जनरल नरवणे के नेतृत्व में सेना ने जो काम कर दिखाया है, उस पर पीढ़ियाँ गर्व करेंगी

By नीरज कुमार दुबे | Jan 14, 2021

दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में शुमार भारतीय सेना आज अपना स्थापना दिवस धूमधाम से मना रही है। भारतीय सेना के शौर्य की जहाँ तक बात है तो उसे पूरी दुनिया कई बार देख ही चुकी है, लेकिन कोरोना काल में सेना ने जिस प्रकार राहत अभियानों में बढ़-चढ़कर मदद की वह अपने आप में दुनियाभर के सैन्य बलों के लिए अनुकरणीय है। कोरोना की आहट होते ही भारतीय सेना ने ऑपरेशन नमस्ते शुरू कर महामारी से लड़ने की शुरुआत की और सरकार की ओर से चलाये जा रहे राहत कार्यों में योगदान देने में जुट गयी लेकिन इस कठिन समय में भी पाकिस्तान और चीन ने जिस प्रकार मिलकर भारत की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया उसका भी भारतीय सेना ने दुश्मन को मुँहतोड़ ही नहीं बल्कि हर अंग तोड़ जवाब दिया। भारतीय सेना ने चीन को सिर्फ चेताया ही नहीं बल्कि चौंकाया भी है। सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक और पाकिस्तानी आतंकवादियों को भारतीय सीमा में घुसते ही मार गिराने के भारतीय सुरक्षा बलों के रुख से जैसे पाकिस्तान के सामने यह पूरी तरह स्पष्ट है कि भारत इस्लामाबाद की आतंक संबंधी नीति को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा उसी तरह पिछले एक साल में चीन के सामने भी यह स्पष्ट हो गया है कि भारत को दबाया नहीं जा सकता, झुकाया नहीं जा सकता, डराया नहीं जा सकता और पीछे हटाया नहीं जा सकता। चीन को अच्छी तरह समझ आ गया है कि भारत आंखों में आंखें डाल कर बात भी करता है और यदि हालात बिगड़ते हैं तो दुश्मन को सिर्फ अपने बाजुओं की ताकत से ही चित कर सकता है।

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पिछले साल के शुरू में देश को पहले सीडीएस के रूप में बिपिन रावत मिले और सेनाध्यक्ष पद पर जनरल मनोज मुकुंद नरवणे आये। जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ऐसे सेनाध्यक्ष रहे जिनको पहले ही साल में तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने इस एक साल में ही कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में अपनी छाप छोड़ी है। दुनिया के सबसे बड़े बलों में शुमार भारतीय सेना का नेतृत्व आसान बात नहीं है। आइये जरा डालते हैं एक नजर पिछले एक वर्ष में सेना के समक्ष पेश आईं चुनौतियों पर और उसे मिली उपलब्धियों पर।


ऑपरेशन नमस्ते

देश में पिछले वर्ष के शुरू में जब कोरोना वायरस की आहट हुई तो सेना ने ऑपरेशन नमस्ते शुरू किया। इस अभियान के तहत जवानों को मास्क लगाने, सामाजिक दूरी बनाये रखते हुए कार्यों को अंजाम देने आदि के बारे में निर्देशित किया ही गया साथ ही सेना ने तमाम जगह क्वारांटीन सेंटर भी बनाये जोकि सभी के लिए काफी लाभकारी रहे। सेना ने इसके साथ ही केंद्र तथा विभिन्न राज्यों की सरकारों की ओर से चलाये जा रहे कोरोना रोधी अभियानों में हरसंभव मदद की।


