Shaurya Path: Israel-Hamas, Russia-Ukraine, Macron Statement, India-Maldives और Pakistan Politics से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

By नीरज कुमार दुबे | Mar 03, 2024

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने इजराइल-हमास संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध, भारत-मालदीव संबंध, फ्रांस के राष्ट्रपति के बयान और पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक उठापटक से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ बातचीत की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-


प्रश्न-1. गाजा के हालात पर चिंता सब जता रहे हैं लेकिन कोई कुछ कर नहीं पा रहा है। इजराइल-हमास संघर्ष अब किस दिशा में आगे बढ़ता दिख रहा है?


उत्तर- यह संघर्ष दिखा रहा है कि मानवाधिकारों की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले देश कैसे अमानवीय कृत्यों पर चुप्पी साधे हुए हैं। उन्होंने कहा कि गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इजराइल और हमास के बीच युद्ध में मरने वाले फिलस्तीनियों की संख्या 30,000 के पार चली गयी है। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो यह बड़ा आंकड़ा है लेकिन किसी का ध्यान इस ओर नहीं है। उन्होंने कहा कि इसका एक कारण यह भी है कि इस साल दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में चुनाव हैं इसलिए राजनीतिक दल चुनावों की तैयारियों में जुटे हुए हैं और इजराइल गाजा के बाद अब रफा में आगे बढ़ता जा रहा है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि गाजा में संघर्ष बेहद चिंता का विषय है और इससे उत्पन्न मानवीय संकट के लिए एक स्थायी समाधान की आवश्यकता है। साथ ही उन्होंने सात अक्टूबर को हमास द्वारा इजराइल पर किए गए आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा कि आतंकवाद और बंधक बनाना भी अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि संघर्षों से उत्पन्न होने वाले मानवीय संकटों के लिए एक स्थायी समाधान की आवश्यकता होती है जो सबसे अधिक प्रभावित लोगों को तत्काल राहत दे। उन्होंने कहा कि साथ ही, हमें स्पष्ट होना चाहिए कि आतंकवाद और बंधक बनाना अस्वीकार्य है। यह भी कहने की जरूरत नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन मुद्दे का दो-राज्य समाधान होना चाहिए और देखना चाहिए कि संघर्ष क्षेत्र के भीतर या बाहर न फैले।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि गाजा में अब भूख से मौतें होने लगी हैं। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की एक मानवीय एजेंसी ने कहा है कि उसकी एजेंसियों को गाजा तक प्रवेश से वंचित किया जा रहा है और सहायता ले जा रहे वाहनों पर अक्सर गोलीबारी होती रहती है। उन्होंने कहा कि गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि उत्तरी गाजा के कमाल अदवान और अल-शिफा अस्पतालों में छह बच्चों की निर्जलीकरण और कुपोषण से मौत हो गई है। उन्होंने कहा कि यह दर्शा रहा है कि गाजा और फिलस्तीन के अन्य क्षेत्रों में अब बम और गोलियों से नहीं बल्कि भूख और प्यास से भी मौतें होने लग गयी हैं जोकि पूरी दुनिया के लिए शर्म की बात है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा, गाजा में युद्ध और लेबनान के साथ सीमा पर तनाव के बीच इजरायल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने जो संकेत दिये हैं वह दर्शा रहे हैं कि इजराइल अब रुकने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ही इजराइल को रफा में आगे बढ़ने से समझा कर रोक सकता था लेकिन वहां के नेता राष्ट्रपति चुनावों में व्यस्त हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा जिस तरह इजराइल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू घरेलू राजनीतिक मोर्चे पर घिरे हुए हैं उसको देखकर यही लगता है कि वह हमास नाम की समस्या को खत्म करके ही मानेंगे चाहे इसके लिए इजराइली रक्षा बलों को फिलस्तीन के कितने ही निर्दोष लोगों की जान लेनी पड़े।


प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध ने हाल में दो वर्ष पूरे किये। दोनों तरफ नीरसता-सी दिख रही है इसलिए लड़ने के लिए अब दूसरे देशों के लोगों को लाया जा रहा है। यह सब क्या दर्शा रहा है। आखिर और कितना लंबा खिंचेगा यह युद्ध?


