By नीरज कुमार दुबे | Sep 17, 2023
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह जम्मू में आयोजित की गयी स्वदेशी रक्षा प्रणालियों के प्रदर्शन और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, भारत-कनाडा के रिश्तों, रूस-यूक्रेन युद्ध, अफ्रीकन यूनियन और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप के बीच बनने वाले आर्थिक गलियारे से संबंधित मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू में 90 बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन किया है। जम्मू में ही ‘नॉर्थ टेक सिम्पोजियम’ में स्वदेशी रूप से निर्मित रक्षा प्रणालियों का प्रदर्शन किया जा रहा है। दूसरी तरफ पीओके के लोगों की ओर से भारत में विलय की मांग तेज होती जा रही है। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- चीन सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचे का विकास करता रहा लेकिन हमारी पिछली सरकारें सिर्फ देखती रहीं। लेकिन वर्तमान सरकार ने सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचों के विकास को आगे बढ़ाया, वाइब्रेंट विलेज अभियान चलाकर सीमावर्ती गांवों का विकास किया और उनमें तमाम सुविधाएं दीं और अब रक्षा उत्पादन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज चीन को दिक्कत इसी बात से हो रही है कि भारत ने जवाब देना सीख लिया है। पहले उसे लगता था कि वह तो घंटे भर में अपने रक्षा साजो सामान के साथ लड़ने के लिए आ जायेगा और भारत को ऐसा करने में महीनों लग जायेंगे लेकिन अब भारत भी कुछ घंटों में ही सारा रक्षा साजो सामान लेकर पहुँच सकता है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीमावर्ती इलाकों तक पहुँच आसान बनाने के लिए सड़क, पुल और सुरंगों के निर्माण को काफी तवज्जो दी इसके अलावा ऐसे हल्के विमान, टैंक और हथियार खरीदे गये हैं जो ज्यादा सामान लेकर तेजी के साथ ऊँचाई वाले इलाकों तक पहुँच सकते हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले में 2,941 करोड़ रुपये की लागत से पूरी हुई सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की 90 बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन किया। इसके अलावा उन्होंने सांबा जिले में बिश्नाह-कौलपुर-फूलपुर रोड पर अत्याधुनिक 422.9 मीटर लंबे देवक पुल के अलावा 89 अन्य परियोजनाओं का डिजिटल माध्यम से उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि देवक पुल रक्षा बलों के लिए सामरिक महत्व का है और इससे सैनिकों, भारी उपकरणों और मशीनीकृत वाहनों को अग्रिम क्षेत्रों में तेजी से भेजने में मदद मिलेगी और क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि बीआरओ परियोजनाओं में 10 सीमावर्ती राज्यों और उत्तरी एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों के केंद्र शासित प्रदेशों में 22 सड़कें, 63 पुल, एक सुरंग, दो हवाई पट्टियां और दो हेलीपैड शामिल हैं, जिनका निर्माण अधिकांश दुर्गम इलाकों में चुनौतीपूर्ण मौसम की स्थिति में किया गया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि डिजिटल रूप से जिन 89 परियोजनाओं का उद्घाटन किया गया उनमें से 36 अरुणाचल प्रदेश में, 25 लद्दाख में, 11 जम्मू-कश्मीर में, पांच मिजोरम में, तीन हिमाचल प्रदेश में, दो-दो सिक्किम, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में और एक-एक नगालैंड, राजस्थान और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में हैं। उन्होंने कहा कि बीआरओ ने महत्वपूर्ण सामरिक परियोजनाओं को रिकॉर्ड समय में पूरा किया और उनमें से कई का निर्माण अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करके एक ही कार्य सत्र में किया गया। उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में बालीपारा-चारदुआर-तवांग रोड पर 500 मीटर लंबी नेचिफू सुरंग रणनीतिक तवांग क्षेत्र को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करेगी और यहां तैनात सशस्त्र बलों तथा प्राचीन तवांग क्षेत्र का दौरा करने वाले पर्यटकों दोनों के लिए फायदेमंद होगी। