NDA और अन्य सरकारों के दौरान अर्थव्यवस्था कैसी रही, इस तरह समझिये

By अरुण जेटली | Mar 20, 2019

विपक्ष के ज्यादातर नेताओं की विडंबना यह है कि वे राजनीतिकरण और नारेबाजी में दक्षता रखते हैं और उन्हीं के आधार पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकते हैं। उन्हें विकास और अर्थव्यवस्था की समझ ही नहीं होती। वर्तमान सरकार के खिलाफ फर्जी अभियानों में से एक आर्थिक आंकड़ों से जुड़ा हुआ है। केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ), जिसके पास आंकड़ों के प्रबंधन का कार्य है, हमेशा सरकार से दूरी बनाए रखता है और अपना काम प्रोफेशनल तरीके से स्वतंत्र रूप से करता है। हमारे आंकड़े अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कार्यप्रणाली के अनुरूप तैयार किए जाते हैं। वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ ने हमारे आंकड़ों को स्वीकार करते हुए हमेशा इसके पक्ष में टिप्पणी की है। 108 कथित अर्थशास्त्रियों ने हाल ही में जो बयान दिया था उसका विश्लेषण यहां जरूरी हो जाता है। इनमें से ज्यादातर ने पिछले कुछ वर्षों में वर्तमान सरकार के विरुद्ध फर्जी राजनीतिक मुद्दों पर दिए गए ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। अनिवार्य रूप से विरोधाभासियों के पास शायद ही कोई लक्ष्य या उद्देश्य है।

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हमें इस बात का यहां विश्लेषण करना चाहिए कि हम अर्थव्यवस्था के मामले में कहां ठहरते हैं। 2014-19 की अवधि में किसी भी सरकार के लगातार पांच वर्षों के कार्यकाल में अब तक सबसे ज्यादा विकास किया है। यह अवधि राजस्व को सुदृढ़ करने का काल रहा है। निम्न चार्ट से तुलनात्मक रूप में यह साफ पता चलता है कि इस अवधि में अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन अन्य अवधि के मुकाबले कैसा रहा।

 

 

उपरोक्त टेबल को देखने से साफ पता चलता है कि इन पांच वर्षों में जीडीपी विकास की दर 7.5 प्रतिशत रही है जो दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज रफ्तार है। मुद्रास्फीति लगभग नियंत्रण में रही है। राजस्व घाटे में क्रमशः गिरावट आई है और चालू खाते के संतुलन में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में वाह्य ऋण में गिरावट आई है और सरकार के चालू खाते के संतुलन में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।

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जीडीपी और राजस्व समझदारी

 

1. मुद्रास्फीतिः 2009-14 के बीच की अवधि में मुद्रास्फीति 10 प्रतिशत से भी ज्यादा थी। 2014-19 में यह औसतन 4.5 प्रतिशत तक आ गई है। सच तो यह है कि पिछले तीन वर्षों का औसत इससे काफी कम रहा है। वर्तमान में यह 2.7 प्रतिशत के करीब है।

 

2. रोजगार: सीसीआई द्वारा मार्च, 2019 में एमएसएमई के हाल के सर्वे में विभिन्न आकारों, सेक्टरों और स्थानों के 105,345 फर्मों को कवर किया गया है। यह सर्वे बताता है कि पिछले 4 वर्षों में कुल रोजगार 3.3 प्रतिशत (संयोजित विकास दर) सालाना की दर से बढ़कर 13.9 प्रतिशत हो गया है। इस सर्वे में आगे कहा गया है कि श्रम ब्यूरो के अनुसार “अगर कुल श्रम का आकार 45 करोड़ (2017-18 के लिए अनुमानित) है तो प्रति वर्ष रोजगार में बढ़ोतरी 1 करोड़ 35 लाख से 1 करोड़ 40 लाख की हुई है।'' यह तथ्य एस.के. घोष और पुलक घोष द्वारा ईपीएफओ के दिए गए आंकड़ों के ट्रेंड के अनुरूप ही है। ये आंकड़े भारत में रोजगार की बढ़ोत्तरी के सामान्य ट्रेंड को दर्शाते हैं जो जीडीपी में 7.3 प्रतिशत विकास दर से मेल खाता है। सामान्यतः अधिक विकास दर रोजगार सृजित करता है। यह तभी नीचे जाएगा जब उत्पादकता अचानक ही बढ़ जाए। भारत में यह संभव नहीं है। यहां किसी तरह का सामाजिक असंतोष नहीं है यानी कि किसी तरह का आंदोलन या प्रोटेस्ट नहीं हो रहा है। इसलिए भारत में रोजगार जाने के फर्जी कैंपेन को खारिज कर देना ही उचित होगा।