उत्तर- दो साल में बड़ी तबाही के बावजूद दोनों पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद से 31,000 यूक्रेनी सैनिक मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि रूस की तरफ से स्पष्ट आंकड़ा नहीं है लेकिन उसकी सेना को भी बहुत नुकसान पहुँचा है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि एक चीज स्पष्ट है कि यूक्रेन को अब पहले जैसी विदेशी मदद नहीं मिल पा रही है जिससे उसकी सैन्य क्षमता प्रभावित हुई है और रूस लगातार आगे बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि जेलेंस्की संसाधन जुटाने के लिए लगातार विदेशों के दौरे कर रहे हैं लेकिन पैसे और हथियार मांग मांग कर वह कब तक इस युद्ध को खींच पायेंगे इस पर सवाल उठने लगे हैं। उन्होंने कहा कि एक चीज और है कि दोनों तरफ की सेनाओं में नीरसता-सी आ गयी है तभी दूसरे देश के लोगों को लड़ने के लिए लाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि चीन एक बार फिर से दोनों पक्षों के बीच संघर्षविराम कराने का प्रयास कर रहा है लेकिन यह आसान नहीं लगता क्योंकि जिन यूक्रेनी क्षेत्रों पर रूस कब्जा कर चुका है उन्हें वह छोड़ेगा नहीं और अपने क्षेत्रों को वापस लिये बिना यूक्रेन मानेगा नहीं। उन्होंने कहा कि यूक्रेनी राष्ट्रपति ने अब यूरोपीय देशों को यह डर दिखाना शुरू किया है कि यदि यूक्रेन पर रूस का कब्जा हुआ तो यूरोपीय देश भी सुरक्षित नहीं रहेंगे।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि एक ओर जहां जेलेंस्की सबसे मदद मांग रहे हैं वहीं दूसरी ओर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आत्मविश्वास से भरपूर नजर आ रहे हैं और यूक्रेन तथा उसके सभी सहयोगियों को खुलेआम धमका रहे हैं। उन्होंने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिमी देशों से कहा है कि अगर वे यूक्रेन में लड़ने के लिए अपनी सेना भेजते हैं तो परमाणु युद्ध भड़कने का खतरा है। पुतिन ने चेतावनी दी है कि मॉस्को के पास पश्चिम में लक्ष्यों पर हमला करने के लिए हथियार हैं। उन्होंने कहा कि पुतिन पहले भी नाटो और रूस के बीच सीधे टकराव के खतरों के बारे में बात कर चुके हैं, लेकिन उनकी ताजा परमाणु चेतावनी सबसे स्पष्ट चेतावनी में से एक थी।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रूसी सांसदों और देश के अभिजात वर्ग को संबोधित करते हुए, 71 वर्षीय पुतिन ने अपना आरोप दोहराया कि पश्चिमी देश रूस को कमजोर करने पर तुले हुए हैं। पुतिन ने कहा कि पश्चिमी नेता यह नहीं समझते हैं कि रूस के अपने आंतरिक मामलों में उनका हस्तक्षेप कितना खतरनाक हो सकता है। उन्होंने अपनी परमाणु चेतावनी की शुरुआत फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन द्वारा यूरोपीय नाटो सदस्यों द्वारा यूक्रेन में जमीनी सेना भेजने के विचार के विशेष संदर्भ में की थी। पुतिन ने कहा कि पश्चिमी देशों को यह समझना चाहिए कि हमारे पास भी ऐसे हथियार हैं जो उनके क्षेत्र में लक्ष्यों को मार सकते हैं। पुतिन ने कहा कि क्या उन्हें यह समझ में नहीं आता? 