Shaurya Path: India-Canada, Israel-Gaza, Russia-Ukraine War व China-Myanmar से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

By नीरज कुमार दुबे | Nov 09, 2024

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने कनाडा के प्रधानमंत्री की बांटो और राज करो वाली राजनीति, इजराइल-गाजा संघर्ष रूस-यूक्रेन युद्ध और म्यांमार के सैन्य शासन प्रमुख की चीन यात्रा से संबंधित मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ बातचीत की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-


प्रश्न-1. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपने देश में मौजूद भारतीय समाज को बांटने में कामयाब होते दिख रहे हैं। इससे भारत और कनाडा के लिए किस प्रकार के खतरे बढ़ गये हैं?


उत्तर- कनाडा के ब्रैम्पटन में हिंदू मंदिर पर हमले की घटना बेहद चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि यह कनाडा में चरमपंथी ताकतों को एक तरह से दी जा रही राजनीतिक जगह की ओर इंगित करता है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच मुख्य मुद्दा यह है कि कनाडा अपनी धरती से गतिविधियां चला रहे खालिस्तान समर्थक तत्वों को बिना किसी रोक-टोक के मौका दे रहा है। उन्होंने कहा कि कनाडा ने विशेष विवरण दिए बिना आरोप लगाने को अपनी आदत बना लिया है। इसके अलावा कनाडा वहां मौजूद भारतीय राजनयिकों पर निगरानी रखता है जिसको भारत अस्वीकार्य बता चुका है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कनाडा में हिंदू मंदिर पर जानबूझकर किए गए हमले की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि हमारे राजनयिकों को डराने-धमकाने की कायरतापूर्ण कोशिशें भयावह हैं। उन्होंने कहा कि हिंसा की ऐसी हरकतें भारत के संकल्प को कभी कमजोर नहीं कर पाएंगी। उन्होंने कहा कि कनाडा सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी पूजा स्थलों को इस तरह के हमलों से बचाया जाए।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की बात है तो दरअसल वह कभी समझ ही नहीं पाए कि वहां रह रहे ज्यादातर सिख धर्मनिरपेक्ष हैं और वे खालिस्तान से कोई सरोकार नहीं रखना चाहते। उन्होंने कहा कि ट्रूडो के रुख ने खालिस्तानी चरमपंथियों को मजबूत किया है और उदारवादी सिखों के बीच डर का माहौल बनाया है। उन्होंने कहा कि ट्रूडो की नीतियों के चलते खालिस्तानी अलगाववादी आंदोलन अब कनाडाई समस्या बन गया है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर सिख खालिस्तान से कोई सरोकार नहीं रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि ट्रूडो हकीकत में कभी समझ ही नहीं पाए कि ज्यादातर सिख धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण रखते हैं। उन्होंने कहा कि खालिस्तानी बहुसंख्यक नहीं हैं लेकिन डर के कारण कोई भी उनके खिलाफ नहीं बोलता।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा यह जस्टिन ट्रूडो की गलतियों का नतीजा है कि आज कनाडा के लोग खालिस्तानियों और सिख को एक मानते हैं, मानो कि अगर कोई सिख हैं, तो वह खालिस्तानी समर्थक है। उन्होंने कहा कि कनाडा में रह रहे आठ लाख सिखों में से ज्यादातर खालिस्तान आंदोलन का समर्थन नहीं करते। उन्होंने कहा कि कनाडा में रह रहे भारतीय समझ रहे हैं कि ट्रूडो बांटो और राज करो वाली नीति पर चल रहे हैं इसलिए आगामी चुनावों में उन्हें बड़ा झटका लगने वाला है। उन्होंने कहा कि कनाडा के सत्तारुढ़ और विपक्षी दलों के तमाम नेता ट्रूडो की भारत विरोधी गतिविधियों के आलोचक रहे हैं और इसे अपने देश के लिए नुकसानदेह करार दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि ट्रूडो जिस तुष्टिकरण की राजनीति को अपने राजनीतिक फायदे का सौदा समझ रहे हैं वह दरअसल कनाडा को बड़ा नुकसान पहुँचा रही है। उन्होंने साथ ही कहा कि वह भारतीय समाज को विभाजित कर पाने में कभी सफल नहीं होंगे।


प्रश्न-2. इजराइल लगातार गाजा पर हमला किये जा रहा है दूसरी ओर ईरान भी इजराइल पर पलटवार करने की तैयारी कर रहा है। आखिर यह संघर्ष कहां जाकर रुकेगा? इसके अलावा हम यह भी जानना चाहते हैं कि अचानक ही इजराइली प्रधानमंत्री ने अपने रक्षा मंत्री को क्यों बर्खास्त कर दिया? क्या इससे इजराइली रक्षा बलों की तैयारियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा?