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में बागडोगरा और बैरकपुर हवाई अड्डों के पुनर्निर्माण एवं पुनरुद्धार से न केवल सीमाओं पर भारतीय वायु सेना की रक्षात्मक और आक्रामक क्षमताओं में सुधार होगा, बल्कि क्षेत्र में वाणिज्यिक उड़ान संचालन की सुविधा भी मिलेगी। उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्री ने पूर्वी लद्दाख में न्योमा हवाई पट्टी की डिजिटल रूप से नींव भी रखी, जिसे 218 करोड़ रुपये की लागत से विकसित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस हवाई पट्टी के निर्माण से लद्दाख में हवाई बुनियादी ढांचे को काफी बढ़ावा मिलेगा और उत्तरी सीमाओं पर भारतीय वायुसेना की क्षमता में वृद्धि होगी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जम्मू के जगती परिसर में ‘नॉर्थ टेक संगोष्ठी’ की बात है तो इससे घरेलू रक्षा कंपनियों को काफी लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो भारत एक बदलाव के दौर से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि अब देश के पास ऐसी प्रणालियां मौजूद हैं जो सौ किलोमीटर के दायरे तक मौजूद हथियारों को निशाना बना सकती हैं। उन्होंने कहा कि भारत जल्द ही दुनिया के प्रमुख रक्षा उत्पादकों में से एक बनकर उभरेगा क्योंकि देश ‘‘आत्मनिर्भरता’’ की राह पर आगे बढ़ रहा है, जिसका आह्वान कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देखा जाये तो वर्तमान में देश की सीमाएं पहले से कहीं अधिक सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि भारत ने पिछले नौ वर्षों में प्रौद्योगिकी के साथ बड़ी रणनीतिक ताकत हासिल की है और इसकी सीमाएं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा रक्षा मंत्री के तहत पहले से कहीं अधिक सुरक्षित हो गई हैं। उन्होंने कहा कि अत्यंत आवश्यक सीमा बंकरों का निर्माण, सीमावर्ती निवासियों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण और सीमा बटालियनों की स्थापना बहुत सराहनीय कदम है।
प्रश्न-2. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपने भारत दौरे के दौरान खालिस्तानी अतिवादियों के बारे में पूछे जाने पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई दे रहे थे। दूसरी तरफ खालिस्तानी आतंकी और अमेरिका स्थित प्रतिबंधित सिख फॉर जस्टिस कस प्रमुख गुरपतवंत सिंह पन्नून भारत सरकार के खिलाफ बयान दे रहा था। इसे कैसे देखते हैं आप? साथ ही कनाडाई प्रधानमंत्री के विमान के खराब होने के कारण उन्हें जब भारत में रुकना पड़ा तो इस दौरान भारत सरकार की ठंडी प्रतिक्रिया रही। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- इसे कहते हैं जैसी करनी वैसी भरनी। उन्होंने कहा कि एक तरह से कनाडा के प्रधानमंत्री के भारत के इस दौरे से पूरी दुनिया को 'जैसी करनी वैसी भरनी' वाली कहावत और उसका अर्थ प्रत्यक्ष रूप से समझ आ गया। उन्होंने कहा कि कनाडा के प्रधानमंत्री अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए जिस तरह अतिवादियों को अपने देश में पाल रहे हैं वह एक दिन उनके लिए ही खतरा बना जायेंगे। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह रहा है कि आतंकवाद या कट्टरवाद को प्रश्रय देने वालों को अपने किये का खामियाजा भुगतना पड़ा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और उनका प्रतिनिधिमंडल उनके विमान में आई तकनीकी खराबी ठीक कर दिये जाने के बाद रवाना तो हो गये लेकिन इस पूरी अवधि के दौरान जिस तरह कनाडाई मीडिया ने ही उनकी खिंचाई की उसे वह कभी नहीं भूलेंगे। उन्होंने कहा कि जिस तरह से वहां के राजनीतिज्ञों और मीडिया ने कनाडा के प्रधानमंत्री पर अपने देश की नाक कटवाने का आरोप लगाया है वह ट्र्डो को आजीवन याद रहेगा। उन्होंने कहा कि जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी मुलाकात की बात है तो इस दौरान उन्होंने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को वहां चरमपंथी तत्वों की भारत विरोधी गतिविधियों के बारे में भारत की कड़ी चिंताओं से अवगत कराया, जो अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं, राजनयिकों के खिलाफ हिंसा भड़का रहे हैं और वहां भारतीय समुदाय को धमकी दे रहे हैं। जी20 शिखर सम्मेलन से इतर ट्रूडो के साथ बातचीत में मोदी ने यह भी उल्लेख किया कि भारत-कनाडा संबंधों की प्रगति के लिए ‘‘परस्पर सम्मान और विश्वास’’ पर आधारित संबंध आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत-कनाडा संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, कानून के शासन के प्रति सम्मान और दोनों देशों की जनता के बीच मजबूत संबंधों पर आधारित हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि संगठित अपराध, मादक पदार्थ गिरोह और मानव तस्करी के साथ ऐसी ताकतों का गठजोड़ कनाडा के लिए भी चिंता का विषय होना चाहिए। तथा ऐसे खतरों से निपटने के लिए दोनों देशों के लिए सहयोग करना जरूरी है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर कनाडा में खालिस्तानी तत्वों की बढ़ती गतिविधियों पर भारत की चिंताओं के बारे में पूछे जाने पर ट्रूडो ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उनका देश शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की स्वतंत्रता की हमेशा रक्षा करेगा, लेकिन साथ ही हिंसा को रोकेगा और नफरत का हमेशा विरोध करेगा। कनाडा के प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनका देश हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अंत:करण की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की स्वतंत्रता की रक्षा करेगा और यह हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है। ट्रूडो ने कहा था कि साथ ही, हम हिंसा को रोकने और नफरत का विरोध करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उन्होंने कहा था कि मुझे लगता है कि यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कुछ लोगों की हरकतें पूरे समुदाय या कनाडा का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। ट्रूडो ने कहा था कि भारत कई क्षेत्रों में कनाडा का एक महत्वपूर्ण भागीदार है। उन्होंने कहा था कि भारत दुनिया की असाधारण रूप से एक महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था है और जलवायु परिवर्तन से निपटने से लेकर नागरिकों के लिए विकास और समृद्धि के लिए कनाडा का एक महत्वपूर्ण भागीदार है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक भारत में कनाडा के प्रधानमंत्री के मौजूद होने के बीच ही खालिस्तानी तत्वों की ओर से भारत को धमकियां देने की बात है तो हम कभी इसकी परवाह नहीं करते। हाल में कई लोगों ने ऐसी धमकियां दी थीं और उनमें से कई अब इस दुनिया में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की उभरती ताकत है और अपनी संप्रुभता और अखंडता की रक्षा करना जानता है इसलिए चरमपंथियों की हार होना तय है।
