कोविड-19 संक्रमण का पता लगाने के लिए तैयार स्वदेशी ‘फेलूदा’

By इंडिया साइंस वायर | Sep 22, 2020

नये कोरोना वायरस (एसएआरएस-सीओवी-2) के प्रकोप को नियंत्रित करने से जुड़े प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कड़ी होती है कोविड-19 से संक्रमित रोगियों की पहचान। इस दिशा में लगातार काम कर रहे वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई कोविड-19 परीक्षण किट अब उपयोग के लिए तैयार है। इस नई विकसित कोविड-19 त्वरित परीक्षण किट को अब ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से व्यावसायिक उपयोग के लिए विनियामक मंजूरी मिल गई है। 


सीएसआईआर से संबद्ध नई दिल्ली स्थित जिनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान (आईजीआईबी) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह एक पेपर-स्ट्रिप आधारित परीक्षण किट है, जिसकी मदद से कम समय में कोविड-19 के संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। यह किट प्रेग्नेंसी का पता लगाने वाली किट की तरह है, जिसका उपयोग बेहद आसान है। इस पेपर स्ट्रिप किट में उभरी लकीरों से पता चल सकेगा कि कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित है या नहीं। किट में ऐसे परीक्षण प्रोटोकॉल का उपयोग किया गया है, जिससे अन्य परीक्षण प्रोटोकॉल्स की तुलना में अपेक्षाकृत कम समय में परिणाम चिकित्सकों को मिल सकता है।

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इस किट का विकास वैज्ञानिक समुदाय और उद्योग जगत के बीच एक प्रभावी साझेदारी का परिणाम है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस परीक्षण को टाटा समूह द्वारा लॉन्च किया जाएगा। इसे सीएसआईआर-आईजीआईबी, आईसीएमआर और टाटा समूह ने साथ मिलकर विकसित किया है। उल्लेखनीय है कि इस किट के विकास और व्यावसायीकरण के लिए सीएसआईआर-आईजीआईबी और टाटा संस के बीच इस वर्ष मई के आरंभ में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। 


इस परीक्षण किट के नाम के साथ भी एक दिलचस्प बात जुड़ी है। बांग्ला फिल्मों के जासूसी किरदार के नाम पर इसको ‘फेलूदा’ नाम दिया गया है, शायद यह सोचकर कि किसी जासूस की तरह यह किट कोविड-19 संक्रमण का पता लगा सकती है। ‘फेलूदा’ किट वैज्ञानिकों की अपेक्षाओं पर खरी उतरी है। भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (आईसीएमआर) के दिशा-निर्देशों के अनुसार नये कोरोना वायरस का पता लगाने के लिए ‘फेलूदा’ किट को 96 प्रतिशत संवेदशनीलता और 98 प्रतिशत विशिष्टता के मापदंडों के अनुरूप पाया गया है।

 

यह पेपर स्ट्रिप-आधारित परीक्षण किट आईजीआईबी के वैज्ञानिक डॉ. सौविक मैती और डॉ. देबज्योति चक्रवर्ती की अगुवाई वाली शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा विकसित की गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि फेलूदा परीक्षण किट, पारंपरिक आरटी-पीसीआर परीक्षणों की सटीकता के स्तर को प्राप्त कर सकता है। परीक्षण को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि यह किट एक घंटे से भी कम समय में नये कोरोना वायरस (एसएआरएस-सीओवी-2) के वायरल आरएनए का पता लगा सकती है। आमतौर पर प्रचलित परीक्षण विधियों के मुकाबले यह किट काफी सस्ती है।

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संक्रमण के संदिग्ध व्यक्तियों में कोरोना वायरस के जीनोमिक अनुक्रम की पहचान करने के लिए इस परीक्षण किट में स्वदेशी रूप से विकसित जीन-संपादन की अत्याधुनिक तकनीक क्रिस्पर (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats)-कैस-9 का उपयोग किया गया है। किट की प्रमुख विशेषता यह है कि इसका उपयोग तेजी से फैल रही कोविड-19 महामारी का पता लगाने के लिए व्यापक स्तर पर किया जा सकेगा। यह नैदानिक परीक्षण विशेष रूप से अनुकूलित कैस-9 प्रोटीन के उपयोग से विकसित किया गया है। वैज्ञानिक क्रिस्पर को भविष्य की तकनीक बताते हैं। उनका कहना है कि क्रिस्पर तकनीक का उपयोग आने वाले समय में कई अन्य रोगजनकों का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है। 


सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे ने सीएसआईआर-आईजीआईबी के वैज्ञानिकों व शोध छात्रों, टाटा संस और डीसीजीआई को उनके अनुकरणीय कार्य और परस्पर सहयोग के लिए बधाई दी है। उन्होंने कहा है कि वर्तमान महामारी के दौरान इस नई नैदानिक किट को मंजूरी मिलना भारत के आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बढ़ते कदमों को दर्शाता है। सीएसआईआर द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि यह भारतीय वैज्ञानिक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसमें 100 दिनों से भी कम समय के भीतर शोध एवं विकास के क्रम से शुरू होकर उच्च सटीकता के साथ एक विश्वसनीय परीक्षण विकसित किया गया है। 


सीएसआईआर-आईजीआईबी के निदेशक डॉ अनुराग अग्रवाल ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा है कि इस प्रौद्योगिकी के विकास की परिकल्पना जीनोम डायग्नॉस्टिक्स और थैरेप्यूटिक्स के लिए सीएसआईआर के ‘सिकल सेल मिशन’ के तहत की गई थी। ‘सिकल सेल मिशन’ के तहत शुरू किए गए काम से एक नवीन ज्ञान का जन्म हुआ, जिसका उपयोग एसएआरएस-सीओवी-2 के नये नैदानिक परीक्षण को विकसित करने में किया गया है। उन्होंने कहा कि इस नई किट का विकास वैज्ञानिक ज्ञान व प्रौद्योगिकी के बीच परस्पर संबंधों एवं अनुसंधान टीम के नवाचार को दर्शाता है।

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आईजीआईबी के वैज्ञानिकों ने बताया कि वे इस उपकरण को विकसित करने के लिए लगभग दो साल से काम कर रहे हैं। लेकिन, जनवरी के अंत में, जब चीन में कोरोना का प्रकोप चरम पर था, तो वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने के लिए परीक्षण शुरू किया कि यह किट कोविड-19 का पता लगाने में कितनी कारगर हो सकती है। इस कवायद में किसी प्रभावी नतीजे पर पहुँचने के लिए वैज्ञानिक पिछले कई महीनों से दिन-रात जुटे हुए थे। अप्रैल में ही यह किट लगभग विकसित हो चुकी थी। पर, विश्वसनीयता और वैधता से जुड़े मानक परीक्षणों के बाद अब इस किट के व्यावसायिक उपयोग की मंजूरी मिली है।


टाटा मेडिकल ऐंड डायग्नोस्टिक्स लिमिटेड के सीईओ गिरीश कृष्णमूर्ति ने कहा है कि “कोविड-19 के लिए टाटा-क्रिस्पर परीक्षण की मंजूरी से वैश्विक महामारी से लड़ने के देश के प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा। टाटा-क्रिस्पर परीक्षण का व्यावसायीकरण देश में शोध एवं विकास के लिए भारतीय प्रतिभा के संकल्प एवं समर्पण का द्योतक है। यह भारतीय प्रतिभा वैश्विक स्वास्थ्य सेवा और वैज्ञानिक अनुसंधान में दुनिया को अपना योगदान दे सकती है।” 


(इंडिया साइंस वायर)

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