के कामराज थे आजाद भारत के सबसे सफल 'किंगमेकर', स्वतंत्रता आंदोलन में भी निभाई थी अहम भूमिका

By अंकित सिंह | Jul 15, 2022

के कामराज भारत के महान स्वतंत्रा सेनानी तो रहे ही बाद में वे मझे हुए राजनेता भी साबित हुए। के कामराज को किंग मेकर के तौर पर जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने उन्हें दो बार प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला, लेकिन उन्होंने स्वीकार नहीं किया। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि साल 1964 में जब जवाहरलाल नेहरू की असामयिक मृत्यु हुई तो कांग्रेस नेतृत्व संकट से जूझ रही थी। सभी लोग कामराज की ओर देख रहे थे। हालांकि, कामराज में लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी तक पहुंचाया। लाल बहादुर की भी असामयिक मृत्यु के बाद के कामराज आसानी से प्रधानमंत्री बन सकते थे। लेकिन, उन्होंने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनवा दिया। हालांकि भारत के लोग यह मान के चल रहे थे कि इस बार देश के प्रधानमंत्री के कामराज ही बनेंगे। भारतीय राजनीति में के कामराज की भूमिका काफी अहम रहे हैं। 


के कामराज का जन्म 15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के विरुधुनगर, मदुरै में हुआ था। गांव के ही पारंपरिक स्कूल में इनका दाखिला हुआ। बाद में विरुधुनगर हाई स्कूल में इन्हें नामांकन कराया गया। जब कामराज 6 वर्ष के थे तो उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। अपनी मां का हाथ बढ़ाने के लिए उन्होंने 1914 में स्कूल छोड़ दिया। धीरे-धीरे सामाजिक कार्यों में उनकी रुचि बढ़ने लगी। वह 18 वर्ष की उम्र में 1920 में राजनीति में सक्रिय हो गए तथा कांग्रेस में शामिल हुए स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर भाग लिया। 1922 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन का भी हिस्सा रहे। नमक सत्याग्रह के दौरान भाग लेने के की वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा। हालांकि कांग्रेस में के कांग्रेस की पकड़ मजबूत होती चली गई। वे लगातार राजनीति में सक्रिय होते रहे जिसकी वजह से उन्हें गिरफ्तार किया जाता रहा। 1946 से 1952 तक वह मद्रास प्रोविंशियल और मद्रास स्टेट कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। 1954 में मद्रास विधानसभा के सदस्य बने।

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सी राजगोपालाचारी के मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर इस्तीफा देने के बाद के कामराज को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। 13 अप्रैल 1954 से लेकर 2 अक्टूबर 1963 तक वह मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री रहे। के कामराज लगातार तीन बार मद्रास के मुख्यमंत्री बने। तमिलनाडु की अगली पीढ़ी के लिए उन्होंने बुनियादी संरचना को मजबूत किया। शिक्षा के क्षेत्र में कई बड़े उन्होंने निर्णय लिए। गांधीवादी कामराज ने 2 अक्टूबर 1963 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनका मानना था कि बुजुर्ग नेताओं को संगठन के कामकाज में लौटना चाहिए। नए नेताओं को आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए। के कामराज की यह बात जवाहरलाल नेहरू को भी बेहद पसंद आई। इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया। के कामराज की इस निर्णय की वजह से 6 कैबिनेट मंत्रियों और 6 मुख्यमंत्रियों को भी इस्तीफा देना पड़ गया था जिसमें मोरारजी देसाई, लाल बहादुर शास्त्री जैसे बड़े नाम थे। 


के कामराज उन चंद नेताओं में से थे जो गांधी परिवार से ताल्लुक नहीं रखते थे बावजूद इसके उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष रहने का गौरव प्राप्त हुआ। कामराज का हमेशा यह मानना था कि देश के निर्माण के लिए पार्टी का फिट रहना जरूरी है। ऐसे में उन्होंने प्रधानमंत्री का मोह त्याग कर पार्टी को ही मजबूत करने की हमेशा कोशिश की। जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के बाद के कामराज 1964 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। पार्टी के उथल पुथल को उन्होंने बखूबी संभाला। 1967 तक उन्होंने कांग्रेस का नेतृत्व किया। के कामराज का जीवन बेहद सादा था। वह भारत के ऐसे मुख्यमंत्री थे जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी। सादगी में रहना पसंद करते थे। सीएम होने के नाते उन्हें जेड लेवल की सुरक्षा थी बावजूद इसके वे इसे लेने से मना करते थे। जनता के बीच वह सीधे जाना पसंद करते थे। बताया जाता है कि जब कामराज का निधन हुआ तो उनके पास केवल 130 रुपये, 2 जोड़ी चप्पल, चार शर्ट और कुछ किताबे थी। के कामराज भारतीय राजनीति में पहले और सबसे सफल किंग में कर रहे हैं। लाल बहादुर शास्त्री हो या फिर इंदिरा गांधी, दोनों को प्रधानमंत्री पद की कुर्सी तक पहुंचाने में कामराज की भूमिका अहम रही। 


- अंकित सिंह

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