 

 

अगर हम पिछले पांच वर्षों में जीडीपी के विकास की दर, इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश और उससे जुड़े हुए आर्थिक तथा श्रम सुधारों को ध्यान में रखें तो यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगा कि रोजगार में बढ़ोतरी और लाभदायक रोजगार के अवसरों के सृजन के कई स्रोत थे।

 

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय पे रोल रिपोर्टिंग के जरिये रोजगार से संबद्ध आंकड़े देता रहता है। ईपीएफओ के आंकड़े बताते हैं कि सितंबर, 2017 से दिसंबर, 2018 तक 72.32 लाख नए खाताधारक जोड़े गए हैं। औपचारिक सेक्टर में रोजगार में बढ़ोतरी के बिना यह संभव नहीं है। यह मोहनदास पई द्वारा किए गए उस अध्ययन से मेल खाता है जिसमें कहा गया था कि 2017 में सिर्फ तीन व्यवसायों सीए, वकील और डॉक्टरी के पेशे में 1.08 करोड़ रोजगार सृजित हुए थे।

 

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत राष्ट्रीय राजमार्गों और ग्रामीण सड़कों के निर्माण की तेज गति से 17.8 करोड़ मानव दिवस (आईआईटी, कानपुर के अध्ययन के मुताबिक) सृजित हुए हैं।

 

ई-कॉमर्स और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र जैसे उबर, ओला, योयो वगैरह में नए खिलाड़ियों के आने से बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार पैदा हुए हैं। मुद्रा लोन के लिए 7.99 लाख करोड़ रुपए आवंटित हुए हैं, इनमें से 28 प्रतिशत लोन नए उद्यमियों को मिले हैं। यह कहना निरर्थक होगा कि दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में दरअसल रोजगार घटते जा रहे हैं और 17.1 करोड़ मुद्रा लोन से स्वरोजगार के जरिये भी रोजगार उत्पन्न नहीं हुआ है।

 

3. इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड: यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पिछले दो वर्षों में लगभग तीन लाख करोड़ एनपीए की वसूली हो गई है। यह आईबीसी बनाने या आईबीसी प्रक्रिया के जरिये अथवा प्री आईबीसी धाराओं के कारण वसूले जा सके। विकास को बढ़ावा देने की बैंकों की योग्यता बढ़ी है। बैंकों के आपस में समाहित होने से और भी मजबूत संस्थाएं बन रही हैं।

 

4. सामाजिक संकेतक: दिसंबर, 2014 में देश में रसोई गैस की उपलब्धि 55 प्रतिशत थी जो 8 मार्च 2019 तक बढ़कर 93 प्रतिशत हो गई है। आयुष्मान भारत ने 10.74 करोड़ परिवारों को अस्पताल की सुविधा दी है जिनमें कुल 50 करोड़ लोग शामिल हैं। ग्रामीण स्वच्छता दिसंबर, 2014 के 39 प्रतिशत से बढ़कर आज 99 प्रतिशत हो गई है।

 

5. इन्फ्रास्ट्रक्चर संकेतक: 2013-14 में ग्रामीण क्षेत्र में सड़कें प्रति दिन 69 किलोमीटर की दर से बन रही थीं। 2017-18 में यह बढ़कर 134 किलोमीटर प्रति दिन हो गई है। यही स्थिति राष्ट्रीय राजमार्गों के साथ है। अब हर दिन 25 किलोमीटर सड़कों का निर्माण हो रहा है यानी हर साल 10,000 किलोमीटर से भी ज्यादा। इस समय 14 शहरों में मेट्रो सर्विस शुरू हो चुकी है और इसकी कुल लंबाई 645 किलोमीटर है। भारत की पहली हाई स्पीड रेल 2022-23 में पूरी हो जाएगी जो अहमदाबाद और मुंबई के बीच 500 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। पिछले चार वर्षों में भारत का एयर ट्रैफिक सबसे ज्यादा बढ़ा है। आज हमारे पास 102 कार्यरत एयरपोर्ट हैं। हम अब पूर्ण ग्रामीण विद्युतीकरण की ओर पहुंच गए हैं। हमारा निर्माण उद्योग जो सामान्य तौर पर बड़े पैमाने पर रोजगार देता है, अब दहाई में बढ़ रहा है। फिर भी आलोचक कहते हैं कि विकास से रोजगार नहीं बढ़ा है।

