विश्व पर्यटन दिवस: हाड़ौती में खुलेंगे पर्यटन के द्वार, बढ़ेगा रोजगार

By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Sep 27, 2021

हाड़ौती में पर्यटन विकास की दृष्टि से ऐतिहासिक, पुरातत्व के साथ-साथ चंबल नदी का सौंदर्य, चंबल परिक्षेत्र के वन्यजीव अभयारण्य, नौकायन, धार्मिक स्थल, रमणिक उद्यान, कला और  परम्पराएं पर्यटन विकास की अपार संभावनओं के द्वार खोलते हैं। राजस्थान में पर्यटन के क्षेत्र में हाड़ौती ऐसे बचत बैंक की तरह है जिसका दोहन करने के प्रयास निरन्तर जारी हैं। कोटा में चंबल रिवर फ्रंट एवम ओक्सीजोन पार्क  का निर्माण, शहर को हेरिटेज रूप देना, चंबल में क्रूज संचालन, मुकुंदरा एवम रामगढ़ अभयारण्यों को टाईगर रिजर्व के रूप में विकसित करना जैसे किए जा रहे प्रयास पर्यटन विकास की दिशा में भागीरथ प्रयास हैं। इन सार्थक प्रयासों से पर्यटन शक्ति का विकास होने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी विकसित होंगे इसमें कोई संदेह नहीं हैं। इस क्षेत्र में प्राचीन और अधुनातन पर्यटन स्थल सैलानियों को यहां आने का प्रबल माध्यम बनेंगे। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला चंबल नदी में क्रूज चलाने एवम हवाई सेवा शुरू कराने की दिशा में तेजी से कार्य कर रहे हैं वहीं राज्य के नगरीय विकास मंत्री शांति कुमार धारीवाल कोटा को पर्यटन नगर बनाने की दिशा में समावेशी विकास के लिए जुटे हैं। हाड़ौती में पर्यटन विकास में जब इतनी प्रबल इच्छाशक्ति यहां के प्रतिनिधियों में है तो निश्चित ही पर्यटन क्षेत्र को इसका पूरा लाभ मिलेगा।

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हाड़ौती की पर्यटन शक्ति की चर्चा करें तो यहां के हाड़ा शासकों को का स्वर्णिम इतिहास और उनके काल में निर्मित ऐतिहासिक किले, इमारतें, त्याग और शौर्य की गाथाएं किसी सम्मोहन से कम नहीं हैं। कोटा, बूंदी, झालावाड़ शेरगढ़ और गागरोन के किले किसी आकर्षण से कम नहीं हैं। हाड़ौती के जल दुर्ग गागरोन के महत्व को समझ कर इसे 2013 में यूनेस्को द्वारा भारत की विश्व विरासत सूची में शामिल किया जाना पर्यटन विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है और मारे लिए किसी गौरव से कम नहीं है। बूंदी महलों की चित्रशाला के फ्रेस्को चित्र विश्व स्तर पर पहचान बनाते हैं। कलात्मक कुंड और सीढ़ीदार बावड़ियों की व्यापकता से बूंदी को "सिटी ऑफ स्टेप वेल" की संज्ञा से विभूषित किया जाता है। पहाड़ियों की गोद में बसे बूंदी का अतुलनीय प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक सम्पन्नता, महलों,किलों एवं मंदिरों की स्थापत्य कला पर्यटन का प्रमुख आकर्षण हैं। खूबसूरत जेत सागर का विशाल परिक्षेत्र अनुपम सौंदर्य का सम्मोहन समेटे हैं। प्रति वर्ष आयोजित होने वाला "बूंदी उत्सव" एवं "कजली तीज उत्सव" से पर्यटन को बढ़ावा मिला हैं। आसपास अनेक रमणिक स्थल बूंदी पर्यटन के आधार केंद्र हैं। 