सीमा पार आतंकवाद पर कड़ा प्रहार

पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत सीमापार से प्रायोजित आतंकवाद को कभी बर्दाश्त नहीं करेगा और देश के पास किसी भी आतंकी गतिविधि से निपटने के लिए अपने चुने हुए समय और स्थान पर सटीक पलटवार करने का अधिकार सुरक्षित है। अब जनरल नरवणे ऐसा कह रहे हैं तो यह सिर्फ बयान भर नहीं समझा जाना चाहिए। भारतीय सेना ने पाकिस्तान को बार-बार उसकी हिमाकतों का तगड़ा जवाब देकर दिखाया भी है। यही कारण है कि इस्लामाबाद के मन में सर्जिकल स्ट्राइक का इतना खौफ बैठ गया है कि वह दिन-रात भय से कांपा रहता है। हालांकि कोरोना वायरस महामारी के बावजूद पाकिस्तान अपनी राज्य नीति के तहत एलओसी पर बिना किसी उकसावे के संघर्षविराम का उल्लंघन करता आ रहा है और कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ कराने के लिए भी प्रयास करता रहा है। लेकिन सेना ने संघर्षविराम उल्लंघनों का जवाब पाकिस्तानी चौकियां उड़ा कर दिया और घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों का भेजा उड़ा कर पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं का दिल दहला दिया।


पाकिस्तान भले कितने ही प्रयास कर ले लेकिन कश्मीर घाटी में अब आतंकवाद के पाँव उखड़ने लगे हैं। पिछले वर्ष सर्वााधिक बड़ी संख्या में आतंकवादी और आतंकवादी संगठनों के आला कमांडर मारे गये। पूरा साल यह स्थिति बनी रही कि आतंकी संगठनों के चीफ का पद लगभग खाली ही रहा क्योंकि इस पर बैठने वाला कुछ समय ही जिंदा रह पाया। सेना का मानवीय चेहरा भी कश्मीर घाटी के लोगों ने विभिन्न ऑपरेशन्स के दौरान फिर देखा जब नागरिकों के जीवन के लिए जवानों ने अपनी कुर्बानी दी। सेना की ओर से चलाये जाने वाले सद्भावना मिशनों का ही कमाल है कि कश्मीरी युवा बड़ी संख्या में मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। सेना की भर्तियों में भाग लेने के लिए कश्मीरी युवाओं की भीड़ लग रही है। इसके अलावा कोरोना काल में जिस तरह सेना ने रोजगार संबंधी प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थानीय स्तर पर चलाये उससे युवाओं में कौशल बढ़ा है। लॉकडाउन के दौरान सेना की ओर से कश्मीर में जरूरतमंदों की हरसंभव मदद की गयी, राशन बांटा गया, चिकित्सा संबंधी जरूरतें पूरी की गयीं, युवाओं को खेलों से जोड़ा गया, नशे के खिलाफ अभियान के दौरान युवाओं के बीच जागरूकता फैलायी गयी। आज स्थानीय स्तर पर ऐसे हालात हैं कि यदि कोई बहकावे में आकर आतंकी गतिविधियों में लिप्त भी हो जाता है तो सेना के आग्रह पर अमूमन वापस लौट भी आता है।


चीनी चौधराहट को चुटकी में चटकाया

जनरल एमएम नरवणे के नेतृत्व वाली भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जिस तरह से चीनी सेना का अत्यंत बहादुरी के साथ सामना किया और उन्हें वापस जाने को मजबूर किया, उसकी कल्पना तक चीन ने नहीं की होगी। भारतीय सेना ने इस साल जो उपलब्धि हासिल की है उस पर देश की आने वाली पीढ़ियों को गर्व होगा। विस्तारवादी चीन की मंशाओं पर पानी फेरना आसान नहीं है लेकिन भारतीय सेना ने यह कार्य करके दिखाया और हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। गलवान में हमारे बलवानों ने जो शौर्य और साहस दिखाया उसके लिए उन्हें बारम्बार सलाम। हमारे 20 जवान उस संघर्ष में शहीद हो गये लेकिन चीनी आक्रामकता का जवाब देते हुए वह जिस तरह चीनी सैनिकों को मारते-मारते मरे हैं वह हमारे शहीदों को सदा के लिए अमर कर गया। चीन ने कोरोना महामारी के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति बदलने की जो भी कोशिशें की वह सभी भारतीय सेना ने विफल कर दीं। भारतीय सेना द्वारा पिछले साल अगस्त में पैंगोंग झील से लगे कुछ ऊंचाई वाले इलाकों पर कब्जा किये जाने से चीन चौंक गया और भारत को उस पोजिशन का लाभ मिला।