15-17 मार्च को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले बोलते हुए, पुतिन ने कहा कि उनका अगले छह साल के कार्यकाल के लिए फिर से चुना जाना निश्चित है। उन्होंने रूस के विशाल आधुनिकीकृत परमाणु शस्त्रागार की भी सराहना की जो दुनिया में सबसे बड़ा है। उन्होंने कहा कि गुस्से में दिख रहे पुतिन ने पश्चिमी राजनेताओं को नाजी जर्मनी के एडॉल्फ हिटलर और फ्रांस के नेपोलियन बोनापार्ट जैसे लोगों के भाग्य को याद करने का सुझाव दिया, जिन्होंने अतीत में रूस पर असफल आक्रमण किया था।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा एक और बात यह है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी और उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति लागू करने की संभावना यूक्रेन के लिए ‘घातक’ साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि इस साल के अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रस्तावित हैं। राष्ट्रपति पद के लिए संभावित रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप, यूक्रेन को कोई भी अतिरिक्त सहायता दिये जाने के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप का कहना है कि किसी भी अन्य सहायता को अब ऋण के रूप में दिया जाना चाहिए। उन्होंने 24 घंटे में युद्ध समाप्त करने संबंधी अपने इरादे की भी घोषणा की थी और शीघ्र ही शांति का माहौल बनाये जाने की आवश्यकता पर जोर दिया था। उन्होंने कहा कि हालांकि रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल ट्रंप की प्रतिद्वंद्वी दक्षिण कैरोलिना की पूर्व गवर्नर निक्की हेली यूक्रेन को बिना किसी शर्त के सहायता जारी रखने का समर्थन करती हैं। उन्होंने कहा कि व्लादिमीर पुतिन की जीत से यूरोप के अन्य देशों, मुख्य रूप से बाल्टिक देशों और पोलैंड में युद्ध छिड़ जायेगा। उन्होंने कहा कि हालांकि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने उम्मीद जताई है कि यदि ट्रंप नवंबर में राष्ट्रपति चुने जाते हैं, तो अमेरिका की ओर से यूक्रेन को सहायता मिलना जारी रहेगा और यदि ऐसा नहीं हुआ तो युद्धग्रस्त देश को इसके घातक नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि कई कारक यूक्रेन को अमेरिकी सहायता की गतिशीलता और भविष्य में इसके आकार को प्रभावित करेंगे। अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताएं और वित्तीय सहायता प्रदान करने की उसकी इच्छा इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या इस युद्ध को इसके नीति निर्माताओं और अमेरिकी जनता द्वारा केवल एक स्थानीय या क्षेत्रीय मामला या वैश्विक संघर्ष के हिस्से के रूप में परिभाषित किया गया है। उन्होंने कहा कि यूरोपीय देश, विशेष रूप से जर्मनी, फ्रांस और पोलैंड यूक्रेन का समर्थन जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं और यूक्रेनी निधि के सृजन पर सहमत हुए हैं। उन्होंने कहा कि पिछले छह महीनों में यूरोपीय संघ के देशों ने यूक्रेन को मदद के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि युद्ध जारी रहने और यूक्रेन के सशस्त्र बलों के इसमें बढ़त नहीं हासिल करने से अमेरिका का जोर अपनी रक्षा क्षमताओं के वास्ते अधिक धन जुटाने और यूक्रेन को सहायता प्रदान करने के बजाय नाटो सैन्य शक्ति को मजबूत करने पर रहेगा।


