Prabhasakshi Exclusive: Justin Trudeau को इस बार भारी पड़ेगा भारत से बैर, वोट बैंक की राजनीति Canada का बड़ा नुकसान करायेगी

By नीरज कुमार दुबे | Oct 16, 2024

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि भारत और कनाडा के तनावपूर्ण संबंध अब कटुता के दौर में पहुँच गये हैं। इसे कैसे देखते हैं आप? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि यह सब चुनावी राजनीति का चक्कर है। उन्होंने कहा कि दरअसल घरेलू स्तर पर अपनी गिरती लोकप्रियता रेटिंग और सरकार के खिलाफ बढ़ते असंतोष के चलते ट्रूडो को यह कदम उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि कनाडाई मीडिया में भी ट्रूडो के इस कदम को अगले साल के संघीय चुनावों से पहले राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सिख समुदाय को लुभाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि जीवनयापन की बढ़ती लागत, खराब स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और बढ़ती अपराध दर की शिकायतों के बीच, इप्सोस सर्वेक्षण से पता चला है कि केवल 26% लोगों ने ट्रूडो को सर्वश्रेष्ठ पीएम उम्मीदवार के रूप में देखा, जोकि कंजर्वेटिव नेता पियरे पोइलीवरे से 19 प्रतिशत अंक कम है। उन्होंने कहा कि कई राजनीतिक विश्लेषक भी भविष्यवाणी कर रहे हैं कि ट्रूडो की पार्टी को ब्रिटेन में कंजर्वेटिवों की तरह ही चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि कनाडा में 7.7 लाख से अधिक सिख हैं, जो चौथा सबसे बड़ा जातीय समुदाय है। उन्होंने कहा कि माना जाता है कि कनाडा में सिखों का एक बड़ा वर्ग खालिस्तान की मांग का समर्थन करता है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों पर ट्रूडो की नीति को लेकर भारत हमेशा आपत्ति जताता रहा है। पिछले साल नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी ट्रूडो के साथ बैठक के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा में चरमपंथियों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि वैसे यह पहली बार नहीं है कि अलगाववादियों ने भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय संबंधों में बड़ी खटास पैदा की है। उन्होंने कहा कि ट्रूडो के पिता, पियरे ट्रूडो जब कनाडा के प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने भी नई दिल्ली के साथ बेहतर संबंध नहीं रखे थे क्योंकि वह भी वोट बैंक की राजनीति के चलते अलगाववादियों के साथ थे।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि एक और कारण यह समझ आ रहा है कि ट्रूडो ने भारत विरोधी कदम एक बार फिर इसलिए उठाया है क्योंकि उनकी सरकार पर आरोप लगा है कि वह घरेलू राजनीति में चीन के हस्तक्षेप को रोकने में लापरवाही बरत रही है। उन्होंने कहा कि कनाडा ने अपने सहयोगी देशों से भी भारत के खिलाफ समर्थन मांगा लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो ट्रूडो के मंत्रिमंडल में ऐसे व्यक्ति शामिल हैं, जो भारत को लेकर चरमपंथी और अलगाववादी एजेंडे से खुले तौर पर जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि कनाडाई प्रधानमंत्री भारत पर तमाम तरह के आरोप लगा रहे हैं मगर कोई सबूत नहीं दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि कनाडा सरकार ने कई अनुरोधों के बावजूद भारत सरकार के साथ एक भी सबूत साझा नहीं किया है। उन्होंने कहा कि इससे इस बात में कोई संदेह नहीं रह जाता कि यह जांच के बहाने राजनीतिक लाभ के लिए जानबूझकर भारत को बदनाम करने की एक रणनीति है। उन्होंने कहा कि ट्रूडो की सरकार एक ऐसे राजनीतिक दल पर निर्भर थी, जिसके नेता भारत के खिलाफ खुलेआम अलगाववादी विचारधारा का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि यह भी कोई संयोग नहीं है कि कनाडा सरकार की ओर से तनाव उस समय बढ़ाया गया है जब प्रधानमंत्री ट्रूडो को विदेशी हस्तक्षेप पर एक आयोग के समक्ष गवाही देनी है। उन्होंने कहा कि ट्रूडो सरकार भारत विरोधी अलगाववादी एजेंडे को बढ़ावा देती है लेकिन अब उसे इसकी कीमत भी चुकानी पड़ेगी क्योंकि अबकी बार जो बैर लिया गया है उसका बुरा आर्थिक प्रभाव कनाडा की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है।

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