प्रश्न-3. रूस-यूक्रेन युद्ध अब किस मोड़ पर पहुँचा है? रूसी राष्ट्रपति और उत्तर कोरिया के शासक के बीच जो समझौते हुए हैं वह दुनिया पर क्या असर डालने वाले हैं?
उत्तर- कुछ समय पहले तक लग रहा था कि यूक्रेन बढ़त हासिल कर रहा है क्योंकि उसने क्रीमिया और मास्को तक ड्रोन हमले कर दिये थे लेकिन अब वह आगे नहीं बढ़ पा रहा है। उन्होंने कहा कि रूस जिस तरह से आक्रामक हुआ है उससे यूक्रेन और उसके सहयोगियों के होश उड़ गये हैं। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो यूक्रेन यदि अब भी नहीं रुका तो उसका पूरी तरह बर्बाद होना तय है क्योंकि पश्चिमी और यूरोपीय देश भी अब इस युद्ध से आजिज आ चुके हैं। यूक्रेन के समर्थक देशों की जनता अपनी सरकारों से सवाल कर रही है कि इस युद्ध से हमें इतनी परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं फिर भी क्यों हम इसमें आर्थिक और सैन्य मदद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि रूस के असल दुश्मन अमेरिका को भले इस बात से फर्क नहीं पड़ रहा हो कि कितना खर्च हो रहा है लेकिन नाटो देश अब और ज्यादा खर्च करने के मूड़ में नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को झुकाने की अमेरिका पूरी कोशिश करेगा इसलिए यूक्रेन को युद्ध से नहीं हटने देगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि लेकिन पुतिन भी झुकने को तैयार नहीं हैं। उनकी निगाह इस पर लगी है कि अगर यूक्रेन को कलस्टर बम या रासायनिक हथियार मिलते हैं तो फिर कैसे बड़ा पलटवार करना है। उन्होंने कहा कि पुतिन हर स्थिति के लिए अपनी सेना को तैयार कर चुके हैं और हाल ही में उन्होंने सैन्य अधिकारियों के पदों में फेरबदल भी किया है। साथ ही जिस तरह रोजाना हजारों की संख्या में रूसी नागरिक सेना में भर्ती होने के लिए आगे आ रहे हैं उससे पुतिन का हौसला बढ़ा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन से पुतिन की मुलाकात काफी मायने रखती है। दोनों नेताओं ने मुलाकात के बाद भले सार्वजनिक रूप से किसी समझौते की घोषणा नहीं की हो लेकिन माना जा रहा है कि उत्तर कोरिया अपने पास पड़े द्वितीय विश्व युद्ध के जमाने के हथियारों के अलावा हाल में बनाये गये हथियार भी रूस को देगा। बदले में रूस की ओर से उसे अन्न और तकनीक मिलेगी जिसकी उत्तर कोरिया को बहुत जरूरत है। उन्होंने कहा कि वैसे भी इन दोनों देशों के रिश्ते ऐतिहासिक हैं। उन्होंने कहा कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच परिवहन संपर्क भी है तभी किम जोंग उन ट्रेन से रूस पहुँचे थे। उन्होंने कहा कि यह परिवहन संपर्क ही उत्तर कोरिया से रूस तक हथियारों की पहुँच को आसान बनायेगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पश्चिमी देश और दक्षिण कोरिया भले उत्तर कोरिया को चेतावनी दे रहे हों कि वह रूस को हथियार नहीं दे लेकिन किम जोंग उन पर कभी भी किसी चेतावनी का असर नहीं पड़ा। किम जोंग उन से तो अमेरिकी राष्ट्रपति रहने के दौरान डोनाल्ड ट्रंप दो बार मुलाकात करने के बावजूद मुद्दों का हल नहीं निकाल पाये थे। उन्होंने कहा कि जब किम जोंग उन को लग रहा है कि युद्ध में फंसा रूस उन्हें परमाणु हथियार की भी तकनीक दे सकता है तो वह यह मौका कभी नहीं चूकना चाहेंगे। उन्होंने कहा कि व्लादिमीर पुतिन जानते हैं कि किम जोंग उन क्या चाहते हैं इसलिए उन्होंने इस मुलाकात का आयोजन रशियन स्पेसपोर्ट में किया ताकि वहां की तकनीक और चकाचौंध देखकर उत्तर कोरिया के शासक ललचा जायें और वह सब कुछ करने को राजी हो जायें जो रूस चाहता है। उन्होंने कहा कि हालांकि दो युद्ध उन्मादी लोगों के साथ आ जाने से दुनिया की चिंता जरूर बढ़ी है।
प्रश्न-4. अफ्रीकन यूनियन के जी-20 में शामिल होने को आप कैसे देखते हैं?
