सीएए विरोधी प्रदर्शनों में दंगाइयों का सम्मान करना क्या जायज है ?

By अजय कुमार | Mar 18, 2020

'खाली दिमाग शैतान का घर' यह कहावत लखनऊ के घंटाघर पार्क में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में प्रदर्शन कर रही मुट्ठी भर लोगों पर बिल्कुल फिट बैठती है। एक तरफ लखनऊ की करीब 50-55 लाख की आबादी जहां अपने काम−धंधे में लगी है, वहीं 100−150 की संख्या में कुछ महिलाएं सीएए के नाम पर लखनऊ के घंटाघर में ड्रामेबाजी कर रही हैं। इन महिलाएं को सीएए के बारे में उतना ही पता है जितना इनको उनके 'आकाओं' के द्वारा समझाया और बताया गया है। इन महिलाओं को बरगलाने वाले कई लोग पर्दे के पीछे हैं तो कुछ सामने आकर धरना−प्रदर्शन का चेहरा बनी हुई हैं। घंटाघर पर सीएए विरोध के नेतृत्व का जिम्मा उन नेताओं ने संभाल रखा है जिनकी पहचान ही मोदी विरोध के कारण बनी हुई है। इसमें समाजवादी पार्टी की नेता पूजा शुक्ला या फिर तमाम मंचों पर मोदी विरोध की चिंगारी सुलगाने वाले कवि और शायर मुनव्वर राणा की बेटियां जैसे लोग शामिल हैं। इन्हें न तो इस बात की चिंता है कि देश किस संकट से गुजर रहा है, न इस बात की फिक्र है कि उनके 'सियासी हठ' के चलते क्षेत्र की जनता को परेशानी हो रही है। यह बात संविधान बचाने की करती हैं लेकिन स्वयं संविधान के लिए खतरा बनी हुई हैं। देश तोड़ने की बात करने वालों और दंगे के आरोपियों का यहां सम्मान होता है। आज फिर इन महिलाओं ने दंगे के आरोपी का सम्मान करके ऐसा ही किया। यह आरोपी तीन दिन पूर्व 14 मार्च को जेल से सशर्त रिहा हुए थे। हिंसा के दो आरोपियों को सम्मानित किया गया तो आरोपियों ने पुलिस व सरकार के खिलाफ आपत्तिजनक नारे लगाए। इस दौरान हंगामा बढ़ने पर पुलिस ने धारा 144 का हवाला देकर लोगों को शांत करने की कोशिश की तो प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस से धक्का−मुक्की की गई।

 

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गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ 19 दिसंबर को हुई आगजनी, तोड़फोड़ और पथराव के मामले में बीते शुक्रवार को 27 उपद्रवियों के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट की कार्रवाई की गई थी। पुलिस ने उपद्रव के मामले में 30 लोगों को गिरफ्तार किया था, जिसमें कुछ लोग अभी जेल में हैं तो कुछ जमानत पर बाहर हैं। बहरहाल, घंटाघर में उपद्रव कर रहे लोगों को जब ऐसा करने से रोका गया तो इन लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया। हंगामे के दौरान हालात इतने खराब हो गए कि ठाकुरगंज इंस्पेक्टर को एफआईआर दर्ज करानी पड़ गई, आरोपियों में मुनव्वर राणा की बेटी सुमैया राणा समेत 11 महिलाएं, 11 पुरुष और 150 अज्ञात लोग शामिल थे। पुलिस ने दो आरोपितों को भी गिरफ्तार किया है। वहीं, अन्य की तलाश कर रही है।


इंस्पेक्टर ठाकुरगंज के मुताबिक घंटाघर पर प्रदर्शनकारियों ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। सरकार के खिलाफ नारेबाजी की जा रही है। आरोप है कि शनिवार को लखनऊ हिंसा का आरोपित प्रेम नगर बरौरा निवसी अब्दुल हफीज जेल से सशर्त छूटकर आया था। इस दौरान वह घंटाघर पहुंच गया, जहां महिलाओं और पुरुषों ने उसको सम्मानित किया। आरोपितों ने पुलिस के खिलाफ अचानक नारेबाजी शुरू कर दी। हंगामा बढ़ता देखकर वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने उन्हें शांत कराने की कोशिश की तो उनसे धक्का−मुक्की की गई। यही नहीं, आरोपितों ने सोशल मीडिया पर पुलिस के खिलाफ भ्रामक सूचनाएं चलाईं। सड़क पर आरोपितों की गाड़ियां खड़ी होने से जाम की स्थिति उत्पन्न हो गई। प्रदर्शन के नाम पर हंगामा कर रहे लोगों ने पर्यटकों से भी अभद्र व्यवहार किया। पुलिस ने इस मामले में नितिन राज, यामीन खान, आसिफ खान, पूजा शुक्ला, रूखसाना जिया, सबी फातिमा, नसरीन खान, जियाऊद्दीन, जीनत कौशल, रेहाना, रानी, रऊफ, सुमैया राना, उजमा परवीन, सैफुद्दीन, मो वसी, सुनील बेग, फैयाज अहमद, आसफिया खातून, रेशमा, एबाद अहमद और अब्दुल हफीज समेत 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है। पुलिस के मुताबिक हंगामा करने के आरोप में नितिन और एबाद को गिरफ्तार कर मामले की छानबीन की जा रही है।

 

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घंटाघर पर सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रही महिलाओं की मानसिक स्थिति का यह हाल है कि उन्हें सरकार की हर बात में साजिश नजर आती है। इसीलिए जब कोरोना के चलते लखनऊ पुलिस प्रशासन ने इन महिलाओं से धरना खत्म करने को कहा तो इसमें भी यह महिलाएं सरकारी साजिश तलाश करने लगीं। गत दिनों घंटाघर पर प्रदर्शन कर रही महिलाओं को कोरोना वायरस का खतरा देखते हुए नोटिस जारी किया गया। पुलिस कमिश्नर के आदेश पर स्वास्थ्य विभाग ने नोटिस जारी करते हुए प्रदर्शन खत्म करने का नोटिस दिया था। इस पर प्रदर्शन में शामिल सुमैय्या राना ने कहा कि रविवार को जारी नोटिस में कोरोना का खतरा देखते हुए भीड़ जुटने पर संक्रमण की चपेट में आने का खतरा ज्यादा होने का जिक्र है। जानकारी के अनुसार अब तक करीब 60 महिलाओं को नोटिस जारी किया जा चुका है, लेकिन प्रदर्शनकारी महिलाएं न जाने किस 'लालच' के चलते कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं।


-अजय कुमार

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