भारत और चीन गतिरोध खत्म करने के लिए अब तक 8 दौर की बातचीत कर चुके हैं लेकिन हल नहीं निकला है और दोनों देशों की सेनाएं भयंकर ठंड और विषम परिस्थितियों के बावजूद आमने-सामने हैं। शायद चीन ने ठंड के इस मौसम में भारतीय सेना की परीक्षा लेने की सोची होगी, यदि ऐसा है तो भारतीय सेना उस परीक्षा में पूरी तरह पास हो चुकी है। भारतीय सेना के पास अपार साहस और कुछ भी कर दिखाने की हिम्मत तो पहले से ही थी लेकिन अब उसके पास विषम परिस्थितियों में भी पूरी तैयारी के साथ रहने के लिए साजोसामान भी है। जनरल नरवणे के नेतृत्व में भारतीय सेना ने अपने इतिहास का सबसे बड़ा भंडारण कार्यक्रम चलाया जोकि पूर्वी लद्दाख में ठंड के मौसम के लिए था क्योंकि भीषण ठंड के दौरान जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं उस समय के लिए जवानों की हर चीज की व्यवस्था करना जरूरी था। भीषण सर्दी से मुकाबले की तैयारी भारतीय सेना ने पिछले साल जुलाई से ही शुरू कर दी थी। सैनिकों के लिए खास कपड़े और टेंट खरीदे गए जिनमें शून्य से 40 डिग्री नीचे के तापमान में आराम से रहा जा सकता है।


40 फीट तक बर्फ पड़ने के समय किसी भी सैनिक का इन इलाकों में ज्यादा समय तक तैनात रहना शारीरिक तौर पर काफी कठिन है लेकिन मोदी सरकार सैनिकों की हर जरूरत का खास ख्याल रख रही है। इसलिए एक बड़े अभियान के तहत राशन, केरोसिन हीटर, खास कपड़े, टेंट्स और दवाइयों को पूरी सर्दी के लिए समय से ही जमा कर लिया गया था। बेहद ठंडे मौसम में सैनिकों के इस्तेमाल के लिए खास कपड़ों के 11000 सेट अमेरिका से खरीदे गये। हाई ऑल्टेट्यूड और सुपर हाई ऑल्टेट्यूड में तैनात सैनिकों के लिए गरम रहने वाले टैंटों के अलावा लद्दाख में तैनात सभी सैनिकों के लिए स्मार्ट कैंप भी समय से तैयार कर लिए गए थे जिनमें बिजली, पानी, कमरे को गर्म रखने वाले हीटर, स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी सभी जरूरतों का ख्याल रखा गया। भारतीय सेना ने अपने सबसे बड़े सैन्य भंडारण अभियान के तहत पूर्वी लद्दाख में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लगभग चार महीनों की भीषण सर्दियों के मद्देनजर बलशाली टैंकों, तोपों, सैन्य वाहनों, भारी हथियार, गोला-बारूद, ईंधन के साथ ही खाद्य और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पूरी कर चीन की चौधराहट को चौंका दिया। यही नहीं इस वर्ष ठंड संबंधी दुश्वारियों की वजह से घायल होने वाले सैनिकों की तादाद भी पहले की अपेक्षा ज्यादा नहीं है जबकि इस बार तैनाती बड़ी संख्या में है। भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए सेनाध्यक्ष समय-समय पर पूर्वी लद्दाख का दौरा भी कर रहे हैं, तैयारियों की समीक्षा कर रहे हैं और जरूरतों को पूरा करने के निर्देश भी दे रहे हैं। इसके अलावा लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दौलत बेग ओल्डी और डेपसांग जैसे अनेक अहम इलाकों तक सैनिकों की आवाजाही के लिए अनेक सड़क परियोजनाओं पर काम तेज करवाया गया है।

