By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Dec 15, 2024
नयी दिल्ली। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक समारोह में कथित तौर पर विवादास्पद बयान देने वाले न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव इस विवाद पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए जल्द ही उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम के समक्ष पेश हो सकते हैं। शीर्ष अदालत ने 10 दिसंबर को बयानों से जुड़ी खबरों का संज्ञान लेते हुए पूरे मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय से एक रिपोर्ट तलब की थी।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव द्वारा दिए गए भाषण को लेकर समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों का संज्ञान लिया है। इस बारे में विवरण और ब्योरा उच्च न्यायालय से तलब किया गया है और यह मामला विचाराधीन है।’’
स्थापित प्रथाओं के अनुसार, जिस न्यायाधीश के खिलाफ किसी विवादास्पद मुद्दे पर शीर्ष अदालत कॉलेजियम द्वारा संबंधित उच्च न्यायालय से रिपोर्ट मांगी जाती है, उसे भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के नेतृत्व वाले उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम के समक्ष अपना पक्ष रखने का एक अवसर दिया जाता है।
शीर्ष अदालत के सूत्रों ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को स्थापित प्रथाओं के अनुसार उपस्थित होने और अपना पक्ष रखने के लिए कहा जा सकता है। न्यायमूर्ति यादव ने आठ दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में कहा था कि समान नागरिक संहिता का मुख्य उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना है। वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में विहिप के कानूनी प्रकोष्ठ और उच्च न्यायालय इकाई के एक प्रांतीय सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।
बहुमत के अनुसार काम करने वाले कानून सहित विभिन्न मुद्दों पर न्यायमूर्ति यादव के वीडियो एक दिन बाद व्यापक रूप से प्रसारित हो गये। इस पर विपक्षी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और उन्होंने न्यायाधीश के कथित बयानों पर सवाल उठाए तथा इसे ‘‘घृणास्पद भाषण’’ करार दिया। वकील एवं एक गैर सरकारी संगठन ‘केंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स’ के संयोजक प्रशांत भूषण ने मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना को एक पत्र लिखकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आचरण की ‘आंतरिक जांच’ की मांग की।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता बृंदा करात ने भी प्रधान न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर न्यायाधीश के भाषण को उनकी शपथ का उल्लंघन बताया था और कहा था, ‘‘न्यायालय में ऐसे व्यक्तियों के लिए कोई जगह नहीं है।’’ करात ने इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत से कार्रवाई की मांग की थी। इसी तरह, बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने न्यायाधीश के बयान की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था और उनसे बयान को वापस लेने समेत माफी की मांग की थी।