रा को 1985 में दूरदर्शन पर प्रसारित एक सीरियल 'परमवीर चक्र' देख कर पैदा हुआ था। इस बात का जिक्र बीबीसी से करते हुए विक्रम बत्रा के जुड़वा भाई विशाल ने बताया कि उस वक्त हमारे यहां टीवी नहीं हुआ करता था। इसलिए हम अपने पड़ोसी के यहां टीवी देखने जाते थे। मैं अपने सपने में भी नहीं सोच सकता था कि उस सीरियल में देखी गई कहानियाँ एक दिन हमारे जीवन का हिस्सा बनेंगीं।  

कारगिल की चोटी .5140 को खाली कराने का टास्क मिला

मैं शपथ लेता हूं कि भारत के संविधान के अनुरूप भारतीय सेना में सैनिक के रूप में कहीं भी आदेश होगा जाऊंगा। देश की रक्षा के लिए..। दिसंबर के महीने में इन शब्दों के साथ विक्रम बत्रा ने शपथ ली। विक्रम बत्रा की 13 जेएके रायफल्स में 6 दिसम्बर 1997 को लेफ्टिनेंट के पोस्ट पर जॉइनिंग हुई । दो साल के अंदर ही वो कैप्टन बन गए। उसी वक्त कारगिल वॉर शुरू हो गया। घर से ड्यूटी पर लौटने के 18 दिन बाद ही उनकी यूनिट को 19 जून 1999 को ये आदेश मिला कि कारगिल की चोटी .5140 को पाकिस्तान के कब्जे से खाली कराना है। ये कारगिल युद्ध में उनकी पहली बड़ी लड़ाई थी। कारगिल की चोटियों पर बैठे पाकिस्तानी सेना से लड़ाई आसान नहीं थी। लेकिन सधी हुई रणनीति और वीरता से कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी यूनिट ने .5140 की लड़ाई जीत ली और वहां पर तिरंगा फहरा दिया। इस चोटी क बाद में टाइगर प्वाइंट नाम दिया गया। विक्रम बत्रा के ही नेतृत्व में ये एक ऐसी लड़ाई थी जिसमें यूनिट के किसी भी सैनिक की जान नहीं गई थी। .5140 की जीत ने भारतीय सेना में एक ऐसा जोश भर दिया कि कारगिल की एक के बाद एक चोटियों पर ऐसे ही तिरंगा लहराने लगा। 

इसे भी पढ़ें: मां को दौलत बताने वाले शायर के पुत्र ने जमीं की चाह में लिख दी फायरिंग की झूठी कहानी! मुनव्वर राना का विवादों से रहा है पुराना नाता

जब पाक सैनिकों ने कहा, ‘हमें माधुरी दीक्षित चाहिए’

जिस समय पाकिस्‍तान की तरफ से लगातार गोलीबारी हो रही थी, उसी समय पाकिस्‍तानी सैनिकों ने कैप्‍टन बत्रा पर ताना कसा और कहा, ‘हमें माधुरी दीक्षित दे दो तो हम यह प्‍वॉइन्‍ट छोड़ देंगे।’ इसके बाद कैप्‍टन बत्रा ने उन पर यह कहते हुए फायर किया ‘विद लव फ्रॉम माधुरी।’ 

ये दिल मांगे मोर

पहली बड़ी जीत के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा ने जो शब्द कहे थे वो उस वक्त ही नहीं बल्कि आज भी पूरे देश में गूंजते हैं। ये शब्द हैं "ये दिल मांगे मोर" ये लाइने पूरे कारगिल युद्ध का नारा बन गए थे। इसके बाद 29 जून 1999 को कारगिल की चोटी प्लाइंट 4875 को खाली करवाने की तैयारी हुई और फिर से कैप्टन विक्रम बत्रा की टीम को बुलाया गया। ये लड़ाई बेहद मुश्किल की थी क्योंकि ये जगह 17 हजार फीट की ऊंचाई पर थी। जहां चढ़ाई करने लड़ाई करना और ऊपर बैठे दुश्मनों को मार गिराना बहुत कठिन काम था। लेकिन कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी टीम ने ये ठान लिया था कि इस चोटी पर तिरंगा फहराकर ही लौटना है। 

इसे भी पढ़ें: सहकार से समृद्धि के विजन वाला मोदी सरकार का नया मंत्रालय, क्या होगा काम और क्यों पड़ी जरूरत?

शेर शाह के नाम से मशहूर

कैप्टन विक्रम बत्रा शेरशाह के नाम से भी जाने जाते थे। चोटी पर बैठे पाकिस्तानी सेना के कमांडर ने ये कहा था कि शेर शाह ऊपर मत आना वापस नहीं जाओगे। इस पर कैप्टन बत्रा ने जवाब दिया था कि एक घंटे में पता चल जाएगा कौन जाएगा और कैसे जाएगा। ऊपर से पाकिसातनी सेना की भयानक गोलीबारी के बावजूद कैप्टन विक्रम बत्रा दुश्मक तक पहुंच गए और अपने साथी कैप्टन अनुज नायर और दूसरे वीर जवानों के साथ मिलकर पाकिस्तान के बंकर औऱ पोस्ट नष्ट कर दिए। इसी भयानक लड़ाई में 7 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के पांच जवानों को मार गिराते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा ने भी देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया। रिटायर्ड कैप्‍टन नवीन नगाप्‍पा को आज तक याद है कि कैसे अपनी जान की परवाह न करते हुए कैप्‍टन बत्रा ने उन्‍हें घायल हालत में बंकर से बाहर निकाला था। जिस समय वह नगाप्‍पा को बाहर ला रहे थे, दुश्‍मन की गोली उन्‍हें लग गई और इसी पल वह शहीद हो गए। 

परमवीर चक्र से सम्मानित

कैप्टेन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र दिया गया। 26 जनवरी, 2000 को उनके पिता गिरधारीलाल बत्रा ने हज़ारों लोगों के सामने उस समय के राष्ट्रपति के आर नाराणयन से वो सम्मान हासिल किया। इसके साथ ही 4875 की चोटी को भी  विक्रम बत्रा टॉप नाम दिया गया है। -अभिनय आकाश


प्रमुख खबरें

भारत की समृद्ध संस्कृति का प्रदर्शन, वैश्वविक नेताओं को पीएम मोदी ने दिए ये उपहार

NDA या INDIA... महाराष्ट्र और झारखंड में किसकी सरकार, शनिवार को आएंगे नतीजे, UP पर भी नजर

OpenAI ला रही वेब ब्राउजर, गूगल को मिल रही कांटे की टक्कर

लोकायुक्त संशोधन विधेयक विधान परिषद में पेश, नारा लोकेश ने गठबंधन सरकार की प्रतिबद्धता पर दिया जोर