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सेना प्रमुख ने देश को आश्वस्त किया है हम जब तक अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों और उद्देश्यों को नहीं प्राप्त कर लेते तब तक पकड़ बनाकर रखने के लिए तैयार हैं और भारतीय सैनिक न सिर्फ लद्दाख के क्षेत्र में बल्कि एलएसी से लगे सभी क्षेत्रों में उच्च स्तर की सतर्कता बरत रहे हैं। जनरल नरवणे ने कहा है कि भारतीय सेना की संचालनात्मक तैयारी बेहद उच्च स्तर की है। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक स्थिति के बारे में उन्होंने कहा कि यह वैसी ही है जैसी पहले थी और यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। सेनाध्यक्ष के इस बयान ने उन तमाम राजनीतिक आरोपों पर विराम लगा दिया है जिसके तहत तरह-तरह की बातें कही जा रही थीं। 


सेना की उड्डयन शाखा में शामिल होंगी महिला पायलट

जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की एक बड़ी पहल के तहत भारतीय सेना ने अपनी उड्डयन शाखा में महिला पायलटों की शामिल करने का फैसला किया है और माना जा रहा है कि इसके पहले बैच का प्रशिक्षण जुलाई में शुरू हो जायेगा। इस बारे में स्वयं जनरल नरवणे ने कहा कि उन्होंने एक महीने पहले सेना की उड्डयन शाखा में महिलाओं को शामिल करने का निर्देश जारी किया था। फिलहाल सेना की उड्डयन शाखा में महिलाओं को सिर्फ एयर ट्रैफिक कंट्रोल और ग्राउंड ड्यूटी में लगाया जाता है। सेना प्रमुख की पहल पर एडजुटेंट जनरल शाखा, सैन्य सचिव शाखा और उड्डयन निदेशालय में सहमति बन गयी है कि उड़ान भरने वाली शाखा में पायलट के रूप में महिला अफसरों की भर्ती की जा सकती है। माना जा रहा है कि अगला सत्र जुलाई से शुरू होगा और महिला अफसरों को पायलट प्रशिक्षण में शामिल किया जाएगा। एक साल के प्रशिक्षण के बाद वह पायलट के तौर पर फ्रंट लाइन पर ड्यूटी कर सकेंगी।


सैन्यकर्मियों के बीच मानसिक तनाव को कम करने के भरसक प्रयास

सेना ने इस चुनौतीपूर्ण वर्ष में अपने जवानों की सेहत का भी खास ख्याल रखा। कई बार ऐसे हालात हो जाते हैं कि मानसिक तनाव से जूझ रहे जवान आत्महत्या कर लेते हैं इसको देखते हुए विभिन्न अभियान चलाये गये। सैनिकों में तनाव की समस्या को दूर करने के लिए परामर्श भेजने सहित अन्य कई कदम उठाए गए। सेनाध्यक्ष की पहल पर बल ने जवानों के बीच तनाव के कारणों का अध्ययन किया और उनकी समस्याएं दूर करने के प्रयास किये गये और किये भी जा रहे हैं। साथ ही वरिष्ठ अधिकारी इस मुद्दे पर कंपनी कमांडर और कमांडिंग स्तर के अधिकारियों के नियमित संपर्क में बने हुए हैं। देखा जाये तो सेना के बारे में बिना आधार के भी कई बार रिपोर्टें प्रकाशित कर दी जाती हैं और विवाद खड़ा कर उस रिपोर्ट को वापस ले लिया जाता है। हाल ही में प्रमुख सैन्य थिंक टैंक यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (यूएसआई) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय सेना के आधे से ज्यादा सैनिक गंभीर तनाव की स्थिति में मालूम होते हैं और दुश्मनों की गोली के मुकाबले आत्महत्या, आपसी झगड़े और अन्य अप्रिय घटनाओं में हर साल ज्यादा सैनिकों की जान जा रही है। इस रिपोर्ट पर विवाद हुआ और बाद में यूएसआई की वेबसाइट से इस रिपोर्ट को हटा लिया गया।


