By टीम प्रभासाक्षी | Feb 08, 2023
नज्मों, गज़लों और नगमों के बादशाह जगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी 1941 में गंगानगर राजस्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार अमर सिंह था जो एक सरकारी कर्मचारी थे वे एक नामधारी सिख थे। जगजीत सिंह की माता सरदारनी बच्चन कौर धार्मिक कार्यों में लगी रहती थी। बचपन में उन्हें जगमोहन नाम दिया गया था लेकिन उनके पिता ने अपने गुरु के कहने पर उनका नाम जगजीत कर दिया था।
जगजीत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गंगानगर के खालसा हाई स्कूल से हुई। उन्होंने जालंधर के डीएवी कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन पूरी की तो हरियाणा के कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से हिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी की। बचपन से ही उनकी रूचि संगीत में रही साथ ही डीएवी कॉलेज में एक प्रोफेसर ने उन्हें संगीत के प्रति काफी प्रोत्साहित किया था। यहाँ तक कि कई बार गुरुद्वारों में भी जगजीत सिंह भजन गाते थे।
लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वे भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाएं। पर जब उन्होंने देखा कि उनका बेटा संगीत में ही आगे बढ़ना चाहता है तो उन्होंने जगजीत सिंह को संगीत की शिक्षा दिलवानी शुरू कर दी। दो साल तक पंडित छगनलाल शर्मा से संगीत सीखने के बाद जगजीत सिंह ने जमाल खान से संगीत की ख्याल, ठुमरी और द्रुपद जैसी विधाएं भी सीखीं क्योंकि उनकी शास्त्रीय संगीत में खासी रूचि थी। ना केवल उन्होंने ये विधाएं सीखीं बल्कि इन सभी के विशेषज्ञ भी बने। उनका बचपन बहुत ही अभावों में बीता। उनके पिता बहुत ही सादगी पसंद व्यक्ति थे और यही सादगी जगजीत सिंह में भी झलकती थी।
1961 में जगजीत सिंह अपने सपनों को साकार करने मुम्बई गए लेकिन किसी प्रकार की सफलता ना मिलने के कारण और पैसे ख़त्म हो जाने के कारण वे वापिस लौट गए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और एक बार फिर 1965 में मुंबई आ गए मन में यह ख्वाहिश लेकर किया तो म्यूजिक कंपोजर बनेंगे या फिर सिंगर। मुम्बई में आने के बाद वे पेइंग गेस्ट के रूप में रहे और यहाँ पर एड फिल्मों में जिंगल गा कर और शादी एवं अन्य पार्टियों में गाने गाकर किसी तरह अपना गुजर बसर करने लगे और उसी दौरान उनकी मुलाकात हुई चित्रा जी से जो पहले से शादीशुदा थीं और खुद भी एक सिंगर थीं लेकिन उनके पति किसी और स्त्री के साथ घर बसाना चाहते थे इसलिए उन्होंने चित्रा जी से तलाक ले लिया था। जगजीत सिंह को चित्रा जी पहले से ही पसंद थीं लेकिन 1967 में मिलने के दो साल बाद ही जगजीत सिंह चित्रा जी से 1969 में शादी कर पाए।
ये दोनों मिल कर ग़ज़ल गाया करते थे। अभी तक उन्हें कोई बड़ी सफलता नहीं मिल पाई थी लेकिन उनकी किस्मत पलटी जब उन्हें 1975 में एचएमवी कंपनी के एल्बम द अनफोरगेटेब्ल में गाने गाने का मौका मिला। ये एल्बम बहुत ही सफल रही जिस कारण वे मुंबई में अपना खुद का फ्लैट खरीद पाये और इस सफलता के बाद उन्हें कभी भी पीछे मुड़कर देखने कि जरूरत भी नहीं पड़ी। इस एल्बम में फोटो खिंचवाते समय उन्होंने अपनी पगड़ी और दाढ़ी भी कटवा दिए थे और एक नया रूप धारण कर लिया था।
