By अनन्या मिश्रा | Nov 23, 2023
देश के महान वैज्ञानिकों में जगदीश चंद्र बोस का नाम शामिल हैं। बोस ना सिर्फ भौतिकी बल्कि जीवविज्ञान में भी पारंगत थे। उन्होंने बताया कि पौधों में जान होती है, उन्हें भी दर्द होता है और पौधों पर भी रोशनी व तापमान का असर होता है। आज ही के दिन यानी की 23 नवंबर को जगदीश चंद्र बोस की मृत्यु हो गई थी। बोस को 'फादर और रेडियो साइंस' के नाम से भी जाना जाता है। बोस ने कॉलेज के एक छोटे से कमरे में रेडियों की तरंगों को खोजा था। जहां पर ना तो कोई उपकरण थे और ना ही प्रयोगशाला था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर जगदीश चंद्र बोस के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
पूर्वी बंगाल के ररौली गांव में 30 नवंबर 1858 को जगदीश चंद्र बोस का जन्म हुआ। उस दौरान देश में अंग्रेजों का शासन था। वहीं उनके पिता भगवान चन्द्र बसु ब्रह्म समाज के नेता और ब्रिटिश शासन में डिप्टी मैजिस्ट्रेट के पद पर थे। बोस ने शुरूआती पढ़ाई गांव से पूरी की। फिर आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया और भौतिकी विज्ञान में पढ़ाई की। इसके बाद वह हायर स्टडी के लिए कैब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए, जहां से साल 1884 में ग्रेजुएशऩ पूरा किया और भारत वापस लौटे।
अंग्रेजों को पढ़ाया पाठ
भारत आने के बाद जगदीश चंद्र बोस प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिकी के अध्यापक बने। यह उस दौरान की बात है कि ब्रिटिश हुकूमत भारतीयों को इस पद के लिए काबिल नहीं मानती थी। जिसके चलते यूरोपीय प्रोफेसर्स की तुलना में भारतीय प्रोफेसर्स को दो तिहाई वेतन दिया जाता था। लेकिन जगदीश चंद्र बोश अंग्रेजों के इस भेदभाव से परेशान थे, वहीं शिक्षण कार्य के दौरान उन पर भी नस्लीय टिप्पणियां की गईं। जिसके चलते बोस ने साल भर तक सैलरी लेने से इंकार कर दिया। जिसके चलते बोस को आर्थिक तंगी का सामना भी करना पड़ा।
वेतन न लेने और आर्थिक तंगी के चलते बोस ने कलकत्ता का मकान छोड़ शहर से दूर जाने का फैसला किया। लेकिन वह वेतन न लेने की बात पर अड़े रहे। जगदीश चंद्र बोस की इस जिद के आगे अंग्रेजों और कॉलेज प्रशासन को उनके सामने झुकना पड़ा। जिसके बाद यूरोपीय प्रोफेसर्स और भारतीय प्रोफेसर्स को समान वेतन दिए जाने की बात की गई। बता दें कि बोस ने फिजिक्स और फिजियोलॉजी दोनों में कई उपलब्धियां अपने नाम की।
जानिए क्यों नहीं मिला नोबेल पुरस्कार
बोस ने प्रयोगशाला और उपकरणों के बिना एक छोटे से कमरे में तरंगों की विशेषताओं पर शोध करना शुरू किया। हांलाकि पहले उनकी इस खोज को गंभीरता से नहीं लिया गया और उन्होंने भी इस खोज का पेटेंट नहीं कराया। वहीं बोस के खोज करने के करीब 2 साल बाद इटली के वैज्ञानिक मारकोनी ने इसी विषय पर खोज किया। मारकोनी ने इस खोज का पेटेंट भी कराया। जिसके कारण साल 1909 में मारकोनी को उनकी खोज के लिए भोतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला।
जब बोस से सवाल किया गया था कि उन्होंने अपनी खोज का पेटेंट क्यों नहीं करवाया, तो इसके जवाब में उन्होंने बताया था कि मानव भलाई के लिए यह खोज की थी। जगदीश चंद्र बोश का मानना था कि अविष्कारों का कभी भी व्यक्तिगत लाभ नहीं उठाना चाहिए। इसलिए उन्होंने अपनी खोज का पेटेंट अपने नाम नहीं करवाने का फैसला किया था। उन्होंने अपने प्रयोग के जरिए बताया था कि पौधों में भी जान होती है और उनको भी हमारी तरह दर्द महसूस होता है। जगदीश चंद्र बोस को साल 1917 में विज्ञान के क्षेत्र में कई दिलचस्प खोज करने के लिए नाइट की उपाधि से सम्मानित किया गया।
मृत्यु
बता दें कि जगदीशचंद्र बोस का विज्ञान के क्षेत्र में एक और बहुत बड़ा योगदान था, जिसको आज भी नजरअंदाज किया जाता है। बोस को विज्ञान का साहित्य लिखना पसंद था। जिस कारण उनको विज्ञान साहित्य का जनक भी कहा जाता है। 23 नवंबर 1973 को 79 साल की आयु में महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।