 

6. इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन: पिछले पांच वर्षों में भारतीय इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर ने काफी प्रगति की है। 2014 के पूर्व काल में 1,80,000 करोड़ रुपए के इल्क्ट्रॉनिक सामानों का उत्पादन होता था जो अब बढ़कर 3.87 लाख करोड़ रुपए हो गया है। एनडीए सरकार के पांच वर्षों के कार्यकाल में पांच लाख करोड़ रुपए के बराबर इलेक्ट्रॉनिक सामानों का उत्पादन होगा। 2013-14 के पहले भारत में मोबाइल फोन का उत्पादन नहीं के बराबर होता था लेकिन आज हम दुनिया के सबसे बड़े दूसरे मोबाइल फोन निर्माता देश बन गए हैं। लेकिन विरोधाभासी लोगों के आंकड़े बताते हैं कि इससे रोजगार नहीं सृजित हुआ है।

 

7. इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस: 2014 के निम्नतम 142 से हमारी रैंकिंग सिर्फ चार वर्षों में घटकर 77 हो गई है। हमारी रैंकिंग में 65 स्थानों की छलांग सबसे तेज है। कुछ क्षेत्रों जैसे निर्माण परमिट में हमने 129 स्थान सुधारा है। सीमा पार कारोबार में हमने 66 स्थान की छलांग लगाई है। अन्य क्षेत्रों जैसे कारोबार शुरू करने, लोन लेने, देश में बिजली लाने में भी हमने इसी तरह सुधार किया है। हमें अभी कुछ अन्य सेक्टरों जैसे कॉन्ट्रैक्ट के अनुपालन में सुधार करना है।

 

8. ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर और कृषि: भारत आज गरीब लोगों के खाद्यान्न के अधिकार पर 1,84,000 करोड़ रुपए उन्हें सब्सिडी देकर खर्च करता है। हमारा देश किसानों को 75,000 करोड़ रुपए सालाना की मदद देता है। ग्रामीण रोजगार गारंटी पर देश हर साल 60,000 करोड़ रुपए खर्च करता है। यह अब तक की सबसे बड़ी राशि है। हमने ग्रामीण सड़कों पर अपने खर्च को तीन गुना बढ़ा दिया है। इसी तरह हमने ग्रामीण विद्युतीकरण, स्वच्छता और रसोई गैस में काफी तरक्की की है। हेल्थकेयर में आयुष्मान भारत के जरिये हमने दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे सफल हेल्थकेयर स्कीम गरीबों के लिए शुरू की है। हम किसानों को 12 लाख करोड़ रुपए के ऋण से मदद दे रहे हैं। ब्याज में हम अनुदान दे रहे हैं, कम पैसों में फसल बीमा, उर्वरक, बीज और बढ़ा हुआ एमएसपी दे रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि इन कदमों से तथा ग्रामीण भारत में ज्यादा निवेश से अगले 10 वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की जिंदगी में शहरों के लोगों की तरह उल्लेखनीय सुधार होगा।

 

 

यहां मैंने सिद्ध प्रमाणों की मदद से भारत में पिछले पांच वर्षों में हुए आर्थिक विकास की चर्चा की। ये प्रमाण स्पष्ट रूप से बताते हैं कि हर भारतीय के चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो, आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। केवल वही जो कई दशकों तक सत्ता में रहते हुए भी भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारने में असफल रहे, इस सच्चाई की ओर नहीं देख पा रहे हैं। आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक सहित सारी दुनिया ने भारत को सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था माना है। 130 करोड़ भारतीय इस पर यकीन करते हैं। केवल “अनिवार्य रूप से विरोधाभासी” लोग ही इसे नहीं मानते हैं।

 

-अरुण जेटली

(लेखक केंद्रीय वित्त मंत्री हैं।)

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