उत्तर- भारत के नेतृत्व में हुआ यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा। इस एक फैसले की लंबे समय से प्रतीक्षा की जा रही थी और अब जब भारत ने अफ्रीकन यूनियन को जी20 में शामिल करवाने में सफलता प्राप्त कर ली है तो पूरे अफ्रीका में खुशी का माहौल है। कई अफ्रीकी नेताओं ने भारत की ओर से आयोजित शिखर सम्मेलन में जी20 देशों के अफ्रीकी संघ (एयू) को अपने 21वें सदस्य के रूप में स्वीकार करने संबंधी सर्वसम्मत फैसले का स्वागत किया है। अफ्रीकी नेताओं ने अपनी प्रतिक्रियाओं में मोदी के इस विचार की पुष्टि की थी कि कैसे जी20 के 21वें सदस्य के रूप में अफ्रीका को शामिल करने से वैश्विक चुनौतियों से निपटने में अधिक प्रभावी आवाज उठाने के वास्ते महाद्वीप के प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा। एयू आयोग के अध्यक्ष मौसा फाकी महामत ने पूर्ण सदस्य के रूप में जी20 में समूह में अफ्रीकी संघ के शामिल होने का स्वागत किया। एयू के पूर्व अध्यक्ष एवं दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा, मोदी द्वारा घोषित निर्णय को साझा करने वाले पहले अफ्रीकी नेताओं में से थे। रामफोसा ने कहा कि हमें खुशी है कि जी20 ने अफ्रीकी संघ को जी20 के सदस्य के रूप में स्वीकार कर लिया है। केन्या के राष्ट्रपति विलैम रुटो ने भी अफ्रीकी संघ को जी20 में शामिल किये जाने का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि जी20 में एयू की भागीदारी से अफ्रीकी महाद्वीप की आवाज को वैश्विक मंच पर अधिक प्रभावशाली तरीके से रखा जा सकेगा। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल-फतह अल-सिसी ने जी20 में पूर्ण सदस्य के रूप में अफ्रीकी संघ के शामिल होने की सराहना की।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अफ्रीकी संघ का जी20 में शामिल होना अधिक समावेशी वैश्विक वार्ता की दिशा में एक ‘महत्वपूर्ण कदम’ है क्योंकि जी20 के सभी सदस्य देशों ने भारत की जी20 अध्यक्षता के तहत 55 सदस्यीय अफ्रीकी संघ को दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं की सूची में शामिल करने के लिए मंच (जी20) के शिखर सम्मेलन की शुरुआत में प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। उन्होंने कहा कि वर्ष 1999 के बाद इस प्रभावशाली समूह का यह पहला विस्तार था। जी20 के सभी सदस्य देशों ने ‘ग्लोबल साउथ’ के इस महत्वपूर्ण समूह (अफ्रीकी संघ) को दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं की मेज पर लाने के प्रस्ताव का समर्थन किया। ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका के विकासशील देशों के लिए किया जाता है। उन्होंने कहा कि यहां यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अफ्रीकी संघ का सामूहिक रूप से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) लगभग तीन हजार अरब अमेरिकी डॉलर और जनसंख्या लगभग 1.4 अरब है।
प्रश्न-5. भारत-मध्य पूर्व और यूरोप के बीच बनने वाला आर्थिक गलियारा चीन के लिए कितनी बड़ी मुसीबत लाने वाला है?
उत्तर- देखा जाये तो चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट से दुनिया परेशान है क्योंकि चीन ने इसके जरिये कई देशों को कर्ज के जाल में फंसा दिया है तो साथ ही वह अपनी विस्तारवाद की नीति को भी इस योजना के माध्यम से आगे बढ़ा रहा है। इसलिए इटली इस परियोजना से बाहर निकल गया है जिससे चीन को बड़ा झटका लगा है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पाकिस्तान में भी चीनी नागरिकों पर हालिया हमलों के चलते इस परियोजना के कार्य में बाधा खड़ी हुई है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत ने अमेरिका और कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ जो महत्वाकांक्षी भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे की घोषणा की उसका बड़ा असर पड़ने वाला है। उन्होंने कहा कि जब इसकी घोषणा हुई उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कनेक्टिविटी पहल को बढ़ावा देते हुए सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर जोर दिया था। उन्होंने कहा कि भारत कनेक्टिविटी को क्षेत्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं करता है क्योंकि उसका मानना है कि कनेक्टिविटी आपसी विश्वास को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि नये आर्थिक गलियारे को कई लोग चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के विकल्प के रूप में देखते हैं। इस गलियारे की घोषणा अमेरिका, भारत, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ के नेताओं ने जी20 शिखर सम्मेलन से इतर संयुक्त रूप से की। देशों ने भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे के निर्माण के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिससे