By नीरज कुमार दुबे | Jan 20, 2022
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 150 साल पुरानी दरबार मूव की प्रथा खत्म कर दी गयी है जिससे प्रशासन को सालाना करोड़ों रुपए की बचत हो रही है लेकिन इस फैसले से जम्मू के व्यापारी नाराज हैं और उन्होंने उपराज्यपाल प्रशासन से पुनर्विचार करने की अपील की है। उनका कहना है कि सर्दियों में जब श्रीनगर से सारा प्रशासनिक अमला जम्मू आता था तो सरकारी कर्मचारी जम्मू के बाजारों से खरीददारी करते थे लेकिन अब चूँकि दरबार मूव की प्रथा खत्म कर दी गयी है तो उन्हें नुकसान झेलना पड़ रहा है। व्यापारियों का कहना है कि पहले ही लॉकडाउन से काफी नुकसान हुआ और अब दरबार मूव बंद होना भी नुकसान ही दे रहा है। प्रभासाक्षी संवाददाता ने जम्मू में व्यापारियों से बात कर उनकी प्रतिक्रिया जानी।
कश्मीर का मौसम
दूसरी ओर, कश्मीर के मौसम की बात करें तो घाटी के ज्यादातर हिस्सों में न्यूनतम तापमान में मामूली गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, पर्यटन स्थल गुलमर्ग और पहलगाम में बर्फबारी हुई है। अधिकारियों ने बताया कि जम्मू-कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में न्यूनतम तापमान शून्य से 2.2 डिग्री सेल्सियस नीचे रिकॉर्ड किया गया जो पिछली रात की तुलना में आधा डिग्री कम है। उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल गुलमर्ग में न्यूनतम तापमान शून्य से पांच डिग्री सेल्सियस नीचे दर्ज किया गया। वहीं, दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम में न्यूनतम तापमान शून्य से 0.6 डिग्री सेल्सियस कम दर्ज किया गया।
अधिकारियों ने कहा कि काजीगुंड में न्यूनतम तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि दक्षिण कश्मीर के कोकरनाग में न्यूनतम तापमान शून्य से 0.1 डिग्री सेल्सियस नीचे दर्ज किया गया। उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में न्यूनतम तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। मौसम विभाग ने कहा है कि जम्मू कश्मीर में आंशिक रूप से बादल छाए रहेंगे और 22-23 जनवरी के दौरान हल्की बारिश या बर्फबारी की संभावना है। विभाग ने कहा कि इसके बाद महीने के अंत तक मौसम के मुख्य रूप से शुष्क रहने की संभावना है और जनवरी के आखिर तक ज्यादा बारिश या बर्फबारी का कोई पूर्वानुमान नहीं है। कश्मीर में फिलहाल 40 दिन का ‘चिल्लई-कलां’ चल रहा है जो पिछले महीने 21 दिसंबर को शुरू हुआ था। ‘चिल्लई-कलां’ के दौरान क्षेत्र में अत्याधिक ठंड पड़ती है और पारा काफी लुढ़कता है तथा डल झील समेत कई जलाशय जम जाते हैं। घाटी के विभिन्न इलाकों में पानी की पाइपलाइन में भी पानी जम जाता है। इस अवधि के दौरान बर्फबारी की संभावना सबसे अधिक रहती है और अधिकतर क्षेत्रों में, खासकर ऊंचाई वाले इलाकों में, भारी से बहुत भारी बर्फबारी होती है। ‘चिल्लई-कलां’ 31 जनवरी को खत्म होगा जिसके बाद कश्मीर में 20 दिन का ‘चिल्लई-खुर्द’ शुरू होगा। इस दौरान ठंड थोड़ी कम होती है और फिर 10 दिन का ‘चिल्लई-बच्चा’ चलेगा तब सर्दी की तीव्रता और कम हो जाती है।
नायक की प्रतिमा का अनावरण
अब बात करते हैं करगिल युद्ध के नायक कैप्टन विक्रम बत्रा की। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की प्रतिमा का अनावरण किया गया। सेना के अधिकारियों ने कहा कि कैप्टन बत्रा के गृहनगर में उनकी प्रतिमा का अनावरण करने से आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिलेगी। परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बत्रा की प्रतिमा का अनावरण उनके पिता जी.एल. बत्रा और मां कमल कांता बत्रा ने पालमपुर सैन्य केंद्र में किया। इस दौरान करगिल युद्ध के एक और नायक तथा उत्तरी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल जोशी करगिल युद्ध के समय 13 जेएके राइफल्स के कमांडिंग अधिकारी थे। समारोह में मेजर जनरल एम.पी. सिंह और कैप्टन बत्रा के स्कूल शिक्षक आरएस गुलेरिया, सुमन मैनी तथा नीलम वत्स एवं उनके बचपन के कुछ दोस्त भी उपस्थित थे।
कश्मीरी पंडितों के पलायन की 32वींबरसी
दूसरी ओर, नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) ने कहा कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन को कश्मीरी पंडितों की वापसी और उनके पुनर्वास के लिए स्पष्ट नीति बनानी चाहिए तथा इस नीति के क्रियान्वयन के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। कश्मीरी पंडितों ने घाटी से उनके पलायन की बुधवार को 32वीं बरसी मनाई। नेकां ने एक ट्वीट किया, ‘‘कश्मीर पंडितों को अपने जन्मस्थलों और कश्मीर में अपने घरों से दूर रहते हुए तीन दशक से अधिक समय बीत चुका है। सरकार को उनकी वापसी और पुनर्वास की प्रक्रिया को तेज करने के लिए स्पष्ट नीति बनानी होगी और इसके क्रियान्वयन के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।’’ पार्टी के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि कश्मीरी पंडितों की वापसी से पहले सुरक्षा परिदृश्य में सुधार की आवश्यकता है। उमर ने कहा कि कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के आसार फिलहाल नजर नहीं आ रहे। उन्होंने कहा, ‘‘एक स्पष्ट नीति के अलावा उनकी वापसी से पहले सुरक्षा परिदृश्य में अत्यधिक सुधार करना आवश्यक होगा। हम उम्मीद करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि वह दिन (कश्मीरी पंडितों की वापसी का दिन) अधिक दूर नहीं हो।''