Indira Gandhi Death Anniversary: मैं आज यहां हूं, कल शायद न रहूं, क्या इंदिरा को हो गया था मौत का अहसास?

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By अभिनय आकाश | Oct 31, 2022

Indira Gandhi Death Anniversary: मैं आज यहां हूं, कल शायद न रहूं, क्या इंदिरा को हो गया था मौत का अहसास?

वैसे तो साल 1984 अपने साथ कई खट्टी और मीठी यादें लेकर आया था। इसी साल भोपाल गैस त्रास्दी जैसी दुर्घटना घटित हुई जब हजारो लोग कभी न जागने वाली मौत की आगोश में समा गए। वहीं इसी साल भारतीय ने अंतरिक्ष में कदम रखा था। लेकिन इसके साथ ही 1984 के साल में ही देश ने अपने एक प्रधानमंत्री को भी खो दिया था और जिसके परणामस्वरूप दिल्ली को सड़कों पर मौत का तांडव सिख दंगे के रूप में देश को देखने को मिला। 31 अक्टूबर 1984 का ही दिन था जब दिन दहाड़े इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी।  31 अक्टूबर को तत्तकालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो जाती है। इंदिरा गांधी को सुबह 9.30 के करीब मारा गया था और शाम 6 बजे ये खबर आधिकारिक तौर पर सामने आई थी। हत्या करने वाले उनके दो सिख बॉडीगार्ड के नाम थे सतवंत सिंह और बेअंत सिंह।

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ओडिशा की जनसभा और वो आखिरी भाषण

इंदिरा गांधी को अपनी मौत का अंदाजा क्या पहले हो गया था? ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अपनी मौत से ठीक एक दिन पहले उन्होंने ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में भरी सभा को संबोधित किया था। इस दौरान भाषण देते हुए उन्होंने कहा था कि मैं आज यहां हूं, कल शायद यहां न रहूं। मेरा जीवन लंबा रहा और मुझे गर्व है। मैंने मेरा जीवन देशवासियों की सेवा में लगाया। जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा। जिस दिन इंदिरा की हत्या की गई उस दिन वो सुबह अपना नाश्ता करके निकली ही थीं कि अचानक वहां तैनात उन्हीं के सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर इंदिरा गांधी को दो और फायर कर दिया। ये गोलियां उनके बगल और सीने में घुस गई। तभी दूसरे सुरक्षाकर्मी सतवंत सिंह ने भी 25 गोलियां इंदिरा के शरीर में दाग दीं। 

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राजधानी में देखने को मिला मौत का ताडंव 

इंदिरा गांधी की मौत के बाद लोग सिखों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे। सबसे ज्यादा कहर दिल्ली पर बरसा। करीब तीन दिन तक दिल्ली की सड़कों औऱ गलियों पर कत्लेआम होता रहा। सिख जान बचाने के लिए जगह ढूंढ रहे थे। जिन इलाकों में नेताओं का दबदबा सबसे ज्यादा था और जिन बस्तियों में सिख सबसे ज्यादा बसते थे, सबसे ज्यादा मातम वहीं गूंज रहा था। त्रिलोकपुरी, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी, नंदनगरी, सागरपुर, कल्याणपुरी, उत्तम नगर, जहांगीरपुरी, तिलकनगर, अजमेरी गेट। दिल्ली के ये वो इलाके थे जहां सबसे ज्यादा कहर टूटा था। घरों से घसीटकर सिखों को मारा गया। जिंदा जलाया गया। जो घर से बाहर नहीं निकले उनके पूरे घर को ही आग के हवाले कर दिया गया। दंगाइयों के लिए अपने शिकार की पहचान आसान थी। इसलिए जो जहां, जब जिस हाल में मिला वहीं दंगाई उस पर टूट पड़े।  

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