नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के प्रभावशाली होने के बाद यह पहला मौका है जब सरकार को अपने फैसले को बदलना पड़ा हो। यह पहला मौका है जब मोदी-शाह की जोड़ी साफ-साफ झुकती नजर आ रही हो और यह कमाल किया है बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में गृह मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके और वर्तमान सरकार में रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने वाले राजनाथ सिंह ने। वैसे आपको बता दें कि राजनाथ सिंह के अध्यक्षीय कार्यकाल में ही नरेंद्र मोदी को बीजेपी की तरफ से 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था। राजनाथ सिंह ने अकेले दम पर लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज जैसे दिग्गज नेताओं के कड़े विरोध के बावजूद दिल्ली की राजनीति में मोदी का मार्ग प्रशस्त किया था। शायद इसलिए राजनाथ सिंह यह मान कर चल रहे थे कि मोदी के बाद सरकार में हमेशा वो नंबर 2 की भूमिका में रहेंगे लेकिन इस बार ऐसा हो नहीं पा रहा है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कैबिनेट मामलों की 8 समितियों के गठन की घोषणा की थी। इन आठों समितियों में गृह मंत्री अमित शाह को शामिल किया गया था लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को केवल दो समिति में ही शामिल किया गया था। राजनाथ सिंह को राजनीतिक और संसदीय मामलों जैसी अहम समितियों में भी शामिल नहीं किया गया था। अपने स्वभाव के अनुसार राजनाथ सिंह ने इस पर कोई कड़ी प्रतिक्रिया तो नहीं दी लेकिन दिल्ली से लेकर नागपुर तक इतनी तेजी से हलचल हुई कि रात होते-होते हालात बदलते नजर आए। गुरुवार की रात को ही कैबिनेट समितियों की एक अपडेट लिस्ट आती है और फिर पता लगता है कि राजनाथ सिंह को 2 से बढ़ाकर 6 समितियों में शामिल कर दिया गया है। नई लिस्ट में राजनाथ सिंह को मंत्रिमंडल के संसदीय मामलों की समिति का अध्यक्ष बनाया गया है साथ ही उन्हें राजनीतिक मामलों की लगभग सभी महत्वपूर्ण समितियों में शामिल किया गया है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री मोदी हैं। मोदी-शाह की जोड़ी को इस तरह से पीछे हटना पड़ेगा, यह कोई भी सोच नहीं सकता था।
नरेंद्र मोदी सरकार-2 में राजनाथ सिंह की भूमिका को लेकर घटनाक्रम इतनी तेजी से बदल रहा है कि यह समझना मुश्किल हो गया है कि अगले पल किसकी जीत होगी। कभी राजनाथ सिंह की जोड़ी भारी पड़ती नजर आती है तो कभी मोदी-शाह की जोड़ी। जरा पूरे घटनाक्रम पर गौर कीजिए-
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राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में 30 मई को शपथ ग्रहण समारोह के समय जब अमित शाह उस तरह बढ़े जहां शपथ लेने वाले मंत्रियों को बैठना था, तो सबके दिमाग में एक ही सवाल कौंधा था कि अब राजनाथ सिंह का क्या होगा ? वो राजनाथ सिंह जो 2014 से 2019 तक अरुण जेटली जैसे दिग्गज मंत्री की मौजूदगी के बावजूद सरकार में नंबर 2 की भूमिका में रहे। गृह मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का दायित्व संभालने के साथ-साथ सरकार की कैबिनेट मंत्रियों की समितियों की अध्यक्षता करते रहे या महत्वपूर्ण सदस्य के तौर पर निर्णायक भूमिका में रहे। लेकिन जैसे ही अमित शाह तीसरे नंबर की कुर्सी पर जाकर बैठे लोगों को यह लगा कि किस्मत के धनी राजनाथ सिंह एक बार फिर बच गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद दूसरे नंबर पर राजनाथ सिंह के शपथ लेने से यह लगा कि वो अमित शाह की सरकार में मौजूदगी के बावजूद नरेंद्र मोदी के बाद नंबर दो की भूमिका में रहेंगे। ऐसा सोचने वालों को अगले दिन फिर धक्का लगा जब मंत्रालय बंटवारे की लिस्ट सामने आई। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सबसे करीबी और विश्वस्त अमित शाह को गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप कर और राजनाथ सिंह को गृह मंत्री की बजाय रक्षा मंत्री बना कर एक बार फिर से लोगों को संशय में डाल दिया। मंत्रिमंडल समितियों के गठन के विवाद से भी यह साफ हो गया कि मोदी सरकार में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है।