उत्तर- इजरायली बलों ने गाजा पट्टी पर बमबारी तेज कर दी और अधिक लोगों को वो इलाका खाली करने का आदेश दिया है जिससे उत्तरी गाजा में विस्थापन की एक नई लहर पैदा हो गई। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के फिलिस्तीनियों को डर है कि वे अगर बाहर गये तो वापस नहीं लौट पाएंगे। उन्होंने कहा कि इस बीच, फिलिस्तीनी स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा है कि गाजा शहर में शाती शरणार्थी शिविर में विस्थापित परिवारों के एक स्कूल पर इजरायली हवाई हमले में कम से कम 10 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि इजराइल हमास के पूर्ण सफाये तक रुकने वाला नहीं है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि फ़िलिस्तीनी अधिकारियों का कहना है कि इज़राइल "जातीय सफ़ाए" का अभियान चला रहा है। दूसरी ओर इज़रायली सेना का कहना है कि उसे जबालिया को खाली करने और पास के बेत लाहिया को साफ़ करना शुरू करने के लिए मजबूर होना पड़ा ताकि हमास के आतंकवादियों से मुकाबला किया जा सके। इजराइल का मानना है कि हमास के आतंकी इस क्षेत्र में डेरा डाले हुए हैं। उन्होंने कहा कि गाजा में कितना नुकसान हुआ है इसका आकलन इसी से लग सकता है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने कहा है कि गाजा युद्ध में मारे गए लोगों में से लगभग 70% महिलाएं और बच्चे थे। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने इसे अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के बुनियादी सिद्धांतों का व्यवस्थित उल्लंघन बताया है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइली प्रधानमंत्री इस सप्ताह इसलिए भी चर्चा में रहे क्योंकि उन्होंने आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए अपने रक्षा मंत्री याव गैलेंट को पद से हटा दिया है। उन्होंने कहा कि उनके इस फैसले ने कई सवालों को जन्म दिया है क्योंकि पूर्व मंत्री ईरान-इज़राइल युद्ध के संबंध में कई महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए जिम्मेदार थे। उन्होंने कहा कि साथ ही, यह बदलाव ऐसे समय में हुआ है जब इजराइल कई मोर्चों पर युद्ध लड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इज़राइल के पीएम नेतन्याहू ने गैलेंट को हटाने का कारण 'विश्वास का संकट' बताया, जो 'धीरे-धीरे गहराता जा रहा था।' नेतन्याहू ने कहा, 'युद्ध के बीच, प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के बीच पूर्ण विश्वास की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू के साथ विवादों और भर्ती कानून पर हालिया तनाव के बाद, यह स्पष्ट था कि गैलेंट को बर्खास्त कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ समय का सवाल था और आखिरकार वह समय आ ही गया।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि नेतन्याहू के साथ गैलेंट का तनाव पिछले साल के मध्य में तब बढ़ गया था, जब नेतन्याहू द्वारा सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों पर अंकुश लगाने के अभियान के कारण इज़राइल विभाजित हो गया था। उन्होंने कहा कि नेतन्याहू के उस कदम के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसे आलोचकों ने लोकतंत्र पर हमले के रूप में देखा था। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे विरोध बढ़ता गया, गैलेंट ने नेतन्याहू की योजना के खिलाफ बयान देते हुए कहा था कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। नेतन्याहू ने तभी उन्हें बर्खास्त करने का पहला प्रयास किया था लेकिन यह कदम उन्होंने तब त्याग दिया जब सैंकड़ों हजारों इजरायलियों ने रक्षा मंत्री के समर्थन में प्रदर्शन किये थे। उन्होंने कहा कि इसके अलावा गैलेंट को पद से हटाने का एक बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि नेतन्याहू को जीत करीब दिख रही है और ऐसे में वह सफलता का श्रेय बांटना नहीं चाहते होंगे। उन्होंने कहा कि एक और संभावित कारण यह माना जा रहा है कि इजराइली प्रधानमंत्री ने अपनी सैन्य रणनीति में बड़ा बदलाव कर दिया है जिसके माध्यम से वह जल्द से जल्द हर मोर्चे पर जीत हासिल करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इजराइली प्रधानमंत्री की सैन्य रणनीतियों पर गैलेंट हमेशा सवाल उठाते रहे हैं इसलिए संभवतः नेतन्याहू को लगा कि गैलेंट को हटा कर ही अपनी नीतियों को आगे बढ़ाया जा सकता है।


प्रश्न-3. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन उत्तर कोरियाई सैनिकों को अपनी ओर से लड़ने के लिए ले तो आये मगर प्रशिक्षण की कमी के चलते उत्तर कोरियाई जवान यूक्रेनी सेना के सामने टिक नहीं पा रहे हैं। इसे कैसे देखते हैं आप? इसके अलावा जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप ने रूस-यूक्रेन युद्ध को बंद करवाने की बात कही है उसके चलते लोगों के मन में सवाल यह है कि आखिर वह कैसे व्लादिमीर पुतिन और वोलोदमीर जेलेंस्की को वार्ता की टेबल पर लाएंगे?


