एक रविवार मैंने पत्नी से कुछ कह दिया जो उन्हें नागवार गुज़रा। फिर एहसास हुआ कि रिटायरमेंट के बाद इनके साथ ही रहना है कोई ऐसी बात नहीं करनी चाहिए कि बची खुची ज़िंदगी मज़ाक बनकर रह जाए। चांद का मुंह सीधा करने के लिए, बिगड़ी हुई बात की मरम्मत करते हुए पत्नी से कहा, मैं तो मज़ाक कर रहा था। कहने लगी, मुझे इस तरह का मज़ाक बिलकुल पसंद नहीं है। आप पहले बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देते हो, बाद में कह देते हो मज़ाक था भई। वह मज़ाक नहीं कर रही थी।
मुझे लगा घोषणा करूं कि अब जो बात करने जा रहा हूं वह मज़ाक होगा। ऐसे कहूं कि चलो डार्लिंग, छत पर चलते हैं मुझे आपसे मज़ाक में कुछ बात करनी है। आपको एक मज़ाक अच्छा लगा तो दूसरा भी करूंगा। यह सुनकर पत्नी ने अपना ख़ास और अचूक डायलाग मार दिया, ‘शांति का दान दो’। दान देना अच्छी बात है लेकिन शांति दान में देना अच्छी बात नहीं है। हमारे नेता तो मांगकर भी शांति नहीं देते। अनेक जगह करोड़ों के नुकसान के बाद भी शांति स्थापित नहीं हो पाई। खैर, हमने शांति का दान दिया ताकि माहौल ठीक रहे।
एक दिन फिर बात बिगड़ गई। उस बार मैंने मज़ाक ही किया था। पत्नी अपनी मनपसंद रील देख रही थी। हमने उन्हें चाय बनाने के लिए कहा जो उन्होंने सुना नहीं। फिर एक बार, थोडा जोर से कहा लेकिन बात नहीं बनी। हमने उनके कान के पास जाकर कहा, कान से देख रही हो क्या। बोली, जब आप देखते हो तो कान से देखते हो क्या, अब कहो, मज़ाक कर रहा था। मैंने कहा, मज़ाक ही था। बोली आप मज़ाक नहीं व्यंग्य कर रहे हो। हमने कहा, पहले से बताकर मज़ाक नहीं किया जाता। ऐसा तो बाद में ही बोला जाता है। आप तो दिन में कई बार बोल देते हो, मज़ाक था भई, वह बोली। इस बार भी वह मज़ाक नहीं कर रही थी।
मुझे संजीदगी से सोचना पडा कि मज़ाक नाप तोल कर ही करना चाहिए। हम नेता तो हैं नहीं कि जिसके साथ मर्ज़ी मज़ाक करते रहो, जब तक चाहे करते रहो, कोई कुछ नहीं कहेगा। पत्नी का मामला है, सीरियस हो गया तो व्यवहार और खाने में मिर्चें बढ़ सकती हैं। आपसी सम्बन्ध मज़ाक बन सकते हैं। चिंतन करने लगा कि क्या सचमुच ऐसा हो सकता है कि मज़ाक करने से पहले बता दो कि मज़ाक करने वाला हूं और दूसरा व्यक्ति भी पहले से तैयार रहे कहे, जी, मैं तैयार हूं कृपया अब आप मेरे साथ मज़ाक करें।
क्या पत्नी से भी कहा जा सकता है, सर, आपकी इजाजत हो तो आपके साथ मज़ाक कर लूं। अगर ऐसे बात करेंगे तो पत्नी कहेगी, आपका दिमाग हिल गया है। सठियाने के बाद भी आपको समझाना पडेगा कि मज़ाक कैसे करते हैं। अगर पत्नी से कहोगे कि मज़ाक कर रही हो क्या, तो कहेगी सीरियसली कह रही हूं, मज़ाक की बात नहीं है।
मज़ाक करने का अधिकार कुछ लोगों के पास है, मज़ाक करवाने, सहने और बनने का कर्तव्य ज़्यादा का है। यह तो वही हुआ कि बाहर जोर से बारिश हो रही हो और पत्नी से कहिए, धूमने चलें, तो कहेगी बाहर बारिश हो रही है, मज़ाक कर रहे हो क्या। तब तो कहना ही पड़ेगा मज़ाक था भई।
- संतोष उत्सुक