पूर्वोत्तर में शांति

पूर्वोत्तर में शांति व्यवस्था बनाये रखने में और उग्रवादी तत्वों पर लगाम लगाने में सेना की बड़ी भूमिका रहती है। पिछले एक वर्ष में देखें तो असम सहित पूर्वोत्तर के अन्य भागों में शांति बनाये रखने में सेना का अनुकरणीय योगदान रहा। सीमायी राज्य अरुणाचल प्रदेश में भी उच्च स्तर की सतर्कता बनाये रखने की बात हो, बुनियादी ढाँचे को मजबूत बनाने की बात हो, सभी में सेना बढ़-चढ़कर कार्य करती रही। ओडिशा, बंगाल सहित जहाँ-जहाँ चक्रवाती तूफान आये वहाँ-वहाँ जवान राहत अभियानों में भी उतरे। यही नहीं चाहे नगालैंड के जंगली क्षेत्र में आग बुझाने की बात हो या अन्य प्रकार के सामाजिक कार्य, सेना ने सभी में आगे बढ़कर कार्य किया।


आत्मनिर्भर भारत

जब भारत आत्मनिर्भरता की राह पर कदम बढ़ा चला है तो सेना कहां पीछे रहने वाली है। पिछले वर्ष फरवरी माह में उत्तर प्रदेश की राजधानी में डिफेंस एक्सपो भी आयोजित किया गया जिसमें विदेशी कंपनियों ने देशी कंपनियों के रक्षा उत्पादों को देखा और सराहा। इस दौरान कई विदेशी कंपनियों से रक्षा अनुबंध भी हुए। इसके अलावा सेना ने छोटे से लेकर बड़े हथियारों तक की ऐसी सूची बनाई है जिनको घरेलू स्तर पर रक्षा साजोसामान बनाने वाली कंपनियों से ही खरीदा जायेगा। यही नहीं हाल ही में सेना की ओर से जो नये ऑर्डर दिये गये हैं उनमें 80 प्रतिशत तक भारतीय रक्षा कंपनियों को दिये गये हैं। स्वयं सीडीएस बिपिन रावत इस बारे में उद्योग संगठनों की बैठकों को संबोधित कर उनका हौसला बढ़ा चुके हैं।

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आगे की चुनौती

भारतीय सेना को पाकिस्तान और चीन की मिलिभगत को देखते हुए ‘दो मोर्चों’ पर संभावित खतरे के परिदृश्य से निपटने के लिए सदैव तैयार रहना होगा। साथ ही नये युग की जो तकनीकी संबंधी चुनौतियां हैं उनसे भी निबटने के लिए अपनी शक्ति को बढ़ाना होगा। सरकार को भी चाहिए कि सेना के आधुनिकीकरण के लिए भी जो भी बजटीय सहयोग और समर्थन चाहिए वह उसे प्रदान करती रहे। वैसे स्वयं सेनाध्यक्ष ने बताया है कि कोरोना काल में जब सभी मंत्रालयों को पैसा संभाल कर खर्च करने के निर्देश थे तब सेना के लिए कोई रोकटोक नहीं थी और उसे अपनी हर जरूरत का सामान समय पर मिलता रहा। सेनाध्यक्ष के रूप में जनरल नरवणे ने पड़ोसी देशों के अलावा उत्तर कोरिया और सऊदी अरब समेत कई अन्य देशों की यात्रा कर उन देशों के साथ भारत के रक्षा संबंध मजबूत बनाये, भारतीय सेना का अन्य देशों के साथ संयुक्त अभ्यास अभियान को आगे बढ़ाकर हमारे जवानों का कौशल और बढ़ाया, इस प्रकार के कार्यों को आगे भी किये जाते रहने की जरूरत है।


बहरहाल, हम सभी की भी यह जिम्मेदारी है कि जब हमारी सेना के वीर जवान सीमा पर और दुर्गम पहाड़ियों में डटे हुए हैं तो उनका हौसला बढ़ाने के लिए जो कुछ हो सकता है वह करते रहें। जिस विश्वास, दृढ़ता, प्रतिबद्धता और वीरता के साथ हमारे जवान डटे हुए हैं उसी दृढ़ता के साथ हमें हमारे जवानों के साथ खड़े रहने की जरूरत है।


जय हिन्द


-नीरज कुमार दुबे

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