प्रश्न-3. भारत से एक नई टीम मालदीव पहुँच गयी है जोकि वहां मौजूद सैन्य बलों की जगह काम करेगी। इसे कैसे देखते हैं आप? क्या अब दोनों देशों के संबंधों में कुछ सुधार की उम्मीद है?


उत्तर- भारत के तकनीकी विशेषज्ञों की पहली असैन्य टीम मालदीव में एक उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर का संचालन करने वाले सैन्यकर्मियों की जगह लेने वहां पहुंच गई है क्योंकि मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने अपने देश से भारतीय सैन्यकर्मियों के पहले समूह की वापसी के लिए 10 मार्च की समयसीमा तय की थी। इसके अलावा भारतीय सैन्यकर्मियों की वापसी से संबंधित मुद्दे के समाधान के लिए गठित उच्च-स्तरीय कोर समूह की दूसरी बैठक के बाद, मालदीव के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत 10 मई तक दो चरणों में अपने सभी सैन्यकर्मियों को हटा लेगा। उन्होंने कहा कि पिछले साल दिसंबर में दुबई में कॉप28 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुइज्जू के बीच एक बैठक के बाद दोनों पक्षों ने कोर समूह स्थापित करने का निर्णय लिया था।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वर्तमान में, मुख्यत: दो हेलीकॉप्टरों और एक विमान के संचालन के लिए लगभग 80 भारतीय सैन्यकर्मी मालदीव में हैं जिन्होंने सैंकड़ों चिकित्सा आपात स्थितियों में अपनी सेवाएं दी हैं और मानवीय अभियानों को अंजाम दिया है। पिछले साल नवंबर में मुइज्जू के सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में कुछ तनाव आ गया था। उन्होंने कहा कि व्यापक रूप से चीन समर्थक नेता के रूप में देखे जाने वाले मुइज्जू ने राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने के बाद कहा कि वह भारतीय सैन्यकर्मियों को अपने देश से बाहर निकालने के अपने चुनावी वादे को निभाएंगे। उन्होंने कहा कि देखा जाये तो मुइज्जू भले ही अपने मिशन को आगे बढ़ा रहे हों लेकिन वहां का विपक्ष भारत के साथ खड़ा है। उन्होंने कहा कि मालदीव के मुख्य विपक्षी दल ‘मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी’ (एमडीपी) के नए नेता अब्दुल्ला शाहिद ने नयी दिल्ली के साथ माले के करीबी संबंधों का बचाव करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि ‘‘भारत के साथ संबंधों को खराब करना असंभव है।’’ उन्होंने कहा कि मालदीव की नयी सरकार की चीन के प्रति झुकाव के बीच अब्दुल्ला की यह टिप्पणी आई है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि तीन नवंबर, 1988 को मालदीव में विदेशी सैन्य घुसपैठ के समय की स्थिति से निपटने में भारतीय सेना की भूमिका और सहायता से मालदीव का हर व्यक्ति परिचित है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत 2004 के सुनामी संकट में सहायता करने वाला पहला सहयोगी था। माले में जल संकट का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत ने संकट उत्पन्न होने के चार घंटों के भीतर विशेष उड़ानों के जरिये पानी पहुंचाया था। इसके अलावा भारत 2020 की कोविड महामारी में भी मालदीव की सहायता करने वाला पहला देश था। उन्होंने कहा कि मालदीव का विपक्ष कह रहा है कि हमारी नीतियों में उन सभी उपायों की खोज पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जिनसे मालदीव को भारत द्वारा की गई आर्थिक प्रगति से लाभ हो सके। उन्होंने कहा कि भारत भी यही चाहता है कि वहां की जनता हमारे साथ रहे क्योंकि राजनीतिज्ञ तो आते जाते रहते हैं।


प्रश्न-4. फ्रांस के राष्ट्रपति ने सेना भेजने संबंधी जो बात कही है क्या वह सीधे-सीधे रूस से भिड़ने का संदेश नहीं है?


उत्तर- फ्रांस के राष्ट्रपति के बयान से जो विवाद खड़ा हुआ उस पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पश्चिमी और यूरोपीय देशों को परमाणु हमले की चेतावनी दे डाली है। हालांकि विवाद खड़ा करने के तुरंत बाद फ्रांस के राष्ट्रपति ने कह दिया था कि उनके बयान का गलत अर्थ निकाला गया। इसके साथ ही पश्चिमी और नाटो देशों ने जिस तरह फ्रांस के राष्ट्रपति के बयान से दूरी बनाई थी उससे यही लगता है कि वह क्षणिक आवेश में आकर दिया गया बयान था।


प्रश्न-5. पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक उठापटक को आप कैसे देखते हैं?


उत्तर- जिस तरह पाकिस्तान नेशनल असेंबली के सत्र की हंगामेदार शुरुआत हुई है वह दिखा रहा है कि पाकिस्तान में आने वाले दिन राजनीतिक लिहाज से कठिन रहने वाले हैं। उन्होंने कहा कि छह दलों के बीच सत्ता के लिए तो समझौता हो गया है लेकिन देश को विकट हालात से निकालने के लिए कोई रूपरेखा नहीं बनाई गयी है। उन्होंने कहा कि जिस तरह पीपीपी ने चाल चलते हुए सरकार को बाहर से समर्थन देने की बात कही है और राष्ट्रपति पद मांग लिया है उससे आने वाले दिनों में पाकिस्तान की राजनीति नई करवट ले सकती है।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी द्वारा नेशनल असेंबली का सत्र बुलाए जाने के बाद देश के नवनिर्वाचित सांसदों ने शपथ ली। उन्होंने कहा कि खास बात यह रही कि पाकिस्तान के तीन बार के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी नेशनल असेंबली के एक साधारण सदस्य के रूप में शपथ ली। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी द्वारा समर्थित उम्मीदवारों को आरक्षित सीट आवंटित करने के मुद्दे पर कार्यवाहक सरकार के साथ मतभेद के कारण अल्वी के शुरुआती इंकार के बाद नयी संसद का पहला सत्र आयोजित किया गया। उन्होंने कहा कि इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) समर्थित सांसदों द्वारा आठ फरवरी के आम चुनाव में कथित धांधली के खिलाफ नारे लगाए जाने के बीच अध्यक्ष ने नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाई। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव शनिवार को होने की उम्मीद है और पीएमएल-एन तथा पीपीपी के बीच चुनाव बाद समझौते के तहत पूर्व प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को सदन का नया नेता चुना जाना तय है। उन्होंने कहा कि चुनाव में पीटीआई पार्टी द्वारा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवारों ने नेशनल असेंबली की सर्वाधिक 93 सीट जीती हैं। पीएमएल-एन ने 75 और पीपीपी को 54 सीट पर जीत मिली थी। मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी) के खाते में 17 सीट आई थीं।


ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि देश के शक्तिशाली "सैन्यतंत्र" सेना के आलाकमान और खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस के समर्थन से बनाई जा रही गठबंधन सरकार को चूंकि जनता का समर्थन हासिल नहीं है इसलिए इसके ज्यादा समय तक चलने की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा कि शहबाज शरीफ अपने पिछले कार्यकाल में भी कोई छाप नहीं छोड़ पाये उल्टा उनके कार्यकाल में पाकिस्तान में आतंकवाद और महंगाई बढ़ी तथा विदेशों से कर्ज लेने में मुश्किल पेश आई। उन्होंने कहा कि नयी सरकार का पहला लक्ष्य आईएमएफ से कर्ज लेना होगा लेकिन यह आसान नहीं होगा क्योंकि इमरान खान ने आईएमएफ को पत्र लिखकर कहा है कि नया कर्ज देने से पहले पुराने कर्ज के खर्च का ऑडिट कराया जाये। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी युवा जिस तरह इमरान खान के समर्थन में उतर रहे हैं उससे यही लग रहा है कि नई सरकार कुछ दिनों की मेहमान ही रहेगी। उन्होंने कहा कि बहरहाल एक बात साफ है कि पाकिस्तान की 16वीं नेशनल असेंबली का पहला सत्र जिस तरह हंगामे के साथ शुरू हुआ उससे वहां जल्द ही बड़ा राजनीतिक तूफान आने का संकेत भी मिला है।

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