By नीरज कुमार दुबे | Oct 23, 2023
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने वैश्विक संघर्षों की वृद्धि को देखते हुए कहा है कि अब कोई भी खतरा किसी से ज्यादा दूर नहीं रह गया है। साथ ही उन्होंने भारत-कनाडा संबंधों पर भी अपना पक्ष विस्तार से रखा है। उन्होंने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि देखा जाये तो संघर्ष और आतंकवाद के दुष्प्रभाव को रोके जा सकने की कोई भी उम्मीद करना अब संभव नहीं है। जयशंकर ने दुनियाभर में हो रही भू-राजनीतिक उथल-पुथल के संबंध में एक कार्यक्रम में कहा कि पश्चिम एशिया में अभी जो हो रहा है, उसका प्रभाव अब भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। साथ ही विदेश मंत्री ने रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव का हवाला देते हुए कहा कि दुनिया में विभिन्न संघर्षों के परिणामों का असर नजदीकी भौगोलिक क्षेत्रों से कहीं अधिक दूर तक देखा जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न क्षेत्रों में छोटी-छोटी घटनाएं होती रहती हैं जिनके प्रभाव की अनदेखी नहीं की जा सकती है।’’
जयशंकर ने आतंकवाद की चुनौती और शासन कला के रूप में इसके इस्तेमाल पर भी बात की। उनकी इन टिप्प्णियों को विभिन्न आतंकी समूहों को पाकिस्तान के समर्थन के संदर्भ के तौर पर देखा जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘इसका एक कम औपचारिक संस्करण भी है, जो बहुत व्यापक है। मैं आतंकवाद के बारे में बात कर रहा हूं जिसे लंबे समय से शासन कला के एक औजार के रूप में विकसित किया गया है।’’ उन्होंने कहा कि कोई भी ऐसी उम्मीद कि संघर्ष और आतंकवाद के दुष्प्रभाव को रोका जा सकता है, अब संभव नहीं है। विदेश मंत्री ने कहा कि कोई भी खतरा अब बहुत दूर नहीं है। भू-राजनीति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए, जयशंकर ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में कर्ज में वृद्धि देखी गई है, जो अक्सर अविवेकपूर्ण विकल्पों और अस्पष्ट परियोजनाओं के संयोजन के कारण होता है। उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप आज देखें कि पश्चिम एशिया में इन दिनों क्या हो रहा है तो एक मायने में ये ऐसी गतिविधियां हैं जो इस क्षेत्र के लिए स्वाभाविक है।’’ विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्पष्ट कहा कि पश्चिम एशिया में अभी जो कुछ हो रहा है उसका असर क्या होगा, वह अब तक पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है। उन्होंने यह टिप्पणी हमास-इजरायल के बीच जारी संघर्ष को लेकर बढ़ती वैश्विक चिंता की पृष्ठभूमि में की।
उन्होंने कोविड-19 महामारी से हुई तबाही को रेखांकित करते हुए कहा कि कैसे संकट के दौरान वैश्वीकरण की असमानताएं स्पष्ट रूप से सामने आईं। जयशंकर ने कहा, ‘‘कोविड-19 के टीकों की उपलब्धता को लेकर भेदभाव इसका स्पष्ट उदाहरण है, जब कुछ देशों के पास उनकी आबादी का आठ गुना टीके की खुराक थी जबकि अन्य देश अपने नागरिकों के लिए पहली खुराक का इंतजार कर रहे थे।’’ मंत्री ने रेखांकित किया, ‘‘अस्थिरता में दूसरा योगदान वैश्वीकृत विश्व में संघर्ष देता है, जिसके परिणाम क्षेत्र से कहीं दूर तक पड़ते हैं। हम यूक्रेन के मामले में यह पहले ही देख चुके हैं।’’
विदेश मंत्री ने विभिन्न आतंकी समूहों को पाकिस्तान से मिल रहे समर्थन के परोक्ष संदर्भ के रूप में देखी जाने वाली अपनी टिप्पणियों में आतंकवाद की चुनौती और इसे एक शासन कला के रूप में कैसे इस्तेमाल किया जा रहा है, इस पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा, ‘‘हिंसा के क्षेत्र में, इसका एक कम औपचारिक संस्करण भी है जो बहुत व्यापक है। मैं यहां आतंकवाद की बात कर रहा हूं जिसे लंबे समय से एक शासन कला के रूप में विकसित और प्रचलित किया गया है।’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘जब कट्टरपंथ और अतिवाद की बात आती है तो इसके रूप बदलने के खतरे को कम मत आंकिए। अब कोई भी ख़तरा दूर नहीं है।’’ भू-राजनीति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए, जयशंकर ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में रिण में वृद्धि देखी गई है, जो अक्सर अविवेकपूर्ण विकल्पों और अस्पष्ट परियोजनाओं के संयोजन के कारण होता है। जयशंकर ने कहा कि सबसे शक्तिशाली राष्ट्र तुलनात्मक रूप से उतने शक्तिशाली नहीं रहे जितने अतीत में हुआ करते थे, और कई "मध्यम शक्तियां" भी उभरी हैं।
