चुनाव की दलदल शुरू हो जाए तो पता चलता है कि दाग माननीयों का आभूषण होते हैं। माननीय वही हो सकते हैं जिन पर दाग होते हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि उनके लिए फैक्ट्री का काम करती है जहां नए आभूषण बनते रहते हैं और उनका खजाना बढ़ता जाता है। ताज़ा विश्लेषण के अनुसार समझदार, जनता के नाम पर बने दल के सौ प्रतिशत प्रत्याशी रंग बिरंगे दागी है। उनके दागों में हत्या और दुष्कर्म जैसे नामवर काम शामिल हैं। भड़काऊ भाषण तो मानो कहीं भी लगने वाला छोटा धब्बा है।
माननीयों को दागी कह देना आसान होता है लेकिन उन्हें कानूनन दागी घोषित करवाना, बहुत ज़्यादा मुश्किल, समयखपाऊ अनेक बार तो असंभव होता है। इतिहासजी में दर्ज है कि हमारे माननीयों ने जब भी दाग लगाऊ भाषा का प्रयोग किया, उनके चहेतों ने अविलंब उनकी भाषा को हाथों हाथ लिया। गहरे रंग के दागों वाली इस भाषा के चाहने वाले बढ़ते जा रहे हैं तभी तो माननीय अपनी कुर्सी का कद बढ़ता देख रीझकर कहते हैं, ‘हम कोई छोटे मोटे आदमी नहीं हैं’।
हर नया दाग उन्हें कुछ भी करवा सकने की प्रेरणा देता है। इंसानियत के ये रहनुमा, वक़्त को जेब में लेकर चलते हैं। आजीवन कारावास के मुकद्दमे परेशान, बीमार पड़े रहते हैं और माननीय, शान से इनका महंगा इलाज करते रहते हैं। पुराने दाग तो इनके ब्यूटी स्पॉट होते जाते हैं। इनके दागी प्रयासों के सामने तो बेहद संजीदा आरोप भी हिम्मत हार जाते हैं। आरोप पत्रों को यह अदालत के अहाते में दाखिला भी लेने नहीं देते। उनका दाग बनना तो दूर की कौड़ी हो जाता है। ज्यादा भद्दे दागों को सुंदर माने जाने के सफल प्रयास किए जाते हैं। माननीयों के दाग धोने और अदृश्य करने के लिए बेहतर, महंगा, स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचाने वाला सुकर्म किया जाता है और दाग पवित्र होते जाते हैं। उन्हें जनसेवा से कहां फुर्सत मिलती है तभी मानते हैं कि ऐसे दाग तो आभूषण होते हैं।
दाग लगने के बाद भी माननीय बने रहना हर किसी के भाग्य में कहां होता है। माननीय बनना वास्तव में आसान काम नहीं होता। एक बार माननीय बन जाने के बाद वे सब कुछ अपने संज्ञान में समझकर, किसी को भी न बख्शते हुए, आवश्यक कार्रवाई करते हुए सख्त सज़ा दिलवाने के आदेश देते हैं। होनी धन्य हो उठती है। आम आदमी की पसंदीदा टीशर्ट पर, दाग लगते लगते रह जाए तो वह परेशान हो ज़ोर से गाने लगता है, कहीं दाग न लग जाए, कहीं और दाग न लग जाए लेकिन माननीयों के दाग अच्छे किस्म के दाग होते हैं तभी तो ज़्यादा दाग वाले माननीय समाज, धर्म और राजनीति में ऊंचा ओहदा पाते हैं और मन ही मन गुनगुनाते रहते हैं, एक दाग बढ़िया सा और लग जाए तो अच्छा।
- संतोष उत्सुक