एशिया, अरब की खाड़ी और यूरोप के बीच बढ़ी हुई कनेक्टिविटी और आर्थिक एकीकरण के माध्यम से आर्थिक विकास प्रोत्साहित होने की उम्मीद है। इस पहल में दो अलग-अलग गलियारे शामिल होंगे- पूर्वी गलियारा जो भारत को पश्चिम एशिया से जोड़ता है और उत्तरी गलियारा जो पश्चिम एशिया को यूरोप से जोड़ता है। इसमें एक रेल लाइन शामिल होगी जिसका निर्माण पूरा होने पर यह दक्षिण पूर्व एशिया से भारत होते हुए पश्चिम एशिया तक माल एवं सेवाओं के परिवहन को बढ़ावा देने वाले मौजूदा मल्टी-मॉडल परिवहन मार्ग के पूरक के तौर पर एक विश्वसनीय एवं किफायती सीमा-पार जहाज-से-रेल पारगमन नेटवर्क प्रदान करेगी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रेल मार्ग के साथ, प्रतिभागियों का इरादा बिजली और डिजिटल कनेक्टिविटी के लिए केबल बिछाने के साथ-साथ स्वच्छ हाइड्रोजन निर्यात के लिए पाइप बिछाने का है। यह गलियारा क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुदृढ़ करेगा, व्यापार पहुंच बढ़ाएगा, व्यापार सुविधाओं में सुधार करेगा तथा पर्यावरणीय सामाजिक और सरकारी प्रभावों पर जोर को बढ़ावा देगा। उन्होंने कहा कि गलियारे में भारत को खाड़ी क्षेत्र से जोड़ने वाला एक पूर्वी गलियारा और खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ने वाला एक उत्तरी गलियारा शामिल है, इसमें रेलवे और जहाज-रेल पारगमन नेटवर्क और सड़क परिवहन मार्ग शामिल होंगे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक इस मुद्दे पर अन्य देशों की प्रतिक्रियाओं की बात है तो उन पर गौर करेंगे तो पता चलेगा कि इस घोषणा से भागीदार देश कितने खुश हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो. बाइडन ने भी कहा है कि इस गलियारे के प्रमुख हिस्से के रूप में, हम जहाजों और रेलगाड़ियों में निवेश कर रहे हैं, जो भारत से संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन और इज़राइल के माध्यम से यूरोप तक विस्तारित है। इससे व्यापार करना बहुत आसान हो जाएगा। इसके अलावा सऊदी अरब के युवराज ने कहा कि वह आर्थिक गलियारे के एकीकरण के लिए तत्पर हैं। उन्होंने कहा कि यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने गलियारे पर समझौते की सराहना करते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक है। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष का मानना है कि रेल लिंक के साथ यह भारत, अरब की खाड़ी और यूरोप के बीच अब तक का सबसे सीधा कनेक्शन होगा, जिससे भारत और यूरोप के बीच व्यापार की गति में 40 प्रतिशत का इजाफा होगा। वहीं फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि यह पहले वैश्विक हरित व्यापार मार्ग से संबंधित है क्योंकि हाइड्रोजन भी इस परियोजना का हिस्सा है। जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज ने कहा है कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम इसे सफलतापूर्वक लागू करें और जर्मनी इस संबंध में योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध है। वहीं इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने कहा कि नया गलियारा वैश्विक एकीकरण को मजबूत करने में एक मील का पत्थर है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन ने इस पर बड़ी सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। चीन ने कहा है कि भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा अगर "भूराजनीतिक हथकंडा" न बने, तो वह इसका स्वागत करता है। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि चीन वास्तव में विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे के निर्माण में मदद करने वाली सभी पहलों और कनेक्टिविटी व विकास को बढ़ावा देने के ईमानदार प्रयासों का स्वागत करता है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देखा जाये तो भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा एक क्रांतिकारी परियोजना साबित होगी और इससे वैश्विक कारोबार को भारी बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि इस गलियारे से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में और ज्यादा लचीलापन आएगा। उन्होंने कहा कि यह महाद्वीपों में वस्तुओं तथा सेवाओं की आवाजाही को एक नई परिभाषा देगा क्योंकि इससे रसद लागत में कमी आएगी और माल की त्वरित आपूर्ति सुनिश्चित होगी। उन्होंने कहा कि भारत के इंजीनियरिंग निर्यात क्षेत्र के लिए पश्चिम एशिया तथा यूरोप दोनों प्रमुख बाजार हैं। इस स्तर का परिवहन बुनियादी ढांचा होने से वैश्विक स्तर पर इसकी प्रतिस्पर्धात्मकता में काफी वृद्धि होगी। उन्होंने कहा कि परिवर्तनकारी परियोजना में निवेश से आर्थिक गतिविधियों को काफी बढ़ावा मिलेगा, नौकरियों का सृजन होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी।