झारखंड की राजनीति में आये इस तूफान के असल कारणों को समझना बेहद जरूरी है

By चेतनादित्य आलोक | Feb 01, 2024

हाल ही में पड़ोसी राज्य बिहार में बेहद नाटकीय ढंग से तेजस्वी यादव के उपमुख्यमंत्रित्व वाली नीतीश कुमार नीत सरकार गिरी और शाम तक पुनः एक बार भाजपा के सहयोग से नीतीश सरकार बन भी गई। अब बारी झारखंड की थी, जाहिर है कि झारखंड भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहता था। आखिर चुनावी साल जो है, ऐसे समय में कोई भी दल अथवा राज्य नाटकीयता, पाला बदल जैसे राजनीतिक खेलों से परहेज कैसे कर सकता है। तो, अब झारखंड में राजनीतिक खेल जारी है। झारखंड के हालिया घटनाक्रमों पर नजर डालें तो यह आसानी से समझ में आ जाएगा कि राजनीतिक खेल यदि कोई खेल−प्रतिस्पर्द्धा होती तो झारखंड अपने मातृ राज्य बिहार को पराजित कर गोल्ड मेडल अर्जित कर सकता था, लेकिन कोई बात नहीं, राजनीतिक खेल करने वाले दलों और नेताओं को बहुत अच्छी तरह मालूम होता है कि इस खेल में 'गोल्ड मेडल' भले ही नहीं मिलते हों, परंतु उन्हें 'वोट मेडल' तो मिल ही जाएगा, जिसकी अहमियत उनके लिए 'गोल्ड मेडल' से भी ज्यादा होती है। बहरहाल, झारखंड राज्य में जमीन खरीद में गड़बड़ी, अवैध खनन और मनी लॉन्डि्रंग के कथित पुराने मामलों की जांच कर रही प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पूछताछ करने के लिए समय मांगा तो हेमंत कथित रूप से फरार हो गए। शायद पूछताछ करने के बाद ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने का अनुमान उन्हें था।

 

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देखा जाए तो हेमंत सोरेन के परिवार में गिरफ्तारी के भय से फरारी का इतिहास पुराना रहा है। इससे पहले मई 2004 में कोयला मंत्री के रूप में केंद्रीय कैबिनेट में शामिल हुए उनके पिता शिबू सोरेन को भी तब भूमिगत होना पड़ा था, जब चिरूडीह नरसंहार के 30 साल पुराने मामले में उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी। उनके संबंध में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिलने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उनसे इस्तीफा मांग लिया था। इस प्रकार मंत्री बनने के मात्र ढाई महीने बाद ही शिबू सोरेन ने फैक्स के माध्यम से अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री को भेज दिया था। वहीं, नवंबर 2004 में जमानत मिलने के बाद उन्हें फिर से केंद्रीय कैबिनेट में शामिल कर लिया गया। केंद्रीय कोयला मंत्रालय में तब सचिव रहे प्रकाश चंद्र पारख ने अपनी पुस्तक 'शिखर तक संघर्ष' में शिबू सोरेन को व्यक्तिगत एजेंडे वाला मंत्री बताते हुए लिखा है कि कई मुद्दों पर शिबू सोरेन उनसे सहमत नहीं थे और उनके स्थानांतरण के लिए प्रधानमंत्री को उन्होंने पत्र भी लिखा था। नियुक्ति−भर्तियों से लेकर कोयला आवंटन तक के मामलों में शिबू सोरेन और पारख कभी एकमत नहीं होते थे। बताना जरूरी है कि यूपीए सरकार के समय हुए कोयला घोटाला के सनसनीखेज मामले को श्री पारख ने ही उजागर किया था, जिसके बाद वे 'व्हिस्लब्लोवर' के रूप में विख्यात हुए थे।