जब जगजीत सिंह ने ग़ज़ल गायकी की शुरुआत करनी चाही तो पहले से ही बहुत से बड़े नाम जैसे बेगम अख्तर, नूरजहां, मेहंदी हसन और तलत महमूद इस फील्ड में मौजूद थे। जगजीत सिंह ने कुछ नया करने के प्रयास में गज़ल सुनने और पढ़ने वालों के लिए उसे सरल बनाने की कोशिश की लेकिन कभी भी गज़ल के फॉर्मेट को नहीं छेड़ा। जगजीत सिंह ने 70 के दशक में संगीत की फीकी पड़ती विधा ग़ज़ल में नई जान फूंकी। धीरे-धीरे उनकी गज़लें लोगों को पसंद आने लगीं और जल्दी ही उन्हें गज़ल गायकी का बादशाह कहा जाने लगा। जब उन्होंने फिल्मों के लिए गाना शुरू किया तो ग़ज़ल गायकी को एक नया आयाम मिला। उन्होंने फिल्मों में गाना शुरू किया फिर इसके बाद उन्होंने अर्थ फिल्म में भी गज़ल गाई जो बहुत ही सफल रही। उन्होंने टीवी पर आने वाले एक सीरियल जो उनके अजीज़ दोस्त गुलज़ार ने बनाया था, उसके लिए मिर्ज़ा ग़ालिब की गज़लें अपनी पत्नी चित्रा के साथ मिलकर गाईं जिससे उन्होंने खूब पॉपुलैरिटी बटोरी। उनकी जोड़ी एक से बढ़कर एक शायरों के साथ बनी चाहे फिर वो जावेद अख्तर हों, गुलज़ार हों या फिर निदा फ़ाज़ली। इन सभी की ग़ज़लों को उन्होंने अपनी आवाज़ दी।
जगजीत सिंह ने कुछ ही फिल्मों में गीत गाए और उनमें से अधिकतर सफल भी रहे। बाद में भी कुछ फिल्मों के लिए गीत गाए लेकिन उन्हें पहले जैसी सफलता नहीं मिल पाई फिर उन्होंने प्राइवेट एल्बम का रुख कर लिया जिसमें उन्हें अपार सफलता मिली। जिससे केवल भारत ही नहीं विदेशों में भी जगजीत सिंह के चाहने वालों की संख्या बढ़ी और वहाँ उनके शो और स्टेज परफॉरमेंस काफी पसंद किए जाने लगे।
केवल हिंदी ही नहीं जगजीत सिंह उर्दू और पंजाबी में भी लिखते और गाते थे। 1975 के बाद उन्होंने कई एल्बम और कॉन्सर्ट किए। 1987 में बियॉन्ड टाइम के नाम से बनी डिजिटल सीडी के लिए गाने वाले वे पहले भारतीय गायक और संगीतकार बने। उन्होंने खुद से भक्ति एल्बम भी बनाये और भक्ति गीत भी गाये इसमें भी उन्हें अपार सफलता मिली और इन्हें लोगों ने काफी पसंद भी किया। कुछ प्रमुख नाम हैं माँ, हरे कृष्णा, हे राम और मन जीते जगजीत आदि। ग़ज़ल गायकी में आधुनिक वाद्य यंत्रों के प्रयोग का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। कई नए गायकों जैसे कि तलत अज़ीज़ और विनोद सहगल का मार्गदर्शन भी उन्होंने किया।
उनकी ग़ज़लों से उर्दू कम समझने वाले भी शेरों शायरी करने लगे और समझने लगे। उन्होंने मीर, ग़ालिब और मज़ाज़ जैसे फनकारों को भी जनता के बीच आम बनाया। संगीत तो मानो जगजीत सिंह की आत्मा थी। उनकी गज़लें सुनने वालों को वास्तविकता से रूबरू करवाती थीं। उर्दू ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुँचाने का श्रेय भी जगजीत सिंह को जाता है। शास्त्रीय संगीत के अलावा आम आदमी की रोजमर्रा ज़िन्दगी के शब्दों को भी उन्होंने सुर दिए जैसे कि “माँ सुनाओ मुझे वो कहानी”। उनके गीतों और गज़लों को सुन कर उनमें डूब जाने का मन करता है। उनकी आवाज़ में एक प्रकार का खिंचाव और जादू था जो लोगों को उनकी तरफ आकर्षित करता था। उनकी आवाज़ में तनी गहराइयां और मधुरता है जिसे सुन के ऐसे लगता है कि मानो गाने और सुनने वाला दोनों के दिल एक हो गाये हों। अपने नाम को सार्थक करते हुए वे इस जग को अपनी ग़ज़लों नज्मों और नग्मों के बूते पर जीतते गए।
1990 में उनके एकलौते 20 साल के बेटे की मृत्यु एक सड़क हादसे में हो गई थी जिसके बाद उनकी पत्नी और गायिका चित्रा सिंह ने गाना गाना छोड़ दिया लेकिन जगजीत सिंह डटे रहे और अपने दर्द को अपने गानों में उतारते रहे। टूटे दिल के साथ दुनिया का सामना करते हुए अपनी गज़लों और नज्मों से अपना दिल बहलाते रहे। 2003 में भारत सरकार ने उन्हें पदम् भूषण से सम्मानित किया। 10 अक्टूबर 2011 ग़ज़ल गायकी ने अपना एक बेहतरीन सितारा खो दिया जब ब्रेन हैमरेज के कारण वे हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया को छोड़कर कर चले गए। लेकिन अपनी बेहतरीन ग़ज़लों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा।
जिन फिल्मों में उन्होंने गाने गाए उनके नाम इस प्रकार हैं- साथ साथ, अर्थ, प्रेमगीत, सरफरोश, जॉगर्स पार्क और तुम बिन, वीर ज़ारा और ट्रैफिक सिग्नल। उनकी कुछ प्रमुख प्राइवेट एल्बम के नाम इस प्रकार हैं- होप, इन सर्च, इनसाइट, मिराज, विज़न, कहकशां, लव इज ब्लाइंड, चिराग, आईना आदि।