पौराणिक महत्व के कोटा की चर्चा करें तो कोटा गढ़ महल और इसमें स्थित राव माधोसिंह संग्रहालय, कोटा की प्राचीन प्राचीर के विशाल दरवाजे, अभेडा के महल, किशोर सागर तालाब का सौंदर्य और मध्य में बना जग मन्दिर महल, विश्व के सात आश्चर्यों की प्रतिकृति लिए सेवन वंडर पार्क, छत्र विलास, चंबल, भीतरिया कुंड और गणेश उद्यानों की असीम प्राकृतिक सुंदरता, हाड़ौती यातायात एवं जुरासिक पार्क, आधार शिला,  बृज विलास भवन में स्थापित हाड़ौती की मूर्तिकला का विशद संग्रह समेटे राजकीय संग्रहालय, प्राचीन कंसुवा महादेव का मन्दिर, मथुरा धीश जी मन्दिर, चंद्रेसल मठआदि अनेक मंदिर पर्यटन केंद्र हैं। आसपास गुप्त कालीन चारचौमा महादेव, गेपरनाथ और गरडीया महादेव के रमणिक स्थल और आलनिया में प्रागैतिहासिक शैल चित्र महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं। चंबल नदी का विशाल कैनवास पर्यटन का प्रमुख आधार हैं। कोटा का दशहरा मेले की राष्ट्रीय ख्याति है। होली पर सांगोद का "नहान उत्सव" प्रसिद्ध है। केथून में बुनकरों द्वारा हथकरघे पर बुनी जाने वाली कोटा साड़ी की ख्याति विश्वभर में है।


कोटा से 85 किलोमीटर दूर झालावाड़ जिला किलों, महलों, नाट्यशाला, मंदिरों, गुफाओं की धरोहर अपने आंचल में समेटे है। विश्व धरोहर में शामिल गागरोन दुर्ग, कोलवी की बोद्ध गुफाएं, झालावाड़ का किला और महल, राजकीय संग्रहालय, भवानी नाट्यशाला, झालरापाटन का सूर्य मन्दिर, चंद्र भागा नदी के प्राचीन मंदिर समूह, उन्हेल एवम चांदखेड़ी के भव्य जैन मंदिर जिले के उल्लेखनीय दर्शनीय स्थल हैं। झालरापाटन का कार्तिक पूर्णिमा पर आयोजित पशु मेला प्रमुख सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है।

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कोटा से 70 किलोमीटर दूरी पर बारां जिला पुरा महत्व के स्थलों की खान है। जिले में प्राचीन रामगढ़ की पहाड़ी पर माताजी का एवम तलहटी में समीप ही भंडदेवरा का शिव मन्दिर, किशनगंज के पास कृष्ण विलास पुरातत्व साइट, शाहबाद का किला एवम जामा मस्जिद, केलवाड़ा में पौराणिक काल के सीताबाड़ी मन्दिर समूह, अटरू एवम छीपाबडोद के पुरा महत्व के मन्दिर समूह, जल दुर्ग शेरगढ़, सोर सन में माताजी मंदिर और वन्यजीव संर क्षिट क्षेत्र प्रमुख पर्यटक स्थल हैं। बारां जिला मुख्यालय पर आयोजित होने वाला डोल मेला, सीताबाड़ी का मेला,होली पर किशनगंज में स्वांग भरा फूलडोल मेला जिले की सांस्कृतिक अभिव्यक्ति हैं। जिले में आदिवासी सहरिया का शनक नृत्य एवम कंजर जाति की बालाओं का चकरी नृत्य ने विश्व स्तरीय पहचान बनाई हैं।


हाड़ौती की कला-संस्कृति, लोकनृत्य, संगीत, लोक कला, चित्रकला, मांडना कला, रीत रिवाज, हस्तशिल्प, खानपान बहुत कुछ पर्यटकों को लुभाने की शक्ति रखते हैं। हाड़ौती में पर्यटन विकास की दृष्टि से पर्यटक स्थलों एवम संस्कृतिक आयोजनों को पर्यटन विभाग द्वारा पर्यटन मानचित्र पर लाया गया हैं, जिससे सैलानियों की आवक में वृद्धि दर्ज की जा रही है। पर्यटकों का रुझान इस और बढ़ने लगा है। सैलानियों की सुविधाओं खास कर भोजन और आवास के लिए वेलकम होटल समूह जैसे कई लोगों ने स्टार्स होटल स्थापित किए हैं। बूंदी में पेईंग गेस्ट योजना सफलता के सोपान रच रही हैं। पर्यटक स्वागत केंद्र हमेशा सैलानियों के स्वागत को तैयार हैं। कोटा को हेरिटेज लुक दिया जा रहा है और विश्व के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। इन प्रयासों से आशा की जा सकती है की हाड़ौती भी राजस्थान के पर्यटन विकास में उभर कर महत्वपूर्ण मुकाम बनाएगा और रोजगार के नए द्वार खोलेगा।


- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

लेखक एवम पत्रकार

कोटा, राजस्थान

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