चिरूडीह मामला, जिसमें गिरफ्तारी के भय से शिबू सोरेन फरार हुए थे, 1975 में घटित हुआ भीषण नरसंहार का मामला था। उस दौर में शिबू सोरेन जवान और तीखे तेवर वाले राजनेता थे। वे संथाल परगना के विभिन्न क्षेत्रों में महाजनों के खिलाफ उग्र आंदोलन चला रहे थे। उस समय संथाल परगना का चिरूडीह इलाका भागलपुर कमिश्नरेट से जुड़ा हुआ था, किंतु जब 30 वर्षों के बाद यह मामला खुला, तब चिरूडीह जामताड़ा जिले का हिस्सा बन चुका था। खबरों के अनुसार उस चिरूडीह नरसंहार में कुल 13 लोग मारे गए थे। मृतकों में 09 मुस्लिम भी थे। बताया जाता है शिबू सोरेन के समर्थकों ने 23 जनवरी 1975 को चिरूडीह में तथाकथित 'दिकू' लोगों के साथ हिंसा की थी। झारखंड में 'दिकू' उन लोगों को कहा जाता रहा है, जिन्हें शिबू सोरेन और उनके समर्थक बाहरी मानते रहे हैं और प्रायः पलायन करने के लिए मजबूर करते रहे हैं। हालांकि चिरूडीह नरसंहार मामले की शुरुआती पुलिस रिपोर्ट में शिबू सोरेन का नाम नहीं था, लेकिन पुलिस द्वारा कोर्ट में प्रस्तुत की गई चार्जशीट में उनका नाम भी शामिल था। बता दें कि 2004 में जब यह मामला सामने आया, तब तक 69 में से 25 आरोपित एवं 40 में से 20 गवाहों की मृत्यु हो चुकी थी। 2002 में झारखंड हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वीके गुप्ता ने इस मामले में फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का आदेश दिया था। जून 2004 में शिबू सोरेन को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस अधिकारियों को दिल्ली भेजा गया। उन दिनों संसद का सत्र चलने के कारण गिरफ्तारी से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति आवश्यक थी और जब तक अनुमति मिलती, तब तक शिबू सोरेन भूमिगत हो गए थे।


बहरहाल, झारखंड में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदले और हेमंत सोरेन दिल्ली से एक दिन की कथित गुमशुदगी के बाद रांची में प्रकट हुए। 31 जनवरी को इडी ने उनसे पूछताछ करने के बाद हिरासत में ले लिया था। फिलहाल कोर्ट द्वारा उन्हें एक दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है, जबकि उन्हें इडी की कस्टडी में भेजा जाए या नहीं, इसके लिए शुक्रवार को फिर कोर्ट में बहस होनी है। वैसे गिरफ्तारी से पूर्व हेमंत सोरेन ने झामुमो एवं आइएनडीआइए गठबंधन के विधायकों के साथ बैठक कर अपनी गिरफ्तारी की स्थिति में पत्नी कल्पना सोरेन को सीएम बनाने पर साथी दलों तथा झामुमो विधायकों को सहमत करने की भरपूर कोशिश की, लेकिन उनकी भाभी सीता सोरेन द्वारा इसका विरोध किए जाने के बाद उन्हें अपना पैंतरा बदलना पड़ा। सूत्र तो यह भी बता रहे हैं कि कुछ झामुमो विधायकों ने भी कल्पना के नाम पर आपत्ति जाहिर की थी। वैसे लगभग चार से छह झामुमो विधायक गुरुवार दोपहर तक पार्टी के विधायक दल के नवनिर्वाचित नेता चंपई सोरेन की पहुंच से बाहर बताए जा रहे हैं। ये वही विधायक हैं जो हेमंत की बैठक से भी नदारद थे। दूसरी ओर भाजपा के झारखंड प्रभारी इस राजनीतिक नाटक के शुरू होते ही रांची पहुंच गए और सूत्रों के अनुसार यदि आइएनडीआइए गठबंधन की सरकार किसी कारण से शीघ्र नहीं बन पाती है तो सत्ताधारी दलों, विशेषकर झामुमो और कांग्रेस के विधायकों के छटक कर भाजपा के साथ जाने की संभावना है।

 

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वैसे संभावना तो इस बात की भी जताई जा रही है कि जो चार से छह झामुमो विधायक अब तक लापता हैं, वे भाजपा नेताओं के संपर्क में हो सकते हैं। विधायकों में संभावित टूट−फूट से बचने के लिए आइएनडीआइए गठबंधन के विधायकों को रांची के सर्किट हाउस के कमरे में बंद कर रखा गया, जिन्हें चार्टर्ड जहाज के द्वारा बंगलुरू भेजा जाना था। वहीं झामुमो की ओर से अब राज्य के भीतर ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है, जिसमें राज्य की जनता के बीच वह अपने को निर्दोष दिखा सके और भाजपा को सरकार गिराने की कोशिश में संलिप्त बताकर उसे लोकतंत्र का हत्यारा साबित कर सके। यही कारण है कि जब इडी द्वारा मुख्यमंत्री आवास पर हेमंत सोरेन से पूछताछ की जा रही थी, तब राज्य के विभिन्न इलाकों में झामुमों कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने पारंपरिक हथियारों से लैस होकर उग्र आंदोलन का रुख अख्तियार कर लिया था। बाद में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद एक दिन के बंद की घोषणा करना भी इसी योजना का हिस्सा बताया जा रहा है। इस प्रकार झामुमो की ओर से जनता के बीच यह संदेश देने का भरपूर प्रयास किया कि हेमंत सोरेन बिल्कुल दूध के धुले हैं, जबकि केंद्र की भाजपा सरकार अपने विरोधियों को इडी और सीबीआई के माध्यम से मैनेज करने में लगी हुई है।


−चेतनादित्य आलोक

(वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार एवं राजनीतिक विश्लेषक, रांची)


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