किस्मत के धनी रहे हैं संघ के चहेते राजनाथ सिंह
राजनाथ सिंह शायद भारतीय राजनीति के इकलौते ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें किस्मत का धनी माना जाता है। हर बार विकल्पहीनता की हालत में राजनाथ सिंह को मौका मिला है। बड़ा पद हर बार किसी दूसरे के पास जाते-जाते अचानक राजनाथ सिंह की झोली में गिर गया और इसलिए उन्हें किस्मत का धनी कहा जाता है। सही समय पर सही जगह पर मौजूद रहना राजनाथ सिंह की सबसे बड़ी खासियत मानी जाती है। उत्तर प्रदेश में जब कल्याण सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ मोर्चा खोला तो वाजपेयी की नजर जाकर टिक गई राजनाथ सिंह पर। राजनाथ सिंह मौके को लपक कर तुरंत कल्याण सिंह के सामने खड़े हो गए और यूपी की लड़ाई कल्याण सिंह बनाम अटल बिहारी वाजपेयी की बजाय कल्याण सिंह बनाम राजनाथ सिंह की बन गई। आगे चलकर ईनाम में राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद मिला और बाद में उन्हें केन्द्रीय मंत्री भी बनाया गया। अब राजनाथ सिंह केवल उत्तर प्रदेश के नेता भर नहीं रह गए थे बल्कि राष्ट्रीय नेता बन गए थे। जब संघ ने लालकृष्ण आडवाणी को बीजेपी के अध्यक्ष पद से हटाने का फैसला किया तो अटल की तरह उनकी नजरें भी राजनाथ सिंह पर जाकर टिक गईं। राजनाथ सिंह एक बार फिर खतरा उठा कर मोहरा बनने को तैयार हो गए। उस समय से लेकर आज तक राजनाथ सिंह संघ के चहेते नेताओं में गिने जाते हैं। इसकी बानगी उस समय भी देखने को मिली जब तमाम तैयारियों के बावजूद नितिन गडकरी का दोबारा अध्यक्ष बनना मुश्किल हो गया तो बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं की सिफारिश के बावजूद संघ ने वैंकेया नायडू की बजाय राजनाथ सिंह को बीजेपी का अध्यक्ष बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऐसा लग रहा है कि मोदी-शाह के इस युग में भी संघ ने एक बार फिर से कैबिनेट समितियों में राजनाथ सिंह को शामिल करवाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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राजनाथ सिंह की छवि
राजनाथ सिंह एक ऐसे चतुर नेता हैं जो कभी भी लड़ाई को बहुत लंबा नहीं खींचते हैं। कल्याण सिंह, बाबू लाल मरांडी, उमा भारती और येदियुरप्पा जैसे नेताओं के हश्र को देखते हुए राजनाथ सिंह इतना तो समझ ही गए हैं कि लड़ाई को किस हद तक लड़ना है और कहां जाकर शांत बैठ जाना है। विरोधी दलों के नेताओं के साथ भी उनके संबंध उतने ही मधुर हैं जितने पार्टी के नेताओं के साथ। मोदी-शाह के युग में भी तमाम विरोधी दलों के नेताओं के साथ राजनाथ सिंह के संबंध उतने ही मधुर बने हुए हैं जितने पहले थे। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि कई विरोधी दलों के नेताओं के खिलाफ चल रहे मामले में तेजी नहीं दिखाने की वजह से ही इस बार उनका मंत्रालय बदला गया है। विश्वास की कमी की वजह से ही उन्हें पहले मंत्रिमंडल की समितियों में भी शामिल नहीं किया गया था। मोदी-शाह के युग में यह पहला ऐसा फैसला है कि जिसे कुछ घंटों के अंदर ही बदलना पड़ा हो। संघ के हस्तक्षेप की वजह से फिलहाल तो राजनाथ सिंह जीतते दिखाई दे रहे हैं लेकिन बड़ा सवाल तो यही है कि आगे क्या ?
- संतोष पाठक