By नीरज कुमार दुबे | Jan 12, 2023
नमस्कार, प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में आप सभी का स्वागत है। भारत 15 जनवरी 2023 को अपना 75वां सेना दिवस मनाने जा रहा है। मातृभूमि की रक्षा करते करते सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीदों को सच्चे हृदय से श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए हम इस अवसर पर हमारे सैन्य बलों के पराक्रम और देशभक्ति के जज्बे को सलाम करते हैं। आज के कार्यक्रम में भी हमेशा की तरह उपस्थित रहे ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी जी। हमने उनसे सेना दिवस के दिल्ली से बाहर हो रहे आयोजन और कुछ अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर बात की। पेश हैं इस बातचीत के मुख्य अंश-
प्रश्न- सेना दिवस का आयोजन इस बार दिल्ली से बाहर हो रहा है। ऐसा क्यों किया जा रहा है और बाहर आयोजन के दौरान कौन-सी चुनौतियां आएंगी?
उत्तर- नरेंद्र मोदी जी जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कहा था कि सभी बड़े आयोजन दिल्ली में ही होने की परम्परा में बदलाव करना चाहिए और देश के विभिन्न राज्यों में वह कार्यक्रम होने चाहिए जो अब तक सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी में ही होते थे। ऐसे आयोजन जब अन्य राज्यों में जाने लगे तो स्थानीय स्तर पर जनता का जुड़ाव और बढ़ा। हमने देखा कि वायुसेना ने अपना वार्षिक आयोजन इस बार दिल्ली से सटे हिंडन की बजाय चंडीगढ़ में किया। इसी कड़ी में इस बार सेना दिवस बैंगलुरु में आयोजित किया जायेगा। वैसे भी हमारे प्रथम सेनाध्यक्ष करियप्पा जी कर्नाटक से ही थे तो इस बार का आयोजन खास रहने वाला है। जहां तक चुनौतियों की बात है तो वह यह आ सकती है कि दिल्ली में परेड ग्राउंड पर सभी सुविधाएं पहले से मौजूद हैं और 26 जनवरी की परेड के लिए रिहर्सल भी यहां पहले शुरू हो जाती है ऐसे में सेना दिवस की तैयारी में आसानी होती थी लेकिन वहां नये सिरे से सब कुछ करना पड़ेगा। फिर भी बदलाव होना ही चाहिए और हर शुरुआत का स्वागत किया जाना चाहिए।
प्रश्न- हमारे आस पड़ोस की जो स्थितियां हैं उसके मद्देनजर चुनौतियों से निपटने में हमारी सेना कितनी सक्षम है? ये सवाल इसलिए क्योंकि बार-बार एक नेता की ओर से सवाल उठाया जा रहा है कि चीन अपनी सेना को वर्षों का प्रशिक्षण देता है और हम मात्र 6 महीने का प्रशिक्षण देंगे। हम यह भी जानना चाहते हैं कि 1 जनवरी से अग्निपथ योजना के तहत प्रशिक्षण शुरू हो चुका है, लेकिन फिर भी राजनीतिक रैलियों में इस योजना का विरोध किया जा रहा है। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
उत्तर- सेना के पराक्रम या प्रशिक्षण पर सवाल उठाना गलत है। सेना इस समय बदलाव के उस दौर से गुजर रही है जोकि वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए आवश्यक है। जो लोग कह रहे हैं कि हमारी सेना को छह माह का ही प्रशिक्षण दिया जा रहा है वह गलत आरोप लगा रहे हैं। पहले सामान्य प्रशिक्षण दिया जाता है और उसके बाद कड़े प्रशिक्षण की शुरुआत होती है जिसमें सैनिक को हर चुनौती का सामना करने लायक बनाया जाता है। अग्निवीर जब बटालियनों में जायेंगे तो कोई भी कमांडिंग ऑफिसर नहीं चाहेगा कि उसकी टीम में कम प्रशिक्षित जवान आये इसलिए हर जवान को पहले ही निखारा जाता है। अग्निपथ योजना के बारे में जिस तरह की नकारात्मक बातें कही जा रही हैं वह भी गलत है क्योंकि इस योजना को जो रिस्पांस मिला, इस योजना के तहत अग्निवीरों के हर प्रकार के हितों को सुरक्षित रखने के जो उपाय किये गये हैं वह दर्शाते हैं कि यह योजना आनन-फानन में नहीं लाई गयी है। वैसे भी सेना कोई योजना लाने से पहले उस पर गहरा मंथन करती है। अग्निपथ योजना लाने से पहले भी तीन साल तक उस पर गहन मंथन किया गया। जो लोग इस योजना की आलोचना कर रहे हैं उन्हें कम से कम तीन-चार साल इंतजार करना चाहिए और फिर इस योजना के लाभ और हानि के बारे में बात करनी चाहिए। वैसे भी यदि इस योजना के तहत कोई खामी रही तो सेना उसे खुद ही दुरुस्त कर लेगी क्योंकि सेना में गलतियों से सीखने और उसे ना दोहराने की परम्परा आरम्भ से ही रही है।
प्रश्न- वर्तमान वैश्विक माहौल को देखते हुए हमारी सेना को और कैसे सक्षम बनाया जा सकता है? साथ ही हमारी सेना को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं?
