By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Aug 03, 2022
इसमें कोई दो राय नहीं है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी का अपना दबदबा रहा है। वर्तमान में भी देखे तो भाजपा के बाद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का कद सबसे बड़ा है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने 2017 की तुलना में बढ़िया प्रदर्शन किया था। हालांकि, अखिलेश यादव सरकार बनाने के आंकड़े से बहुत पीछे रह गए थे। लेकिन चुनाव के बाद से अखिलेश यादव के लिए स्थिति अनुकूल नहीं चल रही है। विरोधी तो उनके लगातार उन पर निशाना साथ ही रहे थे। अब तो अपने भी उनकी आलोचना कर रहे हैं। बीते कुछ समय में जो चुनाव के परिणाम आए हैं, उससे अखिलेश यादव की किरकिरी और भी हो रही है। कुछ राजनीतिक विश्लेषक तो दावा यह भी कर रहे हैं कि कहीं ना कहीं अखिलेश यादव अपने पिता की राजनीतिक विरासत को खोते जा रहे हैं। अखिलेश यादव की राजनीति फिलहाल किसी कन्फ्यूजन की शिकार दिखाई दे रही है।
ऐसा इसलिए माना जा रहा है कि वह लंबी लड़ाई के बदले तत्कालिक मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और यही उन पर कभी-कभी भारी पड़ जा रहा है। हाल में ही अखिलेश यादव ने विधान परिषद उपचुनाव में कृति कोल को चुनावी मैदान में उतारा था। खुद अखिलेश यादव के साथ समाजवादी पार्टी के 10 विधायकों के हस्ताक्षर कृति के प्रस्ताव में थे। लेकिन कृति का पर्चा खारिज हो गया। इसका कारण यह रहा कि विधान परिषद में नामांकन के लिए न्यूनतम उम्र सीमा 30 साल होनी चाहिए जबकि कृति कोल सिर्फ 28 साल की हैं। यही कारण है कि अखिलेश यादव पर सवाल उठने लगे हैं। सवाल पूछा जा रहा है कि अखिलेश यादव के जो रणनीतिकार हैं, क्या उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि विधान परिषद के लिए न्यूनतम उम्र की सीमा क्या है। नामांकन के दौरान तो प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल और तीन बार के विधायक मनोज पांडे तक मौजूद रहे।
दरअसल, राष्ट्रपति चुनाव के बाद से जो भाजपा की ओर से दावा किया जा रहा है कि अखिलेश यादव ने एक आदिवासी समाज से आने वाली महिला का विरोध किया है। उसी की भरपाई करने के लिए कृति कोल को सपा की ओर से विधान परिषद चुनाव में उतारा गया था। लेकिन अखिलेश यादव का यादव अब उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है। खुद अखिलेश यादव पूरे मामले में चर्चा के केंद्र में आ गए हैं और उन पर सवाल उठ रहे हैं। भाजपा नेता अखिलेश यादव की ही नियत पर सवाल करते हुए साफ तौर पर कह दिया कि सपा ने अनुसूचित जनजाति को प्रतिनिधित्व देने का जो ढ़ोंग रचा था, उसकी पोल खुल गई है। कुछ दिनों पहले तक अखिलेश यादव के साथ ही रहे ओमप्रकाश राजभर भी उन पर हमलावर हैं। ओमप्रकाश राजभर ने कह दिया है कि अखिलेश यादव कोई भी चुनाव को गंभीरता से नहीं लेते।
उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले लोग यह खुलकर बताते हैं कि मुलायम सिंह के दौर में सपा की ओर से इस तरह की गलतियां शायद ही होती होंगी। कभी समाजवादी पार्टी को बनाने वाले अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव की लगातार उन पर सवाल उठाते रहे हैं। मंगलवार को एक और मौका आया जब शिवपाल यादव को सवाल उठाने का मौका मिल गया। शिवपाल सिंह यादव ने मंगलवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के महासचिव राम गोपाल यादव के एक पत्र का हवाला देते हुए सवाल उठाया है कि न्याय की यह लड़ाई अधूरी क्यों है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव ने मंगलवार को राम गोपाल यादव के पैड पर मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र ट्विटर पर साझा करते हुए सवाल उठाया, न्याय की यह लड़ाई अधूरी क्यों है। आजम खान साहब, नाहिद हसन, शहजिल इस्लाम और अन्य कार्यकर्ताओं के लिए क्यों नहीं।