By नीरज कुमार दुबे | Sep 06, 2023
पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाले और पाकिस्तान के हमदर्द के रूप में विख्यात नेशनल कांफ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन को सुप्रीम कोर्ट ने भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते और देश की संप्रभुता को स्वीकार करते हुए एक हलफनामा दाखिल करने को कहा था। लेकिन मंगलवार को मोहम्मद अकबर लोन ने उच्चतम न्यायालय में जो हलफनामा दाखिल किया है उसमें लोकसभा सदस्य के तौर पर ली गयी अपनी शपथ को दोहराते हुए कहा है कि वह संविधान का संरक्षण और देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करेंगे। उनके इस शपथ पत्र से नाराज केंद्र ने दावा किया कि यह राष्ट्र का अपमान है। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि मोहम्मद अकबर लोन के हलफनामे में यह पढ़ा जाना चाहिए था...‘‘कि मैं आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधि का समर्थन नहीं करता।’’ तुषार मेहता ने कहा, ‘‘यह (हलफनामा) राष्ट्र का अपमान करने जैसा है।’’
तुषार मेहता ने कहा कि मोहम्मद अकबर लोन के हलफनामे में कोई पश्चाताप नहीं किया गया है और इसमें कहा गया है, ‘‘मैं भारत संघ का एक जिम्मेदार और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक हूं। मैंने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस न्यायालय का रुख करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल किया है।’’ उन्होंने कहा कि हलफनामे में कहा गया है, ‘‘संविधान का संरक्षण करने और भारत की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने की संसद सदस्य के तौर पर ली गयी शपथ को मैं दोहराता हूं।’’ विधि अधिकारी ने हलफनामे पर आपत्ति जताते हुए पीठ से उस बात पर गौर करने को कहा जो इसमें लिखा हुआ नहीं है। वहीं, मोहम्मद अकबर लोन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि सुनवाई के अंतिम चरण में न्यायालय को एक पन्ने का हलफनामा सौंपा गया है। न्यायालय ने कहा कि वह मोहम्मद अकबर लोन के हलफनामे में कही गई बात की पड़ताल करेगा।
हम आपको यह भी बता दें कि मंगलवार को सुनवाई शुरू होने पर तुषार मेहता ने मोहम्मद अकबर लोन के कई कथित बयान पढ़े और दावा किया कि नेशनल कांफ्रेंस नेता ने भारत का उल्लेख किसी विदेशी मुल्क के रूप में किया। इसलिए वह न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि वह लोन को माफी मांगने कहे और वह जन सभाओं में दिये गये अपने बयान वापस लें। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने प्रावधान (अनुच्छेद 370) को निरस्त करने को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से कहा, ‘‘वे कह रहे हैं कि हम अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। क्या अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ याचिका दायर करना अलगाववादी एजेंडा है? मुझे इस पर कड़ी आपत्ति है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत सरकार यह रुख अपना रही है। क्या इसका मतलब यह है कि हम सभी यहां अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं?’’ इस पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने हस्तक्षेप किया और उन्हें शांत करने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है। कोई भी ऐसा नहीं कह सकता कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करना अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘संविधान के दायरे के भीतर नागरिकों की शिकायतों को दूर करने के लिए अदालतों तक पहुंच अपने आप में एक संवैधानिक अधिकार है और उस अधिकार का इस्तेमाल करने वाले किसी भी व्यक्ति को इस आधार पर मना नहीं किया जा सकता कि वह इस एजेंडे या उस एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।’’
हम आपको यह भी बता दें कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा 16 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद यह घटनाक्रम हुआ। दूसरी ओर, भाजपा महासचिव और जम्मू-कश्मीर के पार्टी प्रभारी तरूण चुघ ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर को दशकों तक लूटने वाले कुछ परिवारों की मानसिकता आज भी नहीं बदली है।