उत्तर- डोनाल्ड ट्रंप प्रचार के दौरान ही कहते रहे हैं कि समझौता रूस की शर्तों पर होगा और जितना भी भाग अब तक रूस ने कब्जाया है वह यूक्रेन को छोड़ना होगा। उन्होंने कहा कि ट्रंप के आने के बाद रूस ने अपना सैन्य अभियान और आक्रामक कर दिया है क्योंकि पुतिन चाहते हैं कि 20 जनवरी को जब ट्रंप अमेरिका की कमान संभालेंगे तब तक यूक्रेन का ज्यादा से ज्यादा भाग उनके पास आ जाये। उन्होंने कहा कि पुतिन की रणनीति है कि यदि रूस को थोड़ा पीछे हटने पर भी समझौता करना पड़े तो वह उस क्षेत्र से हटे जिन्हें वह अब कब्जायेगा। उन्होंने कहा कि रूस अब तक यूक्रेन के 22 प्रतिशत भाग पर कब्जा कर चुका है और यदि जनवरी तक वह 25 प्रतिशत से ज्यादा भाग कब्जा लेता है तो यूक्रेन को बड़ा नुकसान होने जा रहा है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध के मामले में ट्रंप कीव और मॉस्को को कम से कम मौजूदा मोर्चे पर युद्ध विराम के लिए मजबूर करने की कोशिश कर सकते हैं। इसमें संभवतः एक स्थायी समझौता शामिल हो सकता है जिसमें रूस के कब्जे वाले क्षेत्रों के लिए एक व्यवस्था होगी और इसमें 2014 में क्रीमिया का विलय और फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से कब्जा किए गए क्षेत्र शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यह भी संभावना है कि ट्रंप भविष्य में यूक्रेन को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का सदस्य बनने से रोकने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मांगों को स्वीकार कर लेंगे। उन्होंने कहा कि नाटो के प्रति ट्रंप के नकारात्मक रवैये के मद्देनजर यह कीव के यूरोपीय सहयोगियों पर भी एक महत्वपूर्ण दबाव होगा। उन्होंने कहा कि ट्रंप एक बार फिर यूरोपीय देशों को यूक्रेन के मुद्दे पर पुतिन के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए गठबंधन छोड़ने की धमकी दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध ट्रंप के एजेंडे में शीर्ष स्थान पर है इसलिए दुनिया को उम्मीद है कि अब यह युद्ध खत्म होने की कगार पर पहुँच गया है।


प्रश्न-4. म्यांमार के सैन्य शासन के प्रमुख की चीन की पहली यात्रा का क्या रणनीतिक महत्व है?


उत्तर- फरवरी 2021 में आंग सान सू की के नेतृत्व वाली निर्वाचित सरकार को अपदस्थ करने के बाद म्यांमार के सैन्य नेता मिन आंग ह्लाइंग अपनी पहली चीन यात्रा पर गये। उन्होंने कहा कि गृह युद्ध के दौरान म्यांमार को जो महत्वपूर्ण नुकसान हुआ है, उससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि वह कितने समय तक सत्ता पर बने रहेंगे। इसलिए चीन जैसे महत्वपूर्ण सहयोगी, पड़ोसी और म्यांमार के सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश की उनकी यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हालांकि यह कोई राजकीय यात्रा नहीं है। उन्होंने कहा कि वैसे ह्लाइंग की चीन यात्रा से पता चलता है कि बीजिंग उन्हें म्यांमार में संघर्ष के समाधान के एक अनिवार्य हिस्से के रूप में देखता है। उन्होंने कहा कि म्यांमार में तख्तापलट के बाद ह्लाइंग ने एक अलग पहचान बना ली है। उन्होंने कहा कि 2021 के बाद से उन्होंने जो कुछ विदेशी यात्राएं की हैं, वे मुख्य रूप से रूस की हैं, जो म्यांमार का कट्टर सहयोगी है। उन्होंने कहा कि म्यांमार में शांति स्थापित करने में चीन शायद कोई भूमिका निभाना चाहता है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में ह्लाइंग की चीन यात्रा को लेकर और क्या तथ्य सामने आते हैं।

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