इसके अलावा, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि यदि भारत को कनाडा में अपने राजनयिकों की सुरक्षा में प्रगति नजर आती है तो वह कनाडाई नागरिकों के लिए वीजा सेवाएं "बहुत जल्द" फिर से शुरू करने पर विचार कर सकता है। जयशंकर ने इस बात पर जोर भी दिया कि भारत का कनाडा के साथ राजनयिकों की संख्या में समानता सुनिश्चित करने का निर्णय वियना संधि के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि भारत द्वारा कुछ सप्ताह पहले वीजा सेवाओं को अस्थायी रूप से रोकने के पीछे मुख्य कारण कनाडा में अपने राजनयिकों की सुरक्षा चिंता थी और भारतीय अधिकारियों को सुरक्षित वातावरण प्रदान करने में ओटावा की असमर्थता राजनयिक संबंधों पर वियना संधि के सबसे बुनियादी पहलू को चुनौती देती है। जयशंकर ने कहा कि भारत ने राजनयिकों की संख्या के मामले में बराबरी रखने पर इसलिए जोर दिया कि इसे (भारत को) ‘‘हमारे मामलों में कनाडाई कर्मियों के हस्तक्षेप को लेकर चिंताएं थीं।’’ उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय आयी है, जब कनाडा ने कुछ दिन पहले भारत से अपने 41 राजनयिकों को वापस बुला लिया था।
उन्होंने एक परिचर्चा सत्र के दौरान भारत-कनाडा संबंधों को लेकर पूछे गए एक सवाल पर कहा, ‘‘हमने इस बारे में बहुत कुछ सार्वजनिक नहीं किया है। मेरा मानना है कि समय बीतने के साथ और चीजें सामने आएंगी और लोग समझेंगे कि हमें उनमें से कई लोगों के साथ उस तरह की असुविधा क्यों थी।’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘अभी संबंध कठिन दौर से गुजर रहे हैं। हालांकि मैं यह कहना चाहता हूं कि हमारी दिक्कतें कनाडा की राजनीति के एक वर्ग और उससे जुड़ी नीतियों के साथ हैं।’’
जयशंकर ने वीजा सेवाएं फिर से शुरू करने पर कहा, ‘‘यदि हमें कनाडा में अपने राजनयिकों की सुरक्षा में प्रगति दिखती हैं, तो हम वहां वीजा जारी करना फिर से शुरू करना चाहेंगे। मैं उम्मीद करूंगा कि यह कुछ ऐसा है जो बहुत जल्द होना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कुछ हफ्ते पहले, हमने कनाडा में वीजा जारी करना बंद कर दिया था, क्योंकि हमारे राजनयिकों के लिए काम पर जाकर वीजा जारी करना सुरक्षित नहीं था। इसलिए उनकी सुरक्षा ही प्राथमिक कारण था, जिसके चलते हमें अस्थायी तौर पर वीजा जारी करना बंद करना पड़ा।’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘मैं उम्मीद करता हूं कि स्थिति इस संबंध में बेहतर होगी कि हमारे लोगों को राजनयिक के रूप में अपने मूल कर्तव्य का निर्वहन करने में अधिक आत्मविश्वास होगा, क्योंकि जैसा कि आप जानते हैं, राजनयिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना वियना संधि का सबसे बुनियादी पहलू है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘अभी, कनाडा में इस तरह की कई चुनौतियां हैं कि हमारे लोग सुरक्षित नहीं हैं, हमारे राजनयिक सुरक्षित नहीं हैं।’’ उन्होंने कहा कि यदि भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा में प्रगति होती है तो भारत वीजा सेवाएं शुरू करेगा। जयशंकर ने कहा कि लोगों की सबसे ‘‘बड़ी चिंता’’ वीजा को लेकर है।
राजनयिकों की संख्या में समानता पर उन्होंने कहा, ‘‘यह वियना संधि द्वारा प्रदान की गई है, जो इस पर प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय नियम है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह पूरा मुद्दा समानता बनाये रखने का है कि...एक देश में किसी दूसरे देश के कितने राजनयिक हैं, और यह व्यवस्था दोनों देशों पर लागू होती है। यह वियना संधि द्वारा प्रदान की गई है, जो इस पर प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय नियम है।’’ मंत्री ने कहा, ‘‘हालांकि हमारे मामले में, हमने संख्या बराबर रखने का आह्वान किया, क्योंकि हमें कनाडाई कर्मियों द्वारा हमारे मामलों में लगातार हस्तक्षेप के बारे में चिंता थी।’’