उत्तर- हमारी सेना को आत्मनिर्भर बनाने के काम तेजी से चल रहे हैं। इस कड़ी में घरेलू रक्षा कंपनियों को जिस तरह बढ़ावा दिया जा रहा है वह भी हमारे लिये लाभदायक है। एक तो इससे मुश्किल समय में हम दूसरों पर साजोसामान के लिए निर्भर नहीं होंगे साथ ही रोजगार के अवसर बढ़ाने के अलावा हम रक्षा आयातक से निर्यातक की भूमिका में आ सकेंगे। वर्तमान में देखें तो पाकिस्तान और चीन ही दो मुख्य चुनौती हैं। लेकिन पाकिस्तान खुद संघर्ष में फंसा हुआ है और उसे यह बात अच्छी तरह पता है कि वह भारत से सीधी लड़ाई में कभी नहीं जीत सकता इसीलिए वह आतंकवाद का सहारा लेता रहेगा जिसके लिए हमें पूरी तरह सतर्क रहना होगा। इसके अलावा चीन भी यह समझ चुका है कि यह 1962 वाला भारत नहीं है इसलिए सीधी लड़ाई वह भी कभी नहीं करेगा। उसका प्रयास रहेगा कि तवांग जैसी घटनाओं को दोहरा कर वह भारत पर मनोवैज्ञानिक रूप से दबाव डालता रहे इसलिए उसका सामना करने के लिए हमें अलर्ट रहना होगा। साथ ही हमें अपने रक्षा साजो-सामान को भी उन्नत बनाते रहना होगा। वर्तमान की सरकार जिस तरह तीनों सेनाओं की जरूरतें पूरी कर रही है और आगे आने वाली संभावित चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए तैयारी कर रही है उससे भारत की प्रतिरक्षा क्षमता और बढ़ रही है।
प्रश्न- भारतीय सेना वन आर्मी, वन यूनिफॉर्म की राह पर भी आगे बढ़ रही है। सेना की वर्दी में क्या बड़े बदलाव दिखने वाले हैं और सवाल यह भी है कि यह बदलाव किया क्यों जा रहा है?
उत्तर- वन आर्मी, वन यूनिफॉर्म होना अच्छी बात है। इस बार सेना ने निफ्ट का सहयोग लेकर वर्दी को डिजाइन करवाया है और यह तमाम तरह के मौसमों में जवानों को सहुलियत प्रदान करेगी। साथ ही अब पहले की तरह सेना की वर्दी सामान्य दुकानों पर बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं होगी क्योंकि असामाजिक तत्वों ने कई बार इस बात का फायदा उठाया है। बदलाव का एक कारण यह भी रहा कि हमारे कई अर्धसैनिक बलों की वर्दियां भी सेना की विभिन्न बटालियनों से मेल खा रही थीं। इसके अलावा, विभिन्न रेजिमेंटों के अधिकारी अलग-अलग तरह की टोपी, बेल्ट आदि पहनते हैं जिससे उनकी रेजिमेंट का पता चलता है लेकिन अब वन आर्मी वन यूनिफॉर्म के कारण सभी अधिकारी भारतीय सेना के अधिकारी लगेंगे ना कि किसी खास रेजिमेंट के। इसके साथ ही अब ब्रिगेडियर और इससे ऊपर रैंक के लिए यूनिफॉर्म के बैज, बेल्ट, बकल और कैप एक जैसी हो जायेगी।