By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Dec 03, 2019
नयी दिल्ली। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनबीसीसी लि. और मुंबई की सुरक्षा रीयल्टी ने मंगलवार को दिवाला हो चुकी रीयल्टी क्षेत्र की कंपनी जेपी इन्फ्राटेक के अधिग्रहण के लिए अंतिम बोलियां जमा कराईं। ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) ने एनबीसीसी और सुरक्षा रीयल्टी को अपने पिछली बोलियों में संशोधन के बाद अंतिम पेशकश तीन दिसंबर यानी मंगलवार तक देने को कहा था। हालांकि, दोनों कंपनियों की ओर से की गई अंतिम पेशकश के ब्योरे के बारे में तत्काल जानकारी नहीं मिल पाई है। इससे पहले सूत्रों ने कहा था कि एनबीसीसी लि. ऋणदाताओं को अधिक जमीन के साथ 20,000 फ्लैटों को पूरा करने की समयसीमा को घटाने की भी पेशकश कर सकती है। सूत्रों ने सोमवार को कहा था कि मुंबई की कंपनी सुरक्षा रीयल्टी अपनी बोली को अधिक आकर्षक बना सकती है। कंपनी वित्तीय ऋणदाताओं को अतिरिक्त नकदी और जमीन की पेशकश कर सकती है।
इसके अलावा सुरक्षा रीयल्टी की ओर से घर खरीदारों को आवंटन में देरी के लिए ऊंचे मुआवजे की भी पेशकश की जा सकती है। सूत्रों ने बताया कि सुरक्षा रीयल्टी ऋणदाताओं को किये जाने वाले अग्रिम भुगतान को भी बढ़ा सकती है। संकट में फंसी जयप्रकाश एसोसिएट्स की अनुषंगी जेपी इन्फ्राटेक अगस्त, 2017 में दिवाला प्रक्रिया में चली गई थी। राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने इस बरे में आईडीबीआई बैंक की अगुवाई वाले गठजोड़ की अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार किया था। अनुज जैन को अंतरिम समाधान पेशेवर नियुक्त किया गया था।
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पिछले साल हुई जेपी इन्फ्राटेक की पहले दौर की दिवाला प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा समूह की इकाई लक्षदीप की 7,350 करोड़ रुपये की बोली को ऋणदाताओं ने खारिज कर दिया था। इस साल मई-जून में दूसरे दौर के दौरान ऋणदाताओं ने सुरक्षा रीयल्टी और एनबीसीसी की बोली को खारिज कर दिया था। उसके बाद यह मामला राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) में पहुंचा और फिर उच्चतम न्यायालय गया।
उच्चतम न्यायालय ने छह नवंबर को जेपी इन्फ्राटेक की दिवाला प्रक्रिया को 90 दिन में पूरा करने का निर्देश देते हुए कहा कि सिर्फ एनबीसीसी और सुरक्षा रीयल्टी से ही समाधान योजना मांगी जाए। ऋणदाताओं की समिति में 13 बैंकों और 23,000 फ्लैट खरीदारों के पास मतदान का अधिकार है। फ्लैट खरीदारों के पास 60 प्रतिशत मत हैं। किसी भी बोली को मंजूरी के लिए 66 प्रतिशत मतों की जरूरत होती है। फ्लैट खरीदारों का दावा करीब 13,000 करोड़ रुपये और बैंकों का करीब 10